गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

 इतिहास के नाजुक मोड़ पर 

कटु सत्य एक बार फिर !

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--सुरेंद्र किशोर--

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सन 1990 में मंडल आरक्षण आया।

अधिकतर सवर्णों ने उसका तगड़ा विरोध किया।

तब बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में बैठकर अक्सर मैं 

यह कहा करता था कि आरक्षण का विरोध मत कीजिए।

यदि गज नहीं फाड़िएगा तो थान हारना पड़ेगा।

कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा भी प्रेस रूम में बैठते थे।

मेरी बातों के वह आज भी गवाह हैं।

  आरक्षण विरोध के कारण 15 साल तक ‘थान’ हारे रहे थे।

 ‘‘भूरा बाल साफ करो,’’

यह बात किसी ने कही थी या नहीं यह मैं नहीं जानता।

पर ‘भूरा बाल’ ने खुद को ही कुछ साल के लिए साफ कर लिया।

कम से कम दो पीढ़ियां बर्बाद हो गईं।

   आज भी बिहार इतिहास के नाजुक मोड़ पर खड़ा है।

कुछ लोग एक बार फिर वैसी ही गलती कुछ दूसरे ढंग से करने पर उतारू हैं।

वे ऐसी शक्तियों को मजबूत करना चाहते हैं जिनका विकास का कोई इतिहास ही नहीं है। 

यानी, बताशा के लिए मंदिर तोड़ने पर कोई अमादा हो तो आप उनका क्या कर लेंगे ? !!

यह लोकतंत्र है।सबको अपने मन की सरकार चुनने का पूरा हक है।

 1990 में भी मुझ पर उस टिप्पणी के कारण बहुत से लोग नाराज हुए थे।

कुछ लोग मुझे लालू का दलाल भी बता रहे थे।

मेरा परिवार भी इस मुद्दे पर मेरे खिलाफ था।

दरअसल दूरदर्शी होने के लिए सिर्फ पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है।

  मेरे इस ताजा पोस्ट पर भी कई लोग नाराज हो सकते हैं।

कुछ उसी तरह की बातें बोल सकते हैं।यह उनका हक है।

पर, वे एक बात जान लें।

अन्यथा कल होकर कहेंगे कि कोई चेताने के लिए था ही नहीं।

जो नेता लोग 1990 में आरक्षण विरोधी आंदोलन के नेता थे,उनमें से एकाधिक लोगों ने मुझसे कुछ साल बाद कहा था कि हमारा स्टैंड तब गलत था।हमें आरक्षण का विरोध नहीं करना चाहिए था।हमारे विरोध का लाभ लालू प्रसाद ने उठा लिया।

  आज जो लोग बताशे के लिए मंदिर तोड़ने को एक बार फिर अमादा हैं,वे भी कुछ समय बाद पछताएंगे,यदि वे अपनी योजना में अंततः सफल हो गए। 

  पर तब तक देर हो चुकी होगी।

हालांकि उनकी सफलता पर मुझे संदेह है।

होशियार लोग चुनाव में हमेशा बदतर को छोड़कर बेहतर को अपनाते हैं।

पर आज क्या हो रहा है ?

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29 अक्तूबर 20


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