शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

बिहारी राजनीति की यात्रा कर्पूरी से लालू-जगन्नाथ तक


यह संयोग ही था कि कल बुधवार को पटना में एक तरफ  नेता दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर रहे थे तो दूसरी ओर रांची की सी.बी.आई. अदालत कुछ बड़े नेताओं को सजा सुना रही थी।
पर, यह संयोग नहीं था कि भ्रष्टाचार के आरोप में जिन नेताओं को सजा हुई,उन में से एक नेता ने कर्पूरी ठाकुर को उनके जीवन काल में यह सलाह दी थी कि ‘आप  पटना के प्रस्तावित विधायक काॅलोनी में अपने लिए एक भूखंड ले लें ताकि आपके नहीं रहने पर भी आपके बाल -बच्चे राजधानी में रह सकें।’ं
 एक अन्य अवसर पर उसी नेता ने दिवंगत ठाकुर के बारे में तत्कालीन बिहार विधान सभा उपाध्यक्ष शिवनंदन पासवान को यह नोट लिखा था कि ‘कर्पूरी जी दो बार मुख्य मंत्री रहे।कार क्यों नहीं खरीद लेते ?’ याद रहे कि कर्पूरी जी ने पासवान जी के जरिए उस नेता से थोड़ी देर के लिए उनका वाहन मांगा था।
याद रहे कि कर्पूरी जी ने उस नेता की बिना मांगी सलाह ठुकरा दी थी।
कर्पूरी जी चाहते थे कि उनके बाल-बच्चे उनके गांव में ही रहें।
  यह प्रकरण नयी पीढ़ी के नेताओं के लिए एक बड़ी सीख है यदि वे ग्रहण करना  चाहें तो ।
  वे तय कर लें कि उन्हें कर्पूरी ठाकुर की जीवन शैली अपनानी है या फिर उन नेताओं की जिन्हें रांची अदालत ने सजा दी है।
  डा. जगन्नाथ मिश्र पर आरोप--
क्या किसी सरकारी सेवक  की सेवा वृद्धि के लिए सिफारिशी चिट्ठी लिखने मात्र से ही कोई अदालत किसी नेता को पांच साल की सजा दे सकती है ?
यदि ऐसा हुआ तो उस जज की ही सेवा समाप्त हो जाएगी।
  पर,डा.जगन्नाथ मिश्र वर्षों से लगातार यह कहते रहे हैं कि पशु पालन विभाग के क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक डा.श्याम बिहारी सिंहा के सेवा-विस्तार के लिए सिफारिशी चिट्ठी मुख्य मंत्री लालू प्रसाद को लिखने के कारण ही मुझे चारा घोटाला केस में फंसा दिया गया।
  पर किसी पूछने वालेे ने कभी डा.मिश्र से  यह सवाल नहीं पूछा कि क्या अदालत में मुखबिर दीपेश चांडक ने यह नहीं कहा था कि आप डा.सिंहा के पे -रोल पर थे ? क्या आपको डा.सिंहा के कहने पर बारी- बारी से सप्लायर एम.एस.बेदी ने  50 लाख और गणेश दुबे ने  25 लाख रुपए नहीं दिए थे ?
क्या चारा घोटालों के सबसे बड़े सरदार श्याम बिहारी सिंहा की पुत्र बधू को आपने  अपने विवेकाधिकार कोटे से टेलीफोन नहीं दिलवाया था ?आपके खिलाफ साठगांठ के कुछ अन्य  सबूत भी सी.बी.आई.को नहीं मिल गए थे ?
   पत्रकारों की मिलीजुली भूमिका---
चारा घोटाले के रहस्योद्घाटन और उसकी सी.बी.आई.जांच  के दौरान पत्रकारों की भूमिका भी मिलीजुली ही रही।
तब  यह बात सामने आई थी कि चारा माफियाओं ने 55 पत्रकारों को भी पैसे दिए थे।
पर जो पत्रकार चारा घोटालेबाजों के प्रभाव में नहीं आए ,उनको उन दिनों और बाद में भी तरह- तरह से प्रताडि़त किया गया।
दो वरिष्ठ पत्रकारों की तो नौकरी ही छुड़वा दी गयी।
कई को जान से मारने की धमकियां दी गयीं।
उनका कसूर यही था कि वे खबरें छाप रहे थे।लिख रहे थे कि यह सब न तो संबंधित नेताओं के लिए ठीक है और न ही बिहार के लिए।
पर,तब माहौल इतना डरावना बना दिया  गया था कि अनेक पत्रकारों और प्रतिपक्षी नेताओं के लिए अपना काम करना कठिन  था।तलवार जुलूस निकल रहे थे ।लोगों को डराया जा रहा था।
सी.बी.आई.के बड़े अधिकारी डा.यू.एन. विश्वास ने एक बार कहा था कि मैं जब भी कोलकाता से पटना के लिए निकलता हूं तो अपनी पत्नी से कह कर आता हंू कि शायद मैं न भी लौटूं।
आज गुरूवार को भी चाईबासा कोषागार के लेखापाल बी.एन.लालदास का ऐसा एक बयान छपा है।उन्होंने कहा है कि यदि मैं सरकारी गवाह बन जाता तो मुझे मरवा दिया जाता।याद रहे कि सी.बी.आई. उन्हें सरकारी गवाह बनने के लिए कह रही थी। 
  क्या आज जेल में बंद लोग  अपने  अपकर्मों के लिए अब भी प्रायश्चित करेंगे ?
