राष्ट्रपति वेंकटरमण ने डा.लोहिया के तैल चित्र
का अनावरण करने से इनकार कर दिया था
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सुरेंद्र किशोर
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वीर सावरकर की बात तो अभी छोड़ ही दीजिए।
मैं डा.राम मनोहर लोहिया की बात करता हूं।
लोहिया ने कभी ब्रिटिश सत्ता को माफीनामा नहीं लिखा।
फिर भी ‘‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’’ की धारणा पालने वाली कांग्रेस के नेता रहे आर.वंेकटरमण जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने संसद के सेंट्रल हाॅल में लोहिया के तैल चित्र का अनावरण करने से साफ इनकार कर दिया था।
बाद में प्रधान मंत्री चंद्रशेखर ने लोहिया के उस चित्र का अनावरण किया।
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तब वेंकट रमण को मधु लिमये ने इसके विरोध स्वरूप एक लंबा व कड़ा पत्र लिखा था।
वह पूरा पत्र कलकत्ता से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘संडे’ में छपा था।मैंने भी उसे पढ़ा था।
उस अंक को मैं अपनी लाइबे्ररी में खोज रहा हूं।मिल जाएगा तो उससे भी उधृत करते हुए कुछ बातें भी लिखूंगा।
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आजादी की लड़ाई के दिनों जवाहर लाल नेहरू जब कांग्रेस अध्यक्ष बने तो उन्होंने पार्टी का ‘विदेशी मामलों का प्रभाग’ बनाया था।नेहरू ने लोहिया को उसका सचिव मनोनीत किया।
नेहरू के प्रधान मंत्री बनने के बाद एक बार लोहिया दिल्ली ़ जेल भेज दिए गए थे।
आमों का मौसम था।
नेहरू जी इंदिरा गांधी के साथ एक दिन भोजन के टेबल पर थे।
उन्होंने पूछा, ‘‘इन्दु,लोहिया को तो आम नहीं मिला होगा।
उसे आम भिजवाना चाहिए।’’
उस पर नेहरू के सचिव एम.ओ.मथाई आम लेकर जेल गए थे।
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लगता है कि बाद के वर्षों में कांग्रेस में ऐसी प्रवृति पैदा कर दी गई जो रही कि कुछ खास नेताओं के अलावा किसी अन्य को आजादी की लड़ाई का श्रेय नहीं दिया जाए।
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13 जनवरी 23
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