बुधवार, 3 जनवरी 2018

ललित नारायण मिश्र हत्या कांड की फिर से जांच कराने की मांग पर अड़े हैं उनके पुत्र




       1975 में  तत्कालीन  रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की  हुई हत्या की फिर  से जांच कराने की उनके पुत्र ने सरकार से मांग की है।
याद रहे कि मुम्बई के पंकज के. फडनिस महात्मा गांधी की 1948 में हुई हत्या की फिर से जांच कराने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में लोक हित याचिका दायर की है।
गत अक्तूबर मंे दायर फडनिस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 
एडीशनल सोलिसिटर जनरल अमरेंद्र शरण से कहा है कि वे इस मामले में कोर्ट को सहयोग करें।
 इस पृष्ठभूमि में ललित नारायण मिश्र के  पुत्र व बिहार विधान
परिषद के सदस्य  विजय कुमार मिश्र ने इन पंक्तियों के लेखक से कहा कि हम अपनी इस पुरानी मांग पर कायम हैं कि हत्याकांड की फिर से  जांच होनी चाहिए।
  याद रहे कि  दिसंबर , 2014  में दिल्ली की निचली अदालत ने ललित नारायण मिश्र हत्यांकांड में चार आनंद मार्गियों को आजीवन कारावास की सजा  दी।उनकी अपील ऊपरी अदालत में लंबित है।उन्हें 2015 में  जमानत मिल गयी ।
उस निर्णय के तत्काल बाद  विजय कुमार  मिश्र ने कहा था कि