जातिगत गणना का विरोध
खुद सवर्णों के हक में नहीं
मंडल आरक्षण को लेकर
यह बात साबित हो चुकी है
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सुरेंद्र किशोर
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सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी, 2023 को ठीक ही सवाल किया कि ‘‘जातिगत गणना के बिना आरक्षण की नीति सही तरीके से कैसे लागू होगी ?’’
संविधान के अनुच्छेद16(4) के अनुसार , ‘‘पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है,राज्य नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करेगा।’’
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क्या ऐसा प्रावधान करते समय संविधान निर्माताओं का उद्देश्य
हिन्दू समाज को बांटना था ?
संविधान निर्माताओं में अधिकतर लोग तो ऊंची जातियों के ही तो थे।दरअसल वे उदारमना थे।
सन 1931 तक तो जाति के आधार पर गणना हुई ही थी।
क्या उससे तब हिन्दू समाज बंट गया ?
आज किस जाति का उचित प्रतिनिधित्व नहीं ,यह जानने के लिए तरह -तरह की गणनाएं करनी ही पड़ेंगी।
उससे यह भी पता चलेगा कि सवर्णों में भी किसे कितनी सरकारी मदद की जरूरत है।
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1990 तक भारत सरकार में कैसा प्रतिनिधित्व था,उसके लिए आंकड़ा यहां प्रस्तुत है।
इस आंकड़े के बावजूद मंडल आरक्षण का 1990 में कड़ा विरोध हुआ था।
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1990 में केंद्र सरकार के विभागों में पिछड़ी जातियों के कर्मियों की संख्या
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विभाग --- कुल क्लास वन अफसर ---- पिछड़ी
जाति
-----------------------------------राष्ट्रपति सचिवालय --- 48 ------- एक भी नहीं
प्रधान मंत्री कार्यालय-- 35 ------ 1
परमाणु ऊर्जा मंत्रालय-- 34 ------ एक भी नहीं
नागरिक आपूत्र्ति----- 61 ------- एक भी नहीं
संचार ------ 52 ------ एक भी नहीं
स्वास्थ्य -------- 240 ------- एक भी नहीं
श्रम मंत्रालय------ 74 --------एक भी नहीं
संसदीय कार्य---- 18 --- एक भी नहीं
पेट्रोलियम -रसायन-- 121 ---- एक भी नहीं
मंत्रिमंडल सचिवालय-- 20 ------ 1
कृषि-सिंचाई----- 261 ------- 13
रक्षा मंत्रालय ----- 1379 ------ 9
शिक्षा-समाज कल्याण-- 259 ----- 4
ऊर्जा ---------- 641 -------- 20
विदेश मंत्रालय ----- 649 -------- 1
वित्त मंत्रालय---- 1008 ---------1
गृह मंत्रालय---- 409 --------13
उद्योग मंत्रालय-- 169----------3
सूचना व प्रसारण-- 2506 ------124
विधि कार्य-- 143 -- 5
विधायी कार्य --- 112 ------ 2
कंपनी कार्य -- 247 ------6
योजना--- 1262 ----- 72
विज्ञान प्रौद्योगिकी ----101 --- 1
जहाज रानी- 103 -- 1
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----1990 के दैनिक ‘आर्यावत्र्त’ से साभार
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( 27 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान के बावजूद केंद्रीय सेवाओं में अब भी यानी 2023 में भी पिछड़ों का प्रतिनिधित्व औसतन सिर्फ 19 प्रतिशत है।यह भी देखना चाहिए कि कमजोर पिछड़ों का हक मजबूत पिछड़े तो नहीं मार ले रहे हैं। यह भी गणना से ही तो पता चलेगा।जो गणना अभी बिहार में हो रही है,उससे अलग ढंग की सघन गणना भी करानी पड़े तो करानी ही चाहिए।)
1990 का ऊपर लिखित आंकड़़ा उनके लिए भी है जो लोग यह मानते हैं कि 1993 में लागू मंडल आरक्षण
इस देश की अनेक समस्याओं की जड़ में है।
यह आंकड़ा उस समय का है जब ओ.बी.सी. के लिए केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण लागू नहीं था।
जहां प्रत्येक को वोट का समान अधिकार है,वहां 52 प्रतिशत पिछड़ी आबादी के लिए शासन में उतना ही प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए था जो ऊपर का 1990 या 2023 का आकंड़ा बता रहा है ?
