रविवार, 21 जनवरी 2018


वो रेल मंत्री जो किसी साधारण रेल यात्री की तरह रहता था  
            
1977 में जब केंंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के लिए फोन पर बुलावा आया,तो उस समय मधु दंडवते अपने बाथ रूम में अपने कपड़े खुद धो रहे थे।
  रेल मंत्री बन कर भी वे सर्व साधारण की तरह ही जिए।
मुम्बई विश्व विद्यालय में फिजिक्स के प्रोफेसर रहे दंडवते इतने सरल व्यक्तित्व के धनी थे कि उन्हें देख कर 
कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
  1971 में जब पहली बार  महाराष्ट्र के राजा पुर लोक सभा क्षेत्र से मशहूर सांसद  नाथ पै की जगह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने  उन्हें खड़ा कराया तो महाराष्ट्र के बाहर के लोगों को लगा कि पता नहीं वे कैसे होंगे।क्योंकि यशस्वी और तेजस्वी सांसद नाथ पै ने अपनी प्रतिभा से देश व संसद  को बहुत प्रभावित किया था।उनके असामयिक निधन के बाद दंडवते को वहां से खड़ा कराया गया था।
मधु दंडवते वहां से लगातार पांच बार सांसद रहे।
  रेल मंत्री बनने के बाद प्रो.मधु दंडवते ने एक बार कहा था कि ‘मैं नहीं चाहता कि मैं जहां जाऊं ,वहां विशिष्ट दिखाई पड़ूं या समझा जाऊं।मैं झूठे आडंबर में विश्वास नहीं करता।जब इंगलैड का प्रधान मंत्री बाजार में घूमता है तो किसी का ध्यान नहीं जाता कि देश का प्रधान मंत्री जा रहा है।ऐसा ही यहां भी होना चाहिए।मैं नहीं चाहता कि मंत्री, राजा -महाराजा की तरह चलें।यह सामंती प्रथा खत्म होनी चाहिए।’
    सन 1977 में रेल मंत्री बनने के बाद मधु दंडवते ने रेलवे में पहले से जारी विशेष कोटा को समाप्त कर दिया।साथ ही, उन्होंने जनरल मैनेजरों को एक परिपत्र भेजा।उसमें मंत्री ने  लिखा  था कि अगर कोई अपने को मेरा मित्र या रिश्तेदार बता कर विशेष सुविधा चाहे तो उसे ठुकरा दिया जाए।मधु दंडवते कहते थे कि कई बार जो गलत काम होते हैं, भ्रष्टाचार हो या अपने रिश्तेदारों के प्रति पक्षपात हो,वे ऊपर से शुरू होते हैं और नीचे तक जाते हैं।इसलिए जरूरी है कि ऊपर भ्रष्टाचार नहीं हो।रिश्तेदारों के साथ पक्षपात नहीं हो,इसीलिए मैंने जनरल मैनेजरों को सर्कुलर जारी कर दिया।
    मधुरभाषी मधु दंडवते स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता थे जिनकी लोगबाग सम्मान करते थे।
21 जनवरी 1924 को  महाराष्ट्र के अहमद नगर में जन्मे मधु दंडवते  का 2005 में निधन हो गया।
   वी.पी.सिंह मंत्रिमंडल मंे वित्त मंत्री रहे मधु दंडवते 1951 से 1971 तक  
मुम्बई विश्व विदयालय में नाभकीय भौतिकी के अध्यापक थे।आप वैज्ञानिक होकर राजनीति में कैसे आ गये,इस सवाल के जवाब में मधु दंडवते ने एक बार कहा था कि ‘ताकि राजनीति अधिक वैज्ञानिक बन सके।’
   आज जब राजनीति में व्याप्त भारी गंदगी की जब -तब कहीं चर्चा होती है तो कुछ लोग यह कह देते हैं कि साफ सुथरे लोग राजनीति में आते कहां हैं ?दरअसल यह बात अर्ध सत्य है।मधु दंडवते का पूरा जीवन बेदाग रहा।उन्हें मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में रेल मंत्री जैसा बड़ा और महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया गया।वी.पी.सिंह मंत्रिमंडल में तो मधु जी वित्त मंत्री बनाये गये थे।उन पर कोई दाग नहीं लगा।
  सत्ता से बाहर रहकर निर्विवाद और ईमानदार बने रहना आसान काम है।पर सत्ता के शीर्ष पर पहंुच कर भी जस की तस चदरिया को रख देना 
काफी संयम का काम है।बेईमान खास तौर पर  सत्ताधारियों की रोज ब रोज परीक्षा लेते रहते हैं।उसके धैर्य की ,उसकी ईमानदारी की ,उनके संयम की और  उसके चरित्र की।जो इस काजल की कोठरी से बेदाग बाहर निकल आता है,उसे आने वाली पीढि़यां याद रखती है।मधु दंडवते वैसे ही थोड़े से लोगों में थे जिन्होंने अपनी चदरिया जस की तस धर दी।
        आपातकाल में इस देश में ट्रेनें समय पर चलती थीं।जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो इस चुस्ती में थोड़ी कमी आई।कुछ पत्रकारों ने इसकी शिकायत रेल मंत्री से की।इस पर मधु दंडवते ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से कहा कि वह अफसरों और यूनियन के नेताओं से मिलें और उनसे कहें कि अगर इस तरह तबदीली होगी तो लोगों को यह लगेगा कि रेल को ठीक से चलाने के लिए इमरजंसी जरूरी है।यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।
    मधु दंडवते ने न सिर्फ 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था,बल्कि वे 1955 के गोवा मुक्ति आंदोलन में भी सक्रिय थे।वे 1948 में समाजवादी आंदोलन से जुड़ गये थे।संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन ने जिन राजनीतिक कर्मियों को जनता से करीब से जुड़ने का मौका दिया ,उनमें मधु दंडवते भी थे।उन्हें 1969 में भूमि मुक्ति आंदोलन में भी शामिल होकर उसका नेतत्व करने का अवसर मिला था।सन 1971 के बाद तोे वे लोक सभा में रेल कर्मचारियों के प्रवक्ता ही थे।बाद में जब वे रेल मंत्री बने तो उन कर्मचारियों को दुबारा नौकरी दिलाया जिन्हें 1974 की रेल हड़ताल के दौरान सेवा से हटा दिया गया था।उस रेल हड़ताल के समय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र और अखिल भारतीय रेलवेमेंस फेडरेशन के अध्यक्ष जार्ज फर्नाडिस थे।
     रेल मजदूर आंदोलन,समाजवादी आंदोलन,स्वतंत्रता आंदोलन ,भूमि मुक्ति आंदोलन और इस तरह के कई आंदोलनों में सक्रिय भमिका निभाने के कारण मधु दंडवते के पास अनुभवों का खजाना था।उन्होंने कई पुस्तकें  भी लिखी थीं।उन्हें प्रमिला दंडवते के रूप में एक आदर्श जीवन संगनी भी मिली थीं जो खुद भी राजनीति में सक्रिय थीं और सांसद भी।प्रमिला जी का सन 2002 में निधन हो चुका था।
@मेरा यह लेख 21 जनवरी 2018 को फस्र्टपोस्ट हिन्दी पर प्रकाशित@

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