आसान नहीं होता चुनाव पूर्वानुमान
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सन 1995 के बिहार विधान सभा चुनाव में भी बहुकोणीय
मुकाबला था।
मुख्य मंत्री पद के लिए तब भी कई उम्मीदवार थे।
तब भी चुनाव पूर्वानुमान अनेक व्यक्तियों व पेशेवर आकलन कत्र्ताओं के लिए कठिन हो गया था।
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यहां तक कि इंडिया-टूडे मार्ग सर्वेक्षण के अनुसार 1995 में इंडिया टूडे को भी ‘‘त्रिशंकु बिहार विधान सभा की आहट’’ मिल रही थी।
--इंडिया टूडे-15 मार्च 1995
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पर रिजल्ट क्या हुआ ?
पूर्ण बहुमत से 1995 में लालू प्रसाद की सरकार बन गई।
हां,जहां तक मुझे याद है ,सिर्फ मशहूर पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह ने सही पूर्वानुमान लगाया और लिखा भी था।
क्योंकि सुरेंद्र प्रताप को बिहार के समाज व राजनीति की समझ हमसे बेहतर थी।या फिर वे पूर्वाग्रहग्रस्त नहीं थे।
अन्य इक्के -दुक्के पत्रकारों ने तब ऐसा ही लिखा हो तो
कोई व्यक्ति उसकी कटिंग मुझे उपलब्ध कराएं।
मेरा ज्ञानवर्धन होगा।
सन 1995 में मतदान से पूर्व लालू प्रसाद के निजी सचिव मुकुल कपूर ने मुझसे पूछा था,
‘‘क्या आप भी यही समझ रहे हैं कि लालू जी की सरकार नहीं बनेगी ?’’
‘आप भी’ का इस्तेमाल मुकुल ने इसलिए किया क्योंकि अधिकतर पत्रकारों की सुरेंद्र प्रताप जैसी स्पष्ट राय नहीं थी।
मैंने मुकुल से कहा कि मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
मेरे सामने यह साफ नहीं था कि ‘‘सामाजिक न्याय समर्थक’’ जीतेेंगे या ‘‘अराजक शासन’’ विरोधी।
वैसे एक बात साफ थी कि लालू विरोधी बंटे हुए थे।
चुनाव की ‘पूर्व संध्या’ पर एक जातीय समूह ने अपनी दलीय लाॅयल्टी बदल ली थी।
आखिरकार आरक्षण समर्थक जीत गए।
लालू प्रसाद के तब जितने मुखर समर्थक थे,उससे अधिक मौन समर्थक।
2020 का बिहार विधान सभा चुनाव रिजल्ट बताएगा कि अब मौन समर्थक राजद के पास अधिक हैं या राजग के पास।
अभी तो राजद के मुखर समर्थक ही अधिक नजर आ रहे हैं।
पर,मेरी जानकारी के अनुसार इस बार राजग के पास मौन समर्थक राजद की अपेक्षा अधिक हैं।
हालांकि रिजल्ट ही मेरी इस जानकारी को गलत या सही साबित करेगा।
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--सुरेंद्र किशोर-25 अक्तूबर 20
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