जब कुछ निजी स्कूलों के प्राचार्य बच्चों के दाखिले से पहले उनके अभिभावकों से बातचीत करते हैं तो कुछ लोग उसकी हंसी उड़ाते हैं।वे कहते हैं कि बच्चों की तरह हमें भी इंटरव्यू देना पड़ता है।
पर, इन दिनों देश में हो रही कुछ गंभीर घटनाएं उसकी जरूरत बता और बढ़ा रही हैं।
कुछ अल्पवय किंतु हिंसक प्रवृति के उदंड छात्र स्कूल में ही अपने सहपाठी की हत्या कर देते हैं । वैसे कुछ अन्य छात्र अपने शिक्षक को ही गोली मार देते हैं।दरअसल स्कूल स्तर के लड़कों की ऐसी उदंडता के पीछे आम तौर गार्जियन की लापारवाही को जिम्मेदार बताया जाता है।वे अपने बच्चों को अपने घरों में अच्छे संस्कार नहीं देते।या फिर वे ऐसे पेशे में हैं कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं है।या उनकी मनोदशा भी वैसी ही है।वे समझते हैं कि
किसी तरह की कानूनी परेशानी होने पर वे अपने बच्चों को पैसे व पैरवी के बल पर बचा लेंगे।
ऐसी स्थिति में स्कूल प्रबंधकों को कुछ और ही सावधान हो जाने की जरूरत है।
हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि बच्चों की हिंसक प्रवृति के लिए सिर्फ अभिभावकगण ही जिममेदार होते हैें।कुछ अन्य तत्व भी जिम्मेदार हो सकते हैं।जैसे टी.वी.,सिनेमा,स्मार्ट फोन या बुरी संगति ।उनका उपाय भी किसी अन्य ढंग से करना चाहिए।करना पड़ेगा।
किसी भी अच्छे स्कूल के होशियार प्राचार्य व प्रबंधन के सदस्य अधिकतर अभिभावकों से कुछ ही मिनटों की बातचीत के बाद ंयह बता सकते हैं कि वे अपने बच्चों को कितना समय देते होंगे या अनुशासित रखते होंगे।या फिर दे सकते हैं।या उनका खुद का स्वभाव कैसा है।उस स्वभाव का उनके पारिवारिक जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता होगा।
उनके पास यदि बेशुमार धन है तो उस का कैसा असर उनके बच्चों के चाल-चलन व स्वभाव पर पड़ रहा होगा।
देश के स्कूलों में हो रही कुछ शर्मनाक घटनाओं को देखते हुए स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि वे अभिभावकों की भी कड़ाई से जांच- परख करें।भारी डोनेशन की जगह अपने स्टाफ की प्राण रक्षा व स्कूल के भविष्य का अधिक ध्यान रखें।शंका हो और जरूरत पड़े तो दाखिला के लिए आए बच्चों के आवासों के आसपास खुफिया भेजकर भी जांच करा लेना महंगा नहीं पड़ेगा।कम से कम हिंसा के कारण स्कूलों को होने वाले भावी नुकसान से तो स्कूल बच जाएंगे।
पर, इन दिनों देश में हो रही कुछ गंभीर घटनाएं उसकी जरूरत बता और बढ़ा रही हैं।
कुछ अल्पवय किंतु हिंसक प्रवृति के उदंड छात्र स्कूल में ही अपने सहपाठी की हत्या कर देते हैं । वैसे कुछ अन्य छात्र अपने शिक्षक को ही गोली मार देते हैं।दरअसल स्कूल स्तर के लड़कों की ऐसी उदंडता के पीछे आम तौर गार्जियन की लापारवाही को जिम्मेदार बताया जाता है।वे अपने बच्चों को अपने घरों में अच्छे संस्कार नहीं देते।या फिर वे ऐसे पेशे में हैं कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं है।या उनकी मनोदशा भी वैसी ही है।वे समझते हैं कि
किसी तरह की कानूनी परेशानी होने पर वे अपने बच्चों को पैसे व पैरवी के बल पर बचा लेंगे।
ऐसी स्थिति में स्कूल प्रबंधकों को कुछ और ही सावधान हो जाने की जरूरत है।
हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि बच्चों की हिंसक प्रवृति के लिए सिर्फ अभिभावकगण ही जिममेदार होते हैें।कुछ अन्य तत्व भी जिम्मेदार हो सकते हैं।जैसे टी.वी.,सिनेमा,स्मार्ट फोन या बुरी संगति ।उनका उपाय भी किसी अन्य ढंग से करना चाहिए।करना पड़ेगा।
किसी भी अच्छे स्कूल के होशियार प्राचार्य व प्रबंधन के सदस्य अधिकतर अभिभावकों से कुछ ही मिनटों की बातचीत के बाद ंयह बता सकते हैं कि वे अपने बच्चों को कितना समय देते होंगे या अनुशासित रखते होंगे।या फिर दे सकते हैं।या उनका खुद का स्वभाव कैसा है।उस स्वभाव का उनके पारिवारिक जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता होगा।
उनके पास यदि बेशुमार धन है तो उस का कैसा असर उनके बच्चों के चाल-चलन व स्वभाव पर पड़ रहा होगा।
देश के स्कूलों में हो रही कुछ शर्मनाक घटनाओं को देखते हुए स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि वे अभिभावकों की भी कड़ाई से जांच- परख करें।भारी डोनेशन की जगह अपने स्टाफ की प्राण रक्षा व स्कूल के भविष्य का अधिक ध्यान रखें।शंका हो और जरूरत पड़े तो दाखिला के लिए आए बच्चों के आवासों के आसपास खुफिया भेजकर भी जांच करा लेना महंगा नहीं पड़ेगा।कम से कम हिंसा के कारण स्कूलों को होने वाले भावी नुकसान से तो स्कूल बच जाएंगे।
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