क्या वे अब भी यह महसूस करेंगे कि उन पत्रकारों की चेतावनियों पर उन्होंने ध्यान दिया  होता तो इस हालत में वे नहीं पहुंचते  ?   
      संवैधानिक कत्र्तव्य---
अनेक लोग समय -समय पर शासन से यह मांग करते रहते हैं कि उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार मिलने ही चाहिए।
ऐसी  मांग सही भी है।
पर, कितने लोगों को यह पता है कि भारत के संविधान में अधिकारों के साथ- साथ नागरिकों के लिए कुछ कत्र्तव्यों का भी प्रावधान  मौजूद  है ? उनका कितना पालन हो रहा है ?
गणतंत्र दिवस के अवसर पर  उन मूल कत्र्तव्यों का विवरण यहां दिया जा रहा है।
वैसे भी इन्हें पढ़कर हम इस नतीजे पर आसानी से पहुंच सकते हैं कि इन प्रावधानों का कितना पालन हो रहा है !
यदि नहीं हो रहा है कि इसके लिए क्या करना चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद - 51 में दस मूल कत्र्तव्यों का विवरण  इस प्रकार है-  
1-भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कत्र्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करंे। 
2-स्वतंत्रता के लिए हमारे 
राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों  को हृदय में संजोय रखे और उसका पालन करें।
3-भारत की प्रभुता , एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें।
4-देश की रक्षा करंे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करंे।
5-भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करंे जो धर्म ,भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हांे, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के खिलाफ  हैं।
6-हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका संरक्षण करंे।
7-प्राकृतिक पर्यावरण को जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करंे और उसका संवर्धन करंे तथा प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखें।
8-वैज्ञानिक दृष्टिकोण ,मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करंे।
9-सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखंे और हिंसा से दूर रहें।
10-व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करंे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
    अभिभावक का इंटरव्यू जरूरी ---
जब कुछ निजी स्कूलों के प्रबंधन बच्चों के दाखिले से पहले उनके अभिभावकों से बातचीत करते हैं तो कुछ लोग उसकी  हंसी उड़ाते हैं।
  पर देश में हो रही हाल की कुछ घटनाएं उसकी जरूरत बता रही हैं।
कुछ  अल्पवय किंतु उदंड छात्र अपने सहपाठी की हत्या कर देते हैं तो कुछ अन्य छात्र अपने  शिक्षक को ही गोली मार देते हैं।दरअसल स्कूल स्तर के  लड़कों की ऐसी उदंडता के पीछे आम तौर गार्जियन की लापारवाही जिम्मेदार बताई जाती है।
किसी भी अच्छे स्कूल के होशियार प्राचार्य व प्रबंधन के सदस्य  अधिकतर  अभिभावकों  से कुछ ही मिनटों की बातचीत के बाद ं ही यह बता सकते हैं कि वे अपने बच्चों को कितना समय देते  होंगे  या अनुशासित रखते होंगे।या फिर उनका खुद का स्वभाव कैसा है।उनके बेशुमार  धन का कैसा असर उनके बच्चों  पर पड़ रहा होगा।
       और अंत में---
बात उन दिनों की है जब बिन्देश्वरी दुबे बिहार की कांग्रेसी सरकार के मुख्य मंत्री थे।
एक नेता ने कर्पूरी ठाकुर पर तरह- तरह के आरोप लगाते हुए उन दिनों कहा था कि ‘कर्पूरी  दुबे का  दलाल और राजनीतिक तस्कर है।’
 उसी नेता का आज  गुरूवार के अखबार में  एक बयान आया है।उन्होंने कहा है कि ‘कर्पूरी जी समाजवादी विचार धारा के लेनिन थे।’
इसे कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक शैली की नैतिक जीत ही तो कही जाएगी।
@ 26 जनवरी, 2018 को प्रभात खबर -बिहार- में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से @

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