गुरुवार, 18 जनवरी 2018

  यदि कोई पत्रकार किसी नेता की  जीवनी या आत्म कथा 
में दिए गए तथ्यों या तारीखों  को उधृत करते हुए जल्दीबाजी में  कोई लेख लिखेगा तो वह कभी -कभी  धोखा भी खा सकता है।
मैं भी खा चुका हूंंं।हां, ऐसी पुस्तकों में कई बातें ऐसी होती हैं जो अन्यत्र नहीं मिलेंगी।
  कुछ भी लिखने से पहले  लेखक को  क्राॅस चेक कर लेना चाहिए।
 हाल में मैंने एक बड़े कांग्रेसी नेता को उधृत करते हुए  सर गणेश दत्त से उनकी एक मुलाकात की चर्चा लिख दी।बताया गया था कि मुलाकात 1944 में हुई।हालांकि सर गणेश दत्त का निधन 1943 में ही हो चुका था।मुझे झेलना पड़ा।
 किसी बड़े बुजुर्ग नेता से उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि उन्हें ईस्वी -तारीख वगैरह याद रहे।
कई बार मैं भी साल -तारीख भूल जाता हूं।आंशिक स्मृति दोष किसी में भी हो सकता है।
मैं तो भूलने पर आम तौर पर किसी से पूछ लेता हूं या संंबंधित कागजात देख लेता हूं यदि उपलब्ध है तो।
यह काम नेता के सहयोगियों को करना चाहिए।
एक अन्य बड़े कांग्रेसी नेता ने कुछ साल पहले अपने संस्मरण लिखे।अच्छे हैं।
उन्होंने बहुत हिम्मत से ऐसी -ऐसी बातें लिखी हैं जो कुछ लिखने का साहस कम ही लोगों में है।
पर उन्होंने  सामान्य राजनीतिक जानकारियों के मामले में भी भूल कर दी।किसी जानकार से पूछ लेते तो वह आसानी से बता देता।
  उन्होंने लिखा कि 1967 में ‘महामाया बाबू अपने दल के एकमात्र विधायक होने के बावजूद संयुक्त विधायक दल के नेता बन कर बिहार के मुख्य मंत्री बन गए।’
जबकि सच्चाई यह है कि 1967 में विधान सभा चुनाव में महामाया बाबू सहित 29 विधायक  जनक्रांति दल के टिकट पर चुने गए  थे ।इतना ही नहीं उस बड़े नेता ने, जो  केंद्र मंे मंत्री भी रह चुके हैं,  लिखा कि जार्ज फर्नाडिस जो एक दिन पहले मोरारजी देसाई सरकार की तारीफ कर रहे थे,दूसरे दिन चरण सिंह की सरकार में शमिल हो गए।पर, सच यह है कि जार्ज चरण सिंह सरकार में थे ही नहीं।
  बिहार के ही दो बड़े दिवंगत नेताओं ने अपने संस्मरण में 1955 के बी.एन.काॅलेज गोली कांड का साल अलग- अलग लिखा है।एक ने 1956 लिखा तो दूसरे ने 1955 दर्ज किया।
सही 1955 ही है जिसमें दीनानाथ पांडेय पुलिस गोली के शिकार हो गए थे।
पर जो नया व्यक्ति दोनों नेताओं की किताबें पढ़ेगा ,वह तो नरभसा ही जाएगा।
  बिहार के एक मशहूर कम्युनिस्ट नेता द्वारा लिखवाई गयी अपनी जीवन कथा की कुछ पंक्तियां पढिए--‘सन 1971 में जो लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ था,उस समय बिहार में सरदार हरिहर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस @ओ @्रवाली सरकार बन गयी थी।’
अब सही बात जानिए।
1971 में चुनाव के समय कर्पूरी ठाकुर मुख्य मंत्री थे।हरिहर सिंह 1969 के प्रारंभ में  जब मुख्य मंत्री बने थे तब तक कांग्रेस में विभाजन ही नहीं हुआ था।
कांग्रेस @ओ @तो विभाजन के बाद बना।
कम्युनिस्ट नेता ने यह भी लिख दिया कि 1967 में बी.पी.मंडल ने एस.एस.पी.तथा कुछ अन्य दलों से विधायकों को  तोड़ा और मंडल मुख्य मंत्री बन गए।पर कम्युनिस्ट पार्टी से कोई नहीं टूटा।जबकि सी.पी.आई. के तब के हरसिद्धि के विधायक एस.एन.अब्दुल्ला  भी दल बदल करके बी.पी.मंडल सरकार में मंत्री बन गए थे।अब्दुल्ला ने मुझे बाद में बताया था कि उन्होंने सी.पी.आई.क्यों छोड़ा था।
उत्तर प्रदेश के एक समाजवादी नेता ने एक बार मुझे कई किताबें दी थीं।उनमें समाजवादी आंदोलन व कुछ नेताओं का इतिहास है।उनमें मुझे इतनी त्रुटियां मिलीं कि मैंने उसे पढ़ना बीच में ही छोड़ दिया।समाजवादी आंदोलन का  इतिहास मैंने जितना भी पढ़ा है, थोड़ा ही पढ़ा है ,उनमें  प्रो.विनोदानंद सिंह और डा.सुनीलम् लिखित पुस्तक मुझे प्रामाणिक लगी। 
खैर मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कोई बड़े नेता आत्म कथा लिखते हैं या  जीवनी लिखवाते हैं तो तथ्यों और तारीखों पर ध्यान दें क्योंकि बड़े नेताओं की जीवनी या आत्म कथा को लोगबाग पढ़ना चाहते हैं।कुछ त्रुटियों को छोड़ दें तो मुझे तो उनसे बहुत सी जानकारियां मिलती हैं।
मैंने जान बूझ कर नेताओं के नाम नहीं लिखे हैं।कृपया पूछिएगा मत।
   



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