जन्म दिन की पूर्व संध्या पर
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कर्पूरी ठाकुर की बेमिसाल विनम्रता
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सुरेंद्र किशोर
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सन 1972 की बात है।कर्पूरी ठाकुर बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
विधान सभा भवन स्थित अपने आॅफिस के मुख्य टेबल पर उनके निजी सचिव व कर्पूरी जी के लिए दोपहर का खाना आया।
निजी सचिव खाना खाकर पहले ही उठ गया।हाथ धोने बेसिन की ओर चला गया।
उसने अपनी जूठी थाली टेबल पर ही छोड़ दी थी।
कर्पूरी जी ने जब अपना खाना खत्म किया तो उन्होंने एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से अपने निजी सचिव की थाली उठाई और उसे कमरे के बाहर रख दिया।कर्पूर्री जी भी हाथ धोने चले गए।
बेसिन थोड़ा दूर था।
इस बीच निजी सचिव आ गया।
वहां पहले से बैठे प्रणव चटर्जी ने निजी सचिव से पूछा, ‘आपको पता है कि आपकी थाली किसने उठाई ?’
निजी सचिव ने कहा कि ‘दुर्गा ने उठाया होगा।दुर्गा कैंटीन का स्टाफ था।’
बक्सर के पूर्व विधायक प्रणव जी ने कहा कि ‘नहीं आपकी जूठी थाली खुद कर्पूरी जी उठाई और बाहर रखा।’
यह सुनकर निजी सचिव शर्मिंदा हो गया।उसे बहुत बड़ी शिक्षा जो मिल गयी थी।
यदि कर्पूरी जी की जगह कोई अन्य नेता, खास कर आज का कोई नेता होता ,या कोई साधारण विधायक भी होता तो उस स्थिति में वह क्या करता ?
अनुमान लगा लीजिए।
अब पूछिए कि वह निजी सचिव कौन था ?
भई,वह व्यक्ति मैं ही था।
मैं राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सन 1972 के प्रारंभ से 1973 के मध्य तक कर्पूरी जी का निजी सचिव था।
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सुरेंद्र किशोर
22 जनवरी 23
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