कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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मार्केट काॅम्प्लेक्स के भू तल को पार्किंग के लिए खाली कराने की जरूरत
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यह समस्या बिहार के लगभग सभी नगरों की है।
पटना में तो कुछ अधिक ही गंभीर हैै।
नगर की मुख्य सड़कों पर अधिकतर बहुमंजिले मार्केट काॅम्प्लेक्स के मालिकों ने पार्किंग की जगह नहीं छोड़ी है।
शासन द्वारा पास नक्शों में तो पार्किंग का प्रावधान रहता है।
पर,सरजमीन पर वह गायब पाया जाता है।
उस पार्किंग स्थल पर भी दुकानें खोल दी जाती हैं।
इन सब बातों पर नजर रखने वाले अधिकतर सरकारी अफसरों और कर्मचारियों की रूचि दूसरे ही कामों में रहती है।
मार्केट के पार्किंग स्थल पर दुकानें रहेंगी तो ग्राहक अपने वाहन मुख्य सड़कों पर ही तो पार्क करेंगे।
रोड जाम का वह बड़ा कारण होता है।
अस्सी के दशक में बिहार सरकार ने पटना के मजहरूल पथ पर एक होटल के नीचे पार्किंग स्थल बनवाया था।
पर, उसके बाद निहितस्वार्थियों के दबाव में आकर शासन ने अपने हाथ रोक दिए थे।
जनहित में मौजूदा शासन तंत्र यह काम एक बार फिर करे।
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अवैध कब्जेदारों के मददगार
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भू माफिया ने पटना के दीघा स्थित सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन ‘लूट’ ली।
इस काम में उन्हें शासन के पथभ्रष्ट तत्वांे से पूरी मदद मिली।
इसी तरह का ताजा मामला उत्तराखंड के हलद्वानी का है।
वहां रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर दशकों से अतिक्रमण होता रहा।
फिर भी तंत्र का शीर्ष नेतृत्व तक सोया रहा।
तंत्र के निचले हिस्से ने कानून तोड़कों की मदद की।कुछ नेताआंे ने भी अतिक्रमण करवाया।
शासन के एक हिस्से ने वहां उस जमीन पर मंदिर,मस्जिद,स्कूल, अस्पताल ,मकान, बैंक आदि बनने दिए।
पूरे देश में रेलवे की करीब आठ सौ एकड़ जमीन अवैध कब्जे में है।
अवैध कब्जे का एक शर्मनाक पक्ष है ।
भ्रष्ट तंत्र की मदद से अवैध जमीन पर लोगबाग आसानी से आवास के अलावा मंदिर,मस्जिद,अस्पताल स्कूल बनवा लेते हैं।
साथ ही, सरकारी खर्चे पर शासन की अनुमति से बिजली,सड़क और जालपूर्ति की भी व्यवस्था हो जाती है।
ऐसी जमीन पर अवैध कब्जेदारों की इस तरह मदद करने वाले सरकारी तंत्र के अफसरों -कर्मचारियों की बर्खास्तगी का कानून बनाया जाना चाहिए।
जब तक ऐसा नहीं होगा,तब तक सरकारी जमीन हड़पने का काम इस देश में अनंत काल तक चलता रहेगा।
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चुनाव का एक गणित
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सन 2016 के पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में
कांग्रेस और सी.पी.एम. ने मिलकर तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला किया।
कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं।
पर,सी.पी.एम.को सिर्फ 26 सीटें।जबकि, सी.पी.एम.वहां कांग्रेस से बडी पार्टी मानी जाती थी।
आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
एक जानकार व्यक्ति ने बताया कि सी.पी.एम.के समर्थकों ने तो कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दे दिए।
किंतु कांग्रेस के बहुत सारे समर्थकों ने सी.पी.एम. उम्मीदवारों को वोट नहीं दिए।क्योंकि वाम मोरचा के शासन काल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों के साथ वाम मोरचा का अच्छा व्यवहार नहीं था।
ऐसा ही कुछ सन 2019 में उत्तर प्रदेश में हुआ।लोक सभा चुनाव में बसपा और सपा ने तालमेल करके चुनाव लड़ा।
सपा को सिर्फ 5 सीटें मिलीं जबकि बसपा को दस सीटें मिल गईं।
वहां भी वही कहानी थी।
सपा के शासन काल में बसपा के अनेक लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।
इसलिए अगले किसी चुनाव में आपसी तालमेल करने से पहले संबंधित दल इस बात का पता लगा लें कि उन दलों का सरजमीन पर पहले से कैसा आपसी संबंध रहा है।
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़भूली -बिसरी याद
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बात तब की है जब कर्पूरी ठाकुर मुख्य मंत्री और जगजीवन राम केंद्र में मंत्री थे।
पटना में भोजपुरी सम्मेलन हो रहा था।
दोनों नेता मंच पर थे।
जगजीवन बाबू भोजपुरी में भी बहुत प्रभावशाली भाषण करते थे।
उनके पास भोजपुरी शब्दों का अपार खजाना था।
उन्होंने भोजपुर इलाके की बोली में मर्दागनी और मिजाज में बहादुरी की विस्तार से चर्चा की।
खूब तालियां बटोरीं।
साथ ही, उन्होंने बिहार की कुछ अन्य स्थानीय भाषाओं से भोजपुरी की तुलना भी कर दी थी।
खुद कर्पूरी ठाकुर मैथिली भाषी क्षेत्र से आते थे।
मैथिली प्रेमी कर्पूरी ठाकुर को यह तुलना अच्छी नहीं लगी।
उन्होंने अपने भाषण में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा कि यदि भोजपुरी लोगों में इतना ही दम खम है तो भोजपुरी भाषी ‘बाबूजी’ केंद्र की सरकार में अपना थोड़ा दम खम दिखाकर इस गरीब इलाके को उसका वाजिब हक क्यों नहीं दिलवाते ? जगजीवन राम को ‘बाबू जी’ कहा जाता था।यानी, बिहार में सरकार चला रहे कर्पूरी ठाकुर को तभी यह अच्छी तरह समझ में आ गया था कि आर्थिक मदद के मामले में बिहार के साथ केंद्र भेदभाव करता रहा है।
इस राज्य के पिछड़ापन का यह एक बड़ा कारण रहा है।याद रहे कि तब केंद्र में भी जनता पार्टी की सरकार थी जिस दल के कर्पूरी ठाकुर थे।
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और अंत में
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भरोसेमंद सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि बिहार के नए डी.जी.पी.भट्टी साहब पर राजनीतिक कार्यपालिका या कहीं और से उनके काम में कोई नाजायज हस्तक्षेप नहीं है।
खुद डी.जी.पी.एक कर्तव्यनिष्ठ अफसर रहे हैं।
इस परिस्थिति में बिहार के शांतिप्रिय लोगों में यह उम्मीद बंधती है कि उन्हें अपराधियों से भयग्रस्त होने की अब कोई जरूरत नहीं है।
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प्रभात खबर,पटना
9 जनवरी 23
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