कई लोग पूछते हैं कि गांधी जी क्या खाना पसंद करते थे ?
कहीं लिखा हुआ मैंने पढ़ा कि वे निम्नलिखित चीजें पसंद करते थे--
--भात, दाल, रोटी, दही, बैगन, चुकंदर, कद्दू, पेड़ा और फल का रस।
यदि किन्हीं के पास कोई दूसरी सूची हो तो मुझे जरूर बताएं।
महात्मा गांधी कहा करते थे कि ‘स्वाद के लिए नहीं बल्कि शरीर की जरूरत के लिए खाएं और कम से कम खाएं।’
गांधी जी की हत्या नहीं कर दी गयी होती तो वे अपने संयमित जीवन के कारण लंबा जीते।
वे भोजन को दवा भी कहते थे।
खाने -पीने के मामले में उनके संयम को अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपने जीवन में अपनाया था।
हमें इस बात का ध्यान है कि आज के नेताओं की बनिस्पत स्वतंत्रता सेनानियों ने लंबी आयु पायी।
संयोग से 30 जनवरी मेरा जन्म दिन है।मैं अपना जन्म दिन नहीं मनाता। गांधी की पुण्य तिथि के दिन जन्म दिन क्या मनाना ! वैसे इस तारीख का संयोग नहीं भी होता तो भी अपने लिए ऐसा कुछ होते देखना मेरे स्वभाव में नहीं है।
हर दिन मेरे लिए समान है।
हां, इस अवसर पर अपने स्वास्थ्य को लेकर मैं गांधी को जरूर याद करता हूं।
आहार -विहार को लेकर गांधी की जो कसौटी है, उस पर मैं पूरा तो खरा नहीं उतरता,पर आधा जरूर।
पर आधा पालन करके ही मैंने अपने जर्जर स्वास्थ्य को भंवर से निकाल लिया है।मैं इस मामले में कट्टर गांधीवादी मोरारजी देसाई से प्रभावित रहा हूं।वे मेरे भी पत्रों का जवाब देते थे।वे सबके पत्रों का जवाब देते थे।यह बात उन्हें गांधी ने ही सिखाई थी।
उन्होंने अस्सी के दशक में मुझे लिख कर भेजा था कि वे सुबह से शाम तक क्या -क्या करते हैं।
उतना तो कोई पालन नहीं कर सकता।
कुसंयम के कारण कुछ साल पहले मेरा वजन घट कर 45 किलोग्राम रह गया था।लगातार पेट में दर्द रहता था।
लगता था कि अब अंत आ रहा है।तो मैंने दवा के साथ- साथ कुछ संयम भी अपनाये।कुछ ही उपायों से उसे मैंने टाल दिया ।या फिर मानिए तो ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी।
मरीज आधा डाक्टर भी बन जाता है।मुझे जिन उपायों से लाभ मिला,उसे शेयर करने से शायद कुछ अन्य लोगों को भी लाभ मिले।
आज मेरा वजन करीब 60 किलो ग्राम है जो सामान्य के करीब है।
आज 73 साल की उम्र में मैं जितना ऊर्जावान हूं, उतना आज से दस साल पहले नहीं था।
अब मैं लंबे घंटे काम करता हूंं।थकता नहीं हूं।कभी- कभी तो लगता है कि दिन और लंबा होता तो आज मैं कुछ अधिक काम कर लेता।
खैर , सिर्फ दो -तीन बातों पर ध्यान देने में मेरा कायाकल्प हुआ है।
कम खाने की आदत बना ली।खाने -नाश्ते का समय व प्रकार तय कर लिया।दो बार के मुख्य भोजन में एक या दो रोटी ही मैं खाता हूंं।सुबह में चने के सत्तू का घोल या छेना।कभी -कभी फल।कभी ड्राई तो कभी मौसमी।
कच्चे पपीते और कद्दू की सब्जी बहुत ही लाभदायक है।
सब्जी में तेल-मसाला नाम मात्र का।मैं शाकाहारी हूं।सिगरेट-शराब या इस तरह की चीजों को कभी हाथ तक नहीं लगाया।
अपरान्ह में आधा ग्लास गर्म दूध में बादाम पाक-बार्नबिटा और हाॅर्लिक्स के घोल ने मुझे काफी फायदा पहुंचाया।
‘बादाम पाक’ कारगर फूड सप्लीमेंट है।
टहलना, धूप में बैठना और अनुलोम -विलोम जैसे कुछ हल्के उपाय । दोपहर में करीब आधे घंटे का विश्राम ।
अपवादों को छोड़कर मैं रात में करीब नौ बजे सो जाता हूं।
करीब साढ़े तीन से चार बजे के बीच नींद टूट जाती है।तब से कुछ पढ़ना और लिखना शुरू हो जाता है।
मैं समझता हूं कि इतने उपाय तो आसान हैं।यदि कोई व्यक्ति
थोड़ा और संयम बरत ले तो रोग करीब नहीं फटकेगा।
हां, साल-छह महीने पर पैथोलाॅजिकल टेस्ट कराता रहता हूं।
इस देश के लोग इस तरह के संयम बरत कर गांधी को सही श्रद्धांजलि दे सकते हैं। उनके राजनीतिक विचारों पर मतभेद हो सकता है।पर उन्होंने संयम से अपने शरीर को ठीक रखा और पूरी पीढ़ी को भरसक संयमी बनाया,इसको लेकर किसी मतभेद की भला कहां गुजाइश है ?
