शनिवार, 20 जनवरी 2018

  गंगा नदी की दुर्दशा पर ऐसी सजीव रपट मैंने पहली बार पढ़ी है।
जब शशि भूषण जैसे कल्पनाशील पत्रकार और संदीप नाग जैसे समर्थ फोटो जर्नलिस्ट 17 दिनों तक गंगा में बोट पर रह जाएं तो वैसी ही सचित्र रपट बनेगी, जैसी भास्कर के पन्नों पर आज बनी है।
इस रपट के वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।
  इस देश के हुक्मरानों ने आजादी के बाद किस तरह दुनिया की इस अनोखी नदी को बर्बाद कर दिया,उसका आखों देखा हाल आज दैनिक भास्कर ने प्रस्तुत किया है।जो सुनते थे,वह देखा।
  पत्रकारिता के क्षेत्र में यह रपट मील का पत्थर है।अखबार के आर्थिक व मानव संसाधन का यह सर्वोत्तम उपयोग है।इस देश पर गर्व करने वाले जिस किसी व्यक्ति ने इसे पढ़ा होगा,यह रपट उसके दिल को छू गयी होगी।
गंगा से विशेष लगाव के कारण मैं तो थोड़ा अधिक ही भावुक हो रहा हूं भास्कर पढ़कर और चित्र देख कर।
पर क्या करूं ,एक समय था जब दिघवारा के पास बचपन में गंगा में पैठ कर ठेहुने भर पानी में जब मैं खडा होता था तो अपने पैरों की अंगुलियां मैं देख सकता था ,इतना निर्मल पानी तब हुआ करता था गंगा का।तब दतवन का चीरा भी कोई गंगा में नहीं फेंकता था।
 आज हम सबने मिलकर एक पवित्र नदी को गंदे नाले में परिणत कर दिया है और देश देखता रह गया।
भास्कर ने ठीक ही लिखा है कि सहायक नदियों से ही गंगा की अविरलता बनी हुई है। 
़  दिव्य औषधीय गुणों वाली ऐसी नदी दुनिया में और कहीं नहीं है।
अपनी धरोहर पर गर्व करने वाले किसी भी अन्य देश के पास ऐसी नदी होती तो वह उसे अगली पीढि़यों के लिए पूरी तरह  संभाल कर रखता।
  पर लानत है आजादी के बाद के हमारे हुक्मरानों पर !
विदेशी हमलावरों ने इस देश को बहुत लूटा ,पर गंगा को छोड़कर।
@ 19 जनवरी 2018@


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