आज का चिंतन
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‘‘त्रिदोष मुक्त’’ राजनीति के लिए काम करें
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---सुरेंद्र किशोर--
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राजनीति से वैसे नेताओं और कार्यकर्ताओं का विलोप होता
जा रहा है जो ‘‘त्रि-दोष रोग’’ से ग्रस्त नहीं हैं।
त्रि-दोष यानी,
1.-भ्रष्टाचार,
2.-परिवारवाद
3.-जातीय-धार्मिक वोट बैंक की सौदागरी
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इस माहौल में भी कुछ नेता ऐसे मौजूद व सक्रिय हैं जो इस त्रिदोष से लगभग मुक्त हैं।
चाहे वे जिस किसी दल के हों,जिस किसी विचारधारा के हों,उनकी मदद होनी चाहिए।
अन्यथा, देर-सबेर,एक न एक दिन हमारा लोकतंत्र भारी खतरे में पड़ जाएगा।
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पुनश्चः
यदि बाल ठाकरे परिवार ने उद्धव ठाकरे के बदले राज ठाकरे को आगे बढ़ाया होता ,उधर नेहरू-गांधी परिवार राहुल गांधी के बदले वरुण गांधी को आगे बढ़ाता, तो क्रमशः शिवसेना और कांग्रेस की स्थिति आज की अपेक्षा बेहतर रहती।
4 मई, 1981 को इंदिरा गांधी ने अपनी वसीयत में अन्य बातों के अलावा यह भी लिखा कि
‘‘मैं यह देखकर खुश हूं कि राजीव और सोनिया ,वरुण को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने बच्चों को।
मुझे पक्का भरोसा है कि जहां तक संभव होगा,वो हर तरह से वरुण के हितों की रक्षा करेंगे।’’
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10 जनवरी 23
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