रविवार, 14 जनवरी 2018

  मैंने आज वीर कुंवर सिंह की चर्चा इसलिए की क्योंकि 
कल मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जगदीश पुर में ऐसी ही बात कही थी।उन्होंने कहा कि वीर कुंवर सिंह के  योगदान को उतना महत्व नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था।
मेरा कहना है कि जिसने अंग्रेजों को एक दो नहीं बल्कि छह-छह  युद्धों में हराया,उसे तो राष्ट्रीय स्तर पर महत्व मिलना चाहिए था।मैं इस देश के किसी अन्य योद्धा को नहीं जानता जिसने छह युद्धों में अंग्रेजों को हराया हो।
इसके पीछे यह बात भी छिपी है कि हमारे पास काबिल योद्धा तो थे, पर उनमें एकता नहीं थी,इसलिए भी  हम गुलाम बने।
वीर कुंवर सिंह के अनोखे युद्ध कौशल पर जनरल एस.के. सिंहा ने भी किताब लिखी है।
  अस्सी के दशक में चैधरी चरण चरण सिंह ने एक ब्रिटिश इतिहासकार की पुस्तक का हिंदी में अनुवाद करवा कर बंटवाया था।
उसमें उस इतिहासकार ने लिखा था कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने 
भारत में भारतीयों के बीच के फूट और अलगाव का लाभ उठा कर ही सत्ता स्थापित की न कि अपनी वीरता के कारण।पंडित सुंदर लाल की किताब में भी इसकी चर्चा है।

 ं 
  

कोई टिप्पणी नहीं: