नफरती बोल की अलग-अलग परिभाषाएं
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सुरेंद्र किशोर
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अकबरुद्दीन ओवैसी ने भड़काऊ बयान दिया था कि
हम 25 करोड़, तुम 100 करोड़ ,15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो तो पता चल जाएगा कि कौन कितना ताकतवर है।
इसके बाद भी कोर्ट ने उसे बरी कर दिया।
अगर यही अमेरिका में बोला होता तो उसे सजा दी जाती।
---कल्पना श्रीवास्तव,वकील
राष्ट्रीय सहारा,पटना संस्करण
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सांसद सह बैरिस्टर असदुद्दीन ओवेसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन का यह भाषण टी.वी.चैनलों पर तब पूरी दुनिया ने देखा-सुना था।
इसके बावजूद तेलांगना के मुख्य मंत्री के. चंद्रशेखर राव की पुलिस को कोर्ट में पेश करने के लिए अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।
याद रहे कि ओवैसी की पार्टी और चंद्रशेखर राव की पार्टी में गाढ़ी देास्ती है।
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चंद्र शेखर राव प्रधान मंत्री पद के गंभीर उम्मीदवार हैं।
यदि चंद्रशेखर राव प्रधान मंत्री बन गए तो जो काम ओवैसी बंधु हैदराबाद में कर रहे हैं,वह काम वे पूरे देश में करेंगे।
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वैसे भी सिर्फ चंद्रशेखर राव को दोष क्यों दिया जाए ?
मुस्लिम वोट के लिए किसी भी हद तक जाकर राष्ट्रद्रोहियों की मदद करने वाले इस देश के किसी भी तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दल ने अकबरुद्दीन की उस साम्प्रदायिक धमकी की निन्दा नहीं की थी।किसी ने की थी तो बताइए।मैं खुद को सुधार लूंगा।बात -बात में जहर उगलने वाले सिनियर
ओवैसी से पत्रकारों ने जब -जब उनके अनुज की करतूत के बारे में पूछा तो बैरिस्टर साहब ने कहा कि मामला कोर्ट में है।वे जानते थे कि कोर्ट में कुछ होने वाला नहीं है।
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कांग्रेस के राहुल गांधी के कथित ‘‘नफरती बोल’’ के दायरे में अकबरुद्दीन का कुबोल कभी शामिल नहीं रहा है।
सिर्फ प्रज्ञा सिंह ठाकुर का कुबोल राहुल गांधी के लिए नफरती बोल है।
अकबरुद्दीन के बोल राहुल के लिए मुहब्बत के बोल हैं।
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याद रहे कि अकबरुद्दीन अन्य अवसरों पर भी जन सभाओं में हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणियां कर चुके हैं।
सेक्युलर दलों के ऐसे ही दोहरे मापदंड का चुनावी लाभ भाजपा को मिलता रहा है।
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न्यायसंगत बात तो यह है कि भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अकबरुद्दीन की समान रूप से आलोचना की जानी चाहिए।
दोनों को अदालतांे से यथासंभव कठोर सजा दिलवाई जानी चाहिए।पता नही,ं इस देश में इस तरह की संतुलित कार्रवाई
कब होगी !!
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10 जनवरी 23
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