मंगलवार, 31 जनवरी 2023

    ‘‘इंडिया टूडे’’ के इस प्रशंसक पाठक का हाल

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      सुरेंद्र किशोर 

लगता है कि इंडिया टूडे के ‘‘हुक्मरानों’’ को अपने प्रकाशन के प्रसार में कोई खास रूचि नहीं है।

मैं पहले ‘दिनमान’ को पसंद करता था।

अब मेरी पसंदीदा पत्रिका है--‘इंडिया टूडे’।

क्योंकि इसकी विश्वसनीयता अपेक्षाकृत अधिक है।

मेरे निजी पुस्तकालय में सन 1982 से ‘इंडिया टूडे’ के अंक मौजूद है।

 पहले अंग्रेजी संस्करण और बाद में हिन्दी संस्करण।

2015 से जब मैं पटना के बगल के गांव में रहने लगा,तब से मुझे ‘इंडिया टूडे’ मिलने में काफी दिक्कत होने लगी।

क्योंकि अखबारों के हाॅकर यहां नहीं पहुंचाते।

इसलिए मैंने सोचा कि इंडिया टूडे के मुख्यालय से ही पत्र-व्यवहार करके शुल्क भेज कर डाक से उसे मंगवाने का प्रबंध करूं।

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  मैंने सबसे पहले एक सज्जन पत्रकार को मेल भेजा।

वे अब इंडिया टूडे -हिन्दी के संपादकीय विभाग में बड़े पद पर हैं।

उन्होंने मेरे मेल का जवाब तक नहीं दिया।

 जबकि, कुछ साल पहले मना करने के बावजूद नगर से दूर स्थित मेरे आवास पर आ गए थे।

 उन्होंने मेरा लंबा इंटरव्यू लिया था।सहृदय व्यक्ति लगे थे।

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पटना के मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र कहा करते हैं कि दिल्ली वालों का यही हाल है।

उन्हें सिर्फ अपने काम से मतलब होता है।

इसीलिए यदि उनका कोई काम होता है तो मैं उसके बदले पहले ही भरपूर पैसे उनसे ले लेता हूं। 

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मैंने इंडिया टूडे के प्रसार विभाग के व्हाट्सेप्प पर भी संदेश भेजा।कोई जवाब नहीं मिला।

तीन दिन पहले इ मेल पर एक संदेश भेजा।

अब तक कोई जवाब नहीं।

अब इसका क्या अर्थ लगाया जाए ?!!

मैं चाहता था कि मेरे निजी-पारिवारिक पुस्तकालय में 

इंडिया टुडे की आवक बनी रहे ताकि हमारी अगली पीढ़ियां भी देखंे कि हमारे यहां एक अच्छी पत्रिका भी उपलब्ध है।

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31 जनवरी 23


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