प्रख्यात हिंदी साहित्यकार दूध नाथ सिंह का
हाल में निधन हो गया।
वह प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
इस पर मुझे अस्सी के दशक का एक प्रकरण याद आया।
उन दिनों पटना के एक बड़े पत्रकार प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।मुम्बई में इलाज करा रहे थे। पर, निराश हो गए थे।
इस बीच उन्हें पटना के ही एक उतने ही बड़े पत्रकार ने सलाह दी, ‘ आप स्वमूत्र चिकित्सा अपनाइए।ठीक हो जाइएगा।’
उन्होंने यह भी कहा था कि लीवर कैंसर को छोड़कर किसी भी अंग के कैंसर के लिए स्वमूत्र चिकित्सा रामवाण है।
सलाह देने वाले बुजुर्ग पत्रकार ने उन्हीं दिनों बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में एक दिन मुझे बताया था कि ‘मेरी सलाह पर उन्होंने स्वमूत्र चिकित्सा को अपनाया और वे अब स्वस्थ हैं।’
याद रहे कि स्वमूत्र चिकित्सा के सबसे बड़े प्रशंसक व लाभुक मोरारजी देसाई थे।वह खुद स्वमूत्र पान करते थे।वे इसे छिपाते भी नहीं थे।उनकी लंबी उम्र का यही राज बताया गया था।
पर आम भारतीयों में इसके प्रति अभी आम स्वीकृति नहीं है। हालांकि जापान में बड़ी सख्या में लोगों ने इसे अपनाया है।
यह बात खुद मोरारजी भाई ने एक अखबार को बताई थी।
पर कुछ लोग इसे अवैज्ञानिक चिकित्सा बताते हैं।
वैसे इस विषय पर उपलब्ध सबसे अच्छी किताब ‘वाटर आॅफ लाइफ’ के लेखक आर्मस्ट्रांग ने इस चिकित्सा विधि के पक्ष में तर्क दिए हैं।
हाल में निधन हो गया।
वह प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
इस पर मुझे अस्सी के दशक का एक प्रकरण याद आया।
उन दिनों पटना के एक बड़े पत्रकार प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।मुम्बई में इलाज करा रहे थे। पर, निराश हो गए थे।
इस बीच उन्हें पटना के ही एक उतने ही बड़े पत्रकार ने सलाह दी, ‘ आप स्वमूत्र चिकित्सा अपनाइए।ठीक हो जाइएगा।’
उन्होंने यह भी कहा था कि लीवर कैंसर को छोड़कर किसी भी अंग के कैंसर के लिए स्वमूत्र चिकित्सा रामवाण है।
सलाह देने वाले बुजुर्ग पत्रकार ने उन्हीं दिनों बिहार विधान सभा के प्रेस रूम में एक दिन मुझे बताया था कि ‘मेरी सलाह पर उन्होंने स्वमूत्र चिकित्सा को अपनाया और वे अब स्वस्थ हैं।’
याद रहे कि स्वमूत्र चिकित्सा के सबसे बड़े प्रशंसक व लाभुक मोरारजी देसाई थे।वह खुद स्वमूत्र पान करते थे।वे इसे छिपाते भी नहीं थे।उनकी लंबी उम्र का यही राज बताया गया था।
पर आम भारतीयों में इसके प्रति अभी आम स्वीकृति नहीं है। हालांकि जापान में बड़ी सख्या में लोगों ने इसे अपनाया है।
यह बात खुद मोरारजी भाई ने एक अखबार को बताई थी।
पर कुछ लोग इसे अवैज्ञानिक चिकित्सा बताते हैं।
वैसे इस विषय पर उपलब्ध सबसे अच्छी किताब ‘वाटर आॅफ लाइफ’ के लेखक आर्मस्ट्रांग ने इस चिकित्सा विधि के पक्ष में तर्क दिए हैं।
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