भूली-बिसरी याद
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कर्पूरी ठाकुर और भागवत झा ‘आजाद’
मुख्य मंत्री पद से हटा दिए गए थे।
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क्या इसलिए कि वे अपेक्षाकृत बेहतर
काम कर रहे थे ?
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--सुरेंद्र किशोर--
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1977-1979 में कर्पूरी ठाकुर ने मुख्य मंत्री के रूप
में कम से कम तीन ऐसे काम किए थे जिनसे कतिपय निहितस्वार्थी तत्व उनसे नाराज हो गए।
वे तत्व उनकी पार्टी के भीतर के भी थे और बाहर के भी।
कर्पूरी सरकार के काम व्यापक जनहित के थे।
1979 में वे मुख्य मंत्री पद से हटा दिए गए।
उसी साल बिहार,हरियाणा और उत्तर
प्रदेश के मुख्य मंत्रियों को भी बारी -बारी से हटा दिए जाने के कारण केंद्र की
मोरारजी देसाई सरकार भी गिरा दी गई।
जनता पार्टी के भीतर के ही सांसदों ने केंद्र सरकार से बदला ले लिया।
वैसे देसाई सरकार बहुत अच्छा काम कर रही थी।
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1.-कर्पूरी ठाकुर के कार्यकाल में एक वरीय पुलिस अफसर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए।
कर्पूरी ठाकुर ने उन आरोपों की सी.बी.आई. जांच का आदेश दे दिया।
कर्पूरी जी ने सत्ता संभालते ही सी.बी.आई.को कह दिया था कि वह बिहार में मेरी अनुमति के बिना भी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकती है।
ऐसे मुख्य मंत्री थे कर्पूरी जी।
उस पुलिस अफसर के पक्ष में सत्ताधारी राजनीति में मौजूद स्वजातीय लाॅबी तुरंत सक्रिय हो गई।
लाॅबी की बैठक हुई।
सरकार को धमकी दी गई कि यदि सी.बी.आई.जांच हुई तो कर्पूरी ठाकुर की कुर्सी नहीं रहेगी।
बढ़े मनोबल के तहत उस अफसर ने भी मुख्य मंत्री के आॅफिस में खुद जाकर कर्पूरी जी को धमकाया भी ।
भारी दबाव के बीच जांच का आदेश वापस हो गया।
2.-जयप्रकाश नारायण के कहने पर मशहूर गांधीवादी पत्रकार बी.जी.वर्गीज पटना आए।
कोसी इलाके के सम्यक विकास के लिए कोसी क्रांति योजना बनी।
उसमें भूमि सुधार,सिंचाई तथा विकास के अन्य कार्यक्रम थे।
हदबंदी से फाजिल जमीन का पता लगाना उसमें शामिल था।
जमीन दबाए बैठे प्रभावशाली लोगों ने इलाके के विधायकों पर दबाव डाला।
पटना में एक बड़े नेता के अवास पर बैठक हुई।
तय हुआ कि ऐसा कोई काम हुआ तो कर्पूरी सरकार गिरा दी जाएगी।काम रुक गया।
निराश बी.जी.वर्गीज अपनी आंखों में आंसू लिए दिल्ली लौट गए।
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इस तरह कर्पूरी ठाकुर से पार्टी के अंदर ही नाराजगी बढ़ती गई।सबसे बड़ी नाराजगी पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर हुई।
अंततः कर्पूरी जी मुख्य मंत्री पद से हटा दिए गए।
बाद के मुख्य मंत्रियों ने इन मामलों में क्या किया,उसका साक्षी इतिहास है।
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कांग्रेस हाईकमान ने 1988 में भागवत झा को बिहार का मुख्य मंत्री बनाया।
उन्होंने पद संभालते ही राज्य के तरह -तरह के माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई व जुबानी जंग शुरू कर दी।
विशेष तौर पर ‘‘सहकारी माफिया’’ उनके निशाने पर थे।
आजाद जी के काम को देखकर पत्रकार जर्नादन ठाकुर ने नवभारत टाइम्स में एक लेख लिखा जिसका शीर्षक ‘‘दैत्यों की गुफा में भागवत झा आजाद।’’
मैंने ‘जनसत्ता’ की ओर से तब पूरे बिहार में नमूना जनमत संग्रह करवाया था।
करीब 75 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि मुख्य मंत्री के रूप में हम आजाद जी को पसंद करते हैं।
इस बात के बावजूद कि उन दिनों बोफोर्स को लेकर वी.पी.
सिंह के पक्ष में बिहार सहित लगभग पूरे देश में हवा चल रही थी।
मैंने वैसे आजाद जी की तारीफ में भी कुछ लेख लिखे थे ।
पर जनसत्ता में उनके खिलाफ में छपे मेरे एक -दो लेख को पढ़कर राजेंद्र माथुर ने किसी से कहा था कि ‘‘भई, सुरेंद्र किशेार आजाद जी के खिलाफ क्यों लिख रहे हैं ?’’
ऐसी छवि बनी थी उनकी।
याद रहे कि माथुर साहब एक ईमानदार संपादक थे।
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पर कांग्रेस के ही कई विधायकांे ने अभियान चला कर आजाद जी को मुख्य मंत्री पद से हटवा दिया।
विधायकों का तर्क था सहकारिता आंदोलन से बिहार में कांग्रेस को बड़ी ताकत मिलती है।
उसी के खिलाफ आजाद जी कार्रवाई कर रहे हैं।
याद रहे कि सहकारी संस्थाओं व उनके नेताओं पर तब लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे।
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23 अक्तूबर 20
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