लालू प्रसाद का बड़प्पन
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सुरेंद्र किशोर
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यह बात तब की है जब पिछली बार लालू प्रसाद पटना आए थे।
मेरे एक मित्र उनसे मिलने गए हुए थे।
लालू जी ने उनसे पूछा,‘‘सुरेन्दर भाई तोहरे बगल में रहते हैं ?’’
उन्होंने कहा कि ‘‘हां’’
लालू जी ने कहा कि ‘‘उनका के हमर सलाम कहीह !’’
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मुझे जब यह बात बताई गई तो मैंने सोचा कि सिंगापुर से जब वे लौटेंगे तो मैं उनसे मिलूंगा,यदि वे समय देंगे तो।
खैर, यह तो सामान्य शिष्टाचार वाली बात हुई।
इससे बड़ी बात आगे बताऊंगा जिसे मैं उनका बड़प्पन मानता हूं।
थोड़ी आपसी संबंध की पृष्ठभूमि बता दूं।
1969 से मैं लालू जी को जानता हूं।
उस साल बिहार समाजवादी युवजन सभा के जो तीन संयुक्त सचिव चुने गए थे उनमें मैं, लालू जी और शांति देवी (बेगूसराय)थीं।
शिवानंद तिवारी सचिव चुने गए थे।
बाद के वर्षों में भी यदाकदा लालू प्रसाद से मुलाकातें होती रहीं,खास कर जेपी आंदोलन के दिनांे में भी।
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वे सन 1990 में मुख्य मंत्री बने ।
एक संवाददाता के रूप में मेरी उनसे मुलाकात होने लगी।
एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि ‘‘सहयोग कर।मिलजुल के राज चलावे के बा।’’
मैंने कुछ कहा नहीं।
दरअसल उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि मेरी सक्रिय राजनीति में अब कोई रूचि नहीं है।
खैर, जब उनकी सरकार की कमियां मुझे नजर आने लगीं तो मैं ‘जनसत्ता’ में एक पेशेवर पत्रकार के रूप में लिखने लगा।
उसी अनुपात में वे मुझसे नाराज होने लगे।
हालांकि मंडल आरक्षण का लालू प्रसाद ने जिस तरह बचाव किया और आरक्षण विरोधियों के खिलाफ वे जिस तरह हमलावर रहे,उस काम के लिए मैं उनका प्रशंसक
रहा।मैं सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण को जरूरी मानता रहा हूं।
तदनुसार मैं आरक्षण के पक्ष में लिखता रहा।किंतु मैं उनके अन्य विवादास्पद कामों का बचाव नहीं कर सकता था,नहीं किया।
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दरअसल जब कोई पत्रकार किसी नेता की गलतियों को उजागर करता है तो उस नेता के मन में
कई तरह के विचार आते हैं-
जैसे
1.पत्रकार जातीय भावना से लिख रहा है।
2.-मेरा राजनीतिक विरोधी के इशारे पर लिख रहा है
3.-मेरा भयादोहन करके मुझसे कुछ पाना चाहता है।
आदि .....आदि
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2005 में लालू प्रसाद की पार्टी बिहार की सत्ता से हट गई।
उसके बाद के वर्षों में भी लालू प्रसाद मेरे बारे में जानते-सुनते रहे।
उन्होंने देखा कि अब भी सुरेंदर के चाल,चरित्र चिंतन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तो मेरे बारे में उनके विचार बदले।जिसमें बड़प्पन होता है,वह असलियत जान लेने के बाद अपना विचार बदल लेता है।
बदले हुए विचार के तहत लालू प्रसाद ने कई माह पहले मेरे बारे में जो विचार प्रकट किए,वह
मेरे लिए ‘‘भारत रत्न’’ के समान है।
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एक पुस्तक लेखक लालू प्रसाद से मिलने रांची जेल में गये थे।
वे जेपी आंदोलन पर लिखना चाहते थे।
उनसे लालू जी ने कहा कि ‘‘यहां काहे आ गए।पटना में सुरेंदर किशोर से बात कर लीजिए।
जेपी आंदोलन का सब कुछ वह जानता है।ईमानदारी से सब बात बता देगा ।उसमें किसकी कैसी भूमिका थी,वह सब जानता है।
अंत में लालू जी ने मेरे बारे में कहा कि ‘‘सुरेन्दर संत है,फकीर है , 24 कैरेट का सोना है।’’
(लगे हाथ यह भी बता दूं कि अधिकतर पत्रकार सहित समाज के अन्य मुखर वर्ग के लोगों के चाल,चरित्र,चिंतन के बारे में वह नेता सबसे अधिक जानता है जो कम से कम 5 साल तक भी राज्य का मुख्य मंत्री रह चुका हो।अधिक दिनों तक मुख्य मंत्री रह जाने वाला नेता तो और भी अधिक जानता है।)
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अभी वे स्वास्थ्य लाभ कर रहे है।
मैं लालू प्रसाद के दीर्घ जीवन की कामना करता हूं।
इसलिए कि वे बिहार को सतत विकसित होते हुए लंबे समय तक अपनी आंखों से देखें।
जिस तरह मेरे बारे में उनके विचार बदले,उसी तरह वे अपने एक पुराने विचार को भी बदल लें ।
जब वे सत्ता में थे तो उनका यह विचार था कि ‘‘विकास से वोट नहीं मिलते,बल्कि सामाजिक समीकरण से वोट मिलते हैं।’’
अब वे खुद देख लें कि किस तरह विकास से भी वोट मिलते हैं और सामाजिक समीकरण की भी उसमें भूमिका रहती है।
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29 जनवरी 23
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