इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता
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सुरेंद्र किशोर
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‘इंडियन एक्सप्रेस’ अब भी एक जीवंत अखबार है।
उसे मैं रोज सुबह पढ़े बिना नहीं रह सकता।
अब तो वह पटना से भी छपता है।
एक्सप्रेस अपनी पेशेवर गरिमा बनाए हुए है।
हालांकि रामनाथ जी गोयनका-अरूण शौरी के जमाने वाली बात नहीं।वैसे भी वह दौर ही अलग था।
पर,यही बात मैं आज के ‘जनसत्ता’ के बारे में नहीं कह सकता।
मैंने 1983 से 2001 तक ‘जनसत्ता’ में काम किया।
जनसत्ता को मैंने अपना ‘बेस्ट’ दिया।
जनसत्ता ने भी मुझे बहुत कुछ दिया।
इसलिए मैं ‘जनसत्ता’ से आज भी एक विशेष तरह का लगाव महसूस करता हूं।
जनसत्ता की जीवंतता में कमी के लिए उसके आज के संपादक नहीं बल्कि प्रबंधन अधिक जिम्मेदार हैं।
यदि एक्सप्रेस की खास खबरें जनसत्ता को आज भी उपलब्ध होने लगें तो इस अखबार में भी तेवर आ जाएगा।
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प्रभाष जोशी के जमाने में भी एक्सप्रेस वाले अपनी खास खबरें जनसत्ता से शेयर करना नहीं चाहते थे।
किंतु प्रभाष जी ने उच्चत्तम स्तर से कहलवा कर एक्सप्रेस की खबरें हासिल करने का प्रावधान करा दिया था।
यह काम आज भी क्यों नहीं हो सकता ?
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एक्सप्रेस वालों को यह समझना चाहिए कि आपकी खबरें जनसत्ता में छप जाने से एक्सप्रेस के ग्राहक को जनसत्ता अपनी ओर नहीं खींच लेगा।
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अंग्रेजी अखबार के एक मशहूर कार्टूनिस्ट यह नहीं चाहते थे कि उनके कार्टून उस अखबार समूह के भाषाई संस्करण में छपे।
उससे वे अपनी तौहीन मानते थे।
उम्मीद है कि एक्सप्रेस में यह भावना नहीं होगी।
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6 जनवरी 23
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