वह भी आजादी के 76 साल बाद भी ?
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मंडल आयोग ने सन 1931 की जातीय जन गणना को आधार बनाया था।
1990 में आरक्षण विरोधियों ने इसे भी अपने विरोध का एक आधार बनाया।
सवाल उठाया कि 1931 के पुराने आंकड़े के आधार पर आज कोई निर्णय कैसे हो सकता है ?
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फिर तो 1931 की तरह आज भी जातीय गणना जरूरी है।
लेकिन जब गणना होने लगती है तो विरोध शुरू हो जाता है।
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वी.पी.सिंह की सरकार ने सन 1990 में जब 27 प्रतिशत आरक्षण किया तो देश में हंगामा खड़ा हो गया।
बिहार में पक्ष और विपक्ष में काफी संघर्ष भी हुए।
इस संघर्ष से लालू प्रसाद जैसे सामान्य नेता पिछड़ों के महाबली नेता बन गए।
मेरी समझ से इसका श्रेय आरक्षण विरोधियों को ही जाता है।
विरोध नहीं हुआ होता तो सामान्य ढंग की राजनीति पहले जैसी ही चलती रहती।कोई सवर्ण मुख्य मंत्री भी बन जाता।
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तब बिहार विधान सभा के प्रेस रूम बैठकर मैं लगातार यह कहता रहा कि आरक्षण का विरोध नहीं होना चाहिए।(1993 में तो सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आरक्षण पर अपनी मुहर भी लगा दी।)
मैं आरक्षण विरोधियों से यह भी कहता था कि ‘‘गज नहीं फाड़िएगा तो थान हारना पड़ेगा।’’
कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा को थान हारने वाली मेरी वह बात आज भी याद है।वे हमारे बीच मौजूद हैं।शंका हो तो फोन पर पूछ लीजिएगा।
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अब सवाल है कि थान कैसे हारे ?
यदि मंडल आरक्षण का कड़ा विरोध नहीं होता तो बिहार में कोई सवर्ण योग्य नेता मुख्य मंत्री बनने से वंचित नहीं हो जाता।
यह संयोग नहीं है कि सन 1990 से अब तक कोई सवर्ण बिहार का मुख्य मंत्री नहीं बन सका।
वह भी संयोग नहीं था जब हमंे आजादी मिली तो कांग्रेस ऐसे मामले में अतिवादिता के दूसरे छोर पर थी।
याद कीजिए कांग्रेस को बिहार विधान सभा जब- जब अपने बल पर पूर्ण बहुमत मिला,उसने चुन-चुन कर सिर्फ सवर्णों को ही मुख्य मंत्री बनाया।
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और अंत में
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चैधरी चरण सिंह ने बहुत पीड़ा के साथ एक बार कहा था कि ‘‘मुझे लोग जाट नेता कहते हैं।जबकि हमारे केंद्रीय मंत्रिमंडल में सिर्फ एक ही जाट था,वह भी राज्य मंत्री था।दूसरी ओर, राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में 15 ब्राह्मण कैबिनेट मंत्री हैं।फिर भी उन्हें कोई जातिवादी नहीं कहता।’’
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जहां तक प्रतिभा की बात है,आजादी के तत्काल बाद की सरकारों में शामिल सत्ताधारी नेताओं में सारे प्रमुख नेता व अफसर आॅक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में पढ़े थे।फिर भी सरकारी 1 रुपया घिसकर 1985 आते- आते सिर्फ 15 पैसे ही रह गया था।यानी 100 सरकारी पैसे दिल्ली से चलते थे,पर गांव तक पहुंचते-पहुंचते सिर्फ 15 पैसे रह जाते थे।
बाकी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते थे।
अन्य विफलताएं भी सामने आईं।
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21 जनवरी 23
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