बी.बी.सी.की पक्षपाती डाक्युमेंट्री का
लाभ अंततः भाजपा को मिलेगा
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इंदिरा गांधी और लालू प्रसाद को भी ऐसे ही
मामलों में चुनावी लाभ मिल चुके हैं।
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सुरेंद्र किशोर
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जहां कम लोग मरे ,वहां के बारे में तो बी. बी. सी. की डाक्युमेंट्री फिल्म आ गई।
पर,जहां बहुत अधिक लोगों का एकतरफा संहार हुआ,वहां के बारे में चुप्पी रही।
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कम से कम दो मामलों में इस देश में पहले भी ऐसा लाभ उन्होंने उठाया जिनका विरोध हुआ।
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सन 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत आरक्षण की घोषणा हुई।
आरक्षण विरोधियों ने आंदोलन शुरू कर दिया।
बिहार के तब के मुख्य मंत्री लालू प्रसाद ने लोगों से कहा कि ‘‘हम तो सामाजिक अन्याय को समाप्त करना चाहते हैं और आरक्षण विरोधी लोग हमें ही गद्दी से हटा देना चाहते हैं।’’
52 प्रतिशत पिछड़ी आबादी पर लालू प्रसाद की बातों का असर हुआ।नतीजतन 1991 के लोक सभा चुनाव में लालू प्रसाद के दल और उनके सहयोगी दलों ने बिहार की अधिकतर लोक सभा सीटें जीत लीं।
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उससे पहले सन 1969 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया।
उनकी सरकार ने पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स व विशेषाधिकार समाप्त किए।
14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।
आम लोगों को लगा कि सचमुच इंदिरा गांधी गरीबी हटाना चाहती है।
लोगों ने इंदिरा कांग्रेस को लोक सभा चुनाव में भारी बहुमत से जिता दिया।
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अब आप देश के मौजूदा हालात पर गौर करिए।
बी.बी.सी.ने गलत तथ्यों और कुतर्कों पर आधारित डाक्युमेंट्री बनाई।
इस देश के भाजपा विरोधी लोगों ने प्रतिबंध के बावजूद उसे प्रदर्शित किया।
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आज इस देश के बहुसंख्य लोगों को यह लग रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार बड़े- बड़े घोटालेबाजांे और जेहादियों-आतंकियों से कठिन लड़ाई लड़ रही है।
दूसरी ओर, तरह-तरह के तत्व मोदी सरकार को येन केन प्रकारेण अपदस्थ करना चाहते हैं।
इंडिया टुडे -सी.वोटर के ताजा सर्वे के अनुसार ‘‘देश का मिजाज’’ यह है कि आज लोस का चुनाव हो जाए तो भाजपा को 298 सीटें मिलेंगी।
सर्वे के अनुसार 67 प्रतिशत लोग मोदी सरकार के काम काज से बेहद संतुष्ट हैं।
वैसे तो 2024 के लोस चुनाव में अभी दर है।
यदि इस बीच पूरा प्रतिपक्ष एकजुट हो जाए तो यह आंकड़ा बदल सकता है।
किंतु क्या पूरे प्रतिपक्ष को चुनाव के लिए एकजुट करना आसान काम है ?
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गुजरात दंगा पूर्व नियोजित
साजिश नहीं --सुप्रीम कोर्ट
24 जून, 2022
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2002 का गुजरात दंगा बनाम
1984 का सिख नर संहार
--1989 का भागलपुर दंगा।
मृतकों के आंकड़ों की तुलना कर लीजिए
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गुजरात दंगे के दौरान पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी की जान भीड़ से बचाने के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को भी फोन किए गए थे।
किंतु दंगाइयों से पूर्व सांसद को नहीं बचाया जा सका।
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सन 1984 में दिल्ली में जब सिख संहार हो रहे थे तो तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपने रिश्तेदारों और मित्रों को दंगाइयों से बचाने के लिए कई बार प्रधान मंत्री राजीव गांधी और गृह मंत्री पी वी नरसिंह राव को फोन किए।
उनलोगों ने राष्ट्रपति तक के फोन नहीं उठाए।
ज्ञानी जैल सिंह ने बाद में अपने जीवनी लेखक से कहा था कि राजीव गांधी के प्रधान मंत्री बनने के दो-तीन दिनों के बाद से ही उनसे मतभेद शुरू हो गए थे।
क्या मतभेद का यही कारण था कि राष्ट्रपति के रिश्तेदारों-मित्रों को प्रधान मंत्री दंगाइयों से नहीं बचा सके ?
