महाराणा प्रताप की याद में
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जो घास की रोटी खाना मंजूर करता है, फिर भी अपने सिद्धांत से समझौता नहीं करता,उसे उसी तरह का सम्मान मिलता है जिस तरह का सम्मान महाराणा प्रताप व उनके वंशज को मिलता रहा है।
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कुछ नमूने प्रस्तुत हैं--
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भारत की आजादी के बाद तक भी राजस्थान के सभी राजा, महाराणा प्रताप के वंशज को शाष्टांग प्रणाम
करते थे।
सभी राजा यानी सभी राजा !
पता नहीं, अब क्या स्थिति है ?
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अंग्रेजी सरकार ने जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार में हाजिर होने से सिर्फ महाराणा प्रताप के वंशज को छूट दी थी।
क्योंकि सारे भारतीय राजाओं की यह मजबूरी होती थी कि वे ब्रिटिश किंग के सामने झुककर उन्हें नजराना दें।
चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे,इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी।(-पुस्तक नेहरू के साथ तेरह वर्ष-एम.ओ.मथाई से)
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आजादी के बाद एकमात्र अपवाद सामने आया था।
महाराणा के वंशज को ‘महाराज प्रमुख’ बनाया गया।
अन्य राजे-महाराजे ‘राज प्रमुख’ ही बने।
जबकि, जयपुर अपेक्षाकृत बड़ा राज्य था।
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प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महाराणा के वंशज को दिल्ली बुलाकर अपने साथ प्रधान मंत्री आवास में ठहराया और उनकी समस्या दूर की थी।
प्रधान मंत्री की ओर से ऐसा सम्मान शायद ही किसी को मिलता था।
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यह सब क्यों हुआ ?
क्योंकि महाराणा प्रताप एक मात्र राजा थे जिन्होंनंे घास की रोटी भले खाई, किंतु अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
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बिहार सरकार ने यह तय किया है कि पटना के मुख्य मार्ग यानी मजहरूल हक पथ,यानी, फ्रेजर रोड पर महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाई जाएगी।
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बिहार विधान परिषद के सदस्य व बिहार जदयू के उपाध्यक्ष संजय सिंह महाराणा की याद में स्वाभिमान समारोह का आयोजन करने जा रहे हैं।
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कहानी का मोरल ??
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पर,सवाल है कि महाराणा प्रताप के जीवन से आज के नेताओं व अन्य लोगों को कैसी शिक्षा लेनी चाहिए ?
जवाब है कि सबसे बड़ी शिक्षा तो यही अपेक्षित है कि भले ‘‘घास की रोटी खानी पड़े’’ किंतु वे सत्ता सुख के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता न करें।
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क्या ऐसी शिक्षा ग्रहण करना आसान है ?
आसान तो नहीं है किंतु असंभव भी नहीं है।
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सुरेंद्र किशोर
14 जनवरी 23
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