रविवार, 4 अक्टूबर 2020

   भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य 

  उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए

  --महात्मा गांधी

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भ्रष्टों के खिलाफ हर नागरिक को सुप्रीम 

कोर्ट ने 2012 में ही थमा रखा है बड़ा हथियार

उसका इस्तेमाल तो करिए 

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सुप्रीम कोर्ट ने सन् 2012 में ही भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अदालत में शिकायत करने का अधिकार हर नागरिक को दे दिया था।

वह अधिकार अब भी नागरिकों के पास है।

याद रहे कि मंत्री, सांसद, विधायक और आला अधिकारी लोक सेवक हैं।

यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि इस वर्ग के सारे लोग भ्रष्ट ही हैं।

किंतु सारे ईमानदार भी नहीं हैं।

  सबसे बड़ी अदालत ने तब यह भी कहा था कि मुकदमा चलाने की अनुमति देने का निर्णय शासन को एक समय सीमा के भीतर कर लेना चाहिए।अधिकत्तम चार महीने में।

  डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी की इस संबंध में दायर याचिका को मंजूर करते हुए न्यायमूत्र्ति जी.एस.सिंघवी और न्यायमूत्र्ति ए.के.गांगुली के पीठ ने कहा कि 

‘‘भ्रष्टाचार से पूरे प्रजातंत्र की बुनियाद खतरे में पड़ जाती है।’’

  सुप्रीम कोर्ट की राय थी कि

 ‘‘भ्रष्टाचार आज हमारे देश में न सिर्फ संवैधानिक शासन के लिए खतरा बन गया है,बल्कि लोकतंत्र और कानून के शासन की बुनियाद के लिए नुकसानदेह बन चुका है।’’

  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 

‘‘ भविष्य में अगर कोई नागरिक 

लोक सेवक के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगता है तो सक्षम अधिकारी विनीत नारायण के मुकदमे में तय समय सीमा और केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशा निदेशों का पालन करेंगे।’’

   कितने लोगों को पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक धन के लुटेरों से लड़ने के लिए इतना कारगर हथियार आम नागरिक को दे रखा है ?

  2012 के बाद कितने लोगों ने इस अधिकार का प्रयोग किया है ?

डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो जरूर इसका इस्तेमाल किया है।

 जो लोग अपने ड्राइंग रूम बैठकर रोज यह चर्चा कर रहे हैं कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है,वे क्यों नहीं अदालत प्रदत्त इस हथियार का प्रयोग करते ?

  प्रतिपक्ष के अनेक बड़े नेता तो चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई निर्णायक लड़ाई न हो।

सिर्फ जुबानी जंग हो।

  पर जो लोग देश हित  में सोचने वाले हैं वे तो पहल कर ही सकते हैं।

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क्यों जरूरी है इस ‘‘हथियार’’ का प्रयोग !

मौजूदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कोई नहीं कहता कि उनकी रूचि नाजायज तरीके से निजी संपत्ति बढ़ाने में है।

  इस देश में एकाधिक मुख्य मंत्री भी वैसे ही हैं।

मोदी ने कहा भी था कि ‘‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’’

फिर भी देश में भ्रष्टाचार पर कारगर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है ?

ईमानदार प्रधानमंत्री व कतिपय मुख्य मंत्री भ्रष्ट लोगों के समक्ष लाचार क्यों नजर आ रहे हैं ?

क्या भ्रष्टों के खिलाफ कार्रवाई के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है ?

उसके लिए तो अभी राज्य सभा मंे शासक दल को बहुमत नहीं है।

  जब होगा तो देखा जाएगा।

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पर उससे पहले उपर्युक्त हथियार का प्रयोग करके इस देश के कुछ सौ लोग यह दिखा दे सकते हैं  कि भ्रष्टाचार ने कितनी अपनी जड़ें जमा रखी हैं।

फिर कार्रवाई के लिए देश में माहौल बनेगा।

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सुरेंद्र किशोर-1 अक्तूबर 20


  

  

   


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