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‘खुशामद सिंह’ के नाम से चर्चित पत्रकार-लेखक खुशवंत सिंह के फोन भी किसी सत्ताधारी हस्ती ने 1984 में नहीं उठाए जबकि नेहरू-गांधी परिवार खासकर संजय गांधी का इमरजेंसी में भी खुशवंत सिंह ने समर्थन किया था।
1984 में खुशवंत सिंह भी दंगाइयों से अपने लोगों की जान बचाना चाहते थे।
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मनमोहन सिंह ने सन 1984 में सेना नहीं बुलाने
के लिए गृह मंत्री पीवी नरसिंह राव को दोषी माना।
याद रहे कि मनमोहन ने
प्रधान मंत्री राजीव गांधी को दोषी नहीं माना।
आश्चर्य है।
यदि वे उन्हें दोषी मान लेते तो 2004 में प्रधान मंत्री कैसे बनते ?
याद रहे कि एक से 4 नवंबर 1984 तक दिल्ली में सिख संहार होता रहा।पुलिस बल मूक दर्शक या मददगार बना रहा।
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पर जब 2002 में 59 कार सेवकों को गोधरा स्टेशन पर ट्रेन में पेट्रोल छिड़क कर जिन्दा जला देने के बाद धरती हिली तो कांग्रेसी तथा दूसरे अनेक वोट लोलुप दलों व पैसालोलुप या दिग्भ्रमित बुद्धिजीवियों ने आसमान सिर पर उठा लिया।
काश ! इसी तरह का उनका रुख-रवैया यदि सिख संहार व भागलपुर दंगे पर भी रहता तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सांप्रदायिक तत्व सिर नहीं उठाते।
इसी तरह के दोहरे मापदंड के कारण नरेंद्र मोदी आज प्रधान मंत्री हैं और आगे नहीं रहेंगे,इसकी कोई गारंटी भी नहीं।
क्योंकि इस देश के ढोंगी सेक्युलरिस्टों का दोहरा मापदंड आज भी कायम है।
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सिख संहार के केस में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा पर मुहर लगाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 दिसंबर, 2018 को कहा था कि
‘‘ 1 से 4 नवंबर तक पूरी दिल्ली में 2733 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
उनके घरों को नष्ट कर दिया गया था।
देश के बाकी हिस्सों में भी हजारों सिख मारे गए थे।सिखों का एकतरफा संहार हुआ था।
इस भयावह त्रासदी के अपराधियों के बड़े समूह को राजनीतिक संरक्षण का लाभ मिला और जांच एजेंसियों से भी उन्हें मदद मिली।’’
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अब गुजरात दंगे और 1989 के भागलपुर दंगे की तुलना करते हैं।
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मनमोहन सिंह सरकार ने संसद को बताया था कि गुजरात दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के 790 और बहुसंख्यक समुदाय के 254 लोग मरे।
गुजरात दंगे में दंगाई भीड़ को कंट्रोल करने की कोशिश में
200 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
गुजरात पुलिस ने दंगाइयों पर जो गोलियां चर्लाइं,उस कारण भी दर्जनों लोग मारे गए थे।
गुजरात में दंगा में
सिर्फ नौ जानें जाने के बाद ही वहां सेना सड़कों पर थी।
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इसके विपरीत 1989 के दंगे में भागलपुर में अल्पसंख्यक समुदाय के 900 और बहुसंख्यक समुदाय के 100 लोग मरे।
पुलिस की गोलियों से वहां कितने दंगाई मारे गए ?
मुझे नहीं मालूम।भागलपुर दंगे को हैंडिल करने में कांग्रेस सरकार की भूमिका विवादास्पद रही।
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अधिक क्रूर दंगा 2002 में गुजरात में हुआ या 1989 में भागलपुर में ?
आंकड़े तो बता रहे हैं कि भागलपुर में अधिक क्रूरता हुई।
क्योंकि जहां अपेक्षाकृत अधिक लोगों को मारा जाता है,उसे अधिक क्रूर कहा जाता है।
फिर भी बी.बी.सी.ने कम हिंसा वाली जगह पर फिल्म बनाई और अधिक हिंसा को नजरअंदाज किया।
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फिल्म बनाना कोई सामान्य बात नहीं है।
इसके पीछे गूढ़ रहस्य है।
क्या रहस्य है?
पता लगाइए।
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28 जनवरी 23
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