कहीं लिखा हुआ मैंने पढ़ा कि वे निम्नलिखित चीजें पसंद करते थे--
--भात, दाल, रोटी, दही, बैगन, चुकंदर, कद्दू, पेड़ा और फल का रस।
यदि किन्हीं के पास कोई दूसरी सूची हो तो मुझे जरूर बताएं।
महात्मा गांधी कहा करते थे कि ‘स्वाद के लिए नहीं बल्कि शरीर की जरूरत के लिए खाएं और कम से कम खाएं।’
गांधी जी की हत्या नहीं कर दी गयी होती तो वे अपने संयमित जीवन के कारण लंबा जीते।
वे भोजन को दवा भी कहते थे।
खाने -पीने के मामले में उनके संयम को अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपने जीवन में अपनाया था।
हमें इस बात का ध्यान है कि आज के नेताओं की बनिस्पत स्वतंत्रता सेनानियों ने लंबी आयु पायी।
संयोग से 30 जनवरी मेरा जन्म दिन है।मैं अपना जन्म दिन नहीं मनाता। गांधी की पुण्य तिथि के दिन जन्म दिन क्या मनाना ! वैसे इस तारीख का संयोग नहीं भी होता तो भी अपने लिए ऐसा कुछ होते देखना मेरे स्वभाव में नहीं है।
हर दिन मेरे लिए समान है।
हां, इस अवसर पर अपने स्वास्थ्य को लेकर मैं गांधी को जरूर याद करता हूं।
आहार -विहार को लेकर गांधी की जो कसौटी है, उस पर मैं पूरा तो खरा नहीं उतरता,पर आधा जरूर।
पर आधा पालन करके ही मैंने अपने जर्जर स्वास्थ्य को भंवर से निकाल लिया है।मैं इस मामले में कट्टर गांधीवादी मोरारजी देसाई से प्रभावित रहा हूं।वे मेरे भी पत्रों का जवाब देते थे।वे सबके पत्रों का जवाब देते थे।यह बात उन्हें गांधी ने ही सिखाई थी।
उन्होंने अस्सी के दशक में मुझे लिख कर भेजा था कि वे सुबह से शाम तक क्या -क्या करते हैं।
उतना तो कोई पालन नहीं कर सकता।
कुसंयम के कारण कुछ साल पहले मेरा वजन घट कर 45 किलोग्राम रह गया था।लगातार पेट में दर्द रहता था।
लगता था कि अब अंत आ रहा है।तो मैंने दवा के साथ- साथ कुछ संयम भी अपनाये।कुछ ही उपायों से उसे मैंने टाल दिया ।या फिर मानिए तो ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी।
मरीज आधा डाक्टर भी बन जाता है।मुझे जिन उपायों से लाभ मिला,उसे शेयर करने से शायद कुछ अन्य लोगों को भी लाभ मिले।
आज मेरा वजन करीब 60 किलो ग्राम है जो सामान्य के करीब है।
आज 73 साल की उम्र में मैं जितना ऊर्जावान हूं, उतना आज से दस साल पहले नहीं था।
अब मैं लंबे घंटे काम करता हूंं।थकता नहीं हूं।कभी- कभी तो लगता है कि दिन और लंबा होता तो आज मैं कुछ अधिक काम कर लेता।
खैर , सिर्फ दो -तीन बातों पर ध्यान देने में मेरा कायाकल्प हुआ है।
कम खाने की आदत बना ली।खाने -नाश्ते का समय व प्रकार तय कर लिया।दो बार के मुख्य भोजन में एक या दो रोटी ही मैं खाता हूंं।सुबह में चने के सत्तू का घोल या छेना।कभी -कभी फल।कभी ड्राई तो कभी मौसमी।
कच्चे पपीते और कद्दू की सब्जी बहुत ही लाभदायक है।
सब्जी में तेल-मसाला नाम मात्र का।मैं शाकाहारी हूं।सिगरेट-शराब या इस तरह की चीजों को कभी हाथ तक नहीं लगाया।
अपरान्ह में आधा ग्लास गर्म दूध में बादाम पाक-बार्नबिटा और हाॅर्लिक्स के घोल ने मुझे काफी फायदा पहुंचाया।
‘बादाम पाक’ कारगर फूड सप्लीमेंट है।
टहलना, धूप में बैठना और अनुलोम -विलोम जैसे कुछ हल्के उपाय । दोपहर में करीब आधे घंटे का विश्राम ।
अपवादों को छोड़कर मैं रात में करीब नौ बजे सो जाता हूं।
करीब साढ़े तीन से चार बजे के बीच नींद टूट जाती है।तब से कुछ पढ़ना और लिखना शुरू हो जाता है।
मैं समझता हूं कि इतने उपाय तो आसान हैं।यदि कोई व्यक्ति
थोड़ा और संयम बरत ले तो रोग करीब नहीं फटकेगा।
हां, साल-छह महीने पर पैथोलाॅजिकल टेस्ट कराता रहता हूं।
इस देश के लोग इस तरह के संयम बरत कर गांधी को सही श्रद्धांजलि दे सकते हैं। उनके राजनीतिक विचारों पर मतभेद हो सकता है।पर उन्होंने संयम से अपने शरीर को ठीक रखा और पूरी पीढ़ी को भरसक संयमी बनाया,इसको लेकर किसी मतभेद की भला कहां गुजाइश है ?
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