जार्ज-नीतीश संबंध को लेकर
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सुरेंद्र किशोर
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नीतीश कुमार के आलोचक अक्सर यह आरोप लगा देते हैं कि
नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस की उपेक्षा की।
इस संबंध में कभी -कभी कड़े शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
मेरा मानना है कि इस संबंध में आलोचकों को जो कहना हो,वे कहें।
उन्हें रोकने वाला मैं कौन होता हूं !
मैं न तो नीतीश कुमार के दल में हूं और न ही उनका प्रवक्ता हूं।
हां,समकालीन पत्रकार और जार्ज का कभी सहकर्मी होने के नाते मेरी भी इस संबंध में कुछ जानकारियां हैं,जो मैं आम लोगों से आज शेयर करना चाहता हूं।
दरअसल,मेरी जानकारी के अनुसार, नीतीश ने जार्ज को नहीं छोड़ा,बल्कि 2005 के आसपास जार्ज ने ही नीतीश को छोड़ दिया था।
मेरी जानकारी के अनुसार ,जार्ज साहब नीतीश के बदले तब दिग्विजय सिंह(बांका) को बिहार का मुख्य मंत्री बनवाना चाहते थे।
ऐसे में नीतीश कुमार क्या करते ?!
एक राजनेता जो करता है,वही नीतीश ने भी किया।
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इस अप्रिय प्रसंग के बावजूद उनके जीवन की संध्या बेला में,जब वे शारीरिक रूप से अशक्त हो रहे थे, नीतीश कुमार ने
जार्ज को बिहार से राज्य सभा का सदस्य बनवा दिया।
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जार्ज फर्नांडिस का मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूं।
उनके अन्य कई साथियों की तरह ही मैंने भी आपातकाल में भूमिगत होकर जार्ज के साथ ‘डायनामाइटी अभियान’ चलाया था।
जान हथेली पर लेकर चलने वाला वह समय था।
मैंने जार्ज जैसा देशभक्त,ईमानदार व बहादुर इंसान राजनीति में बहुत ही कम देखे हैं।अब तो और भी नहीं।
लेकिन यह बात भी है कि कोई व्यक्ति पूर्ण नहंीं होता।
न मैं, न आप, और न जार्ज।
मैं कुछ अन्य बड़े नेताओं के अलावा जार्ज के साथ के अपने अनुभव भी विस्तार से बाद में लिखूंगा।
तब बातें और साफ होंगी।
मेरा मानना है कि सन 2005 के बिहार की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति के आकलन में जार्ज गलती कर गए थे।
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12 जनवरी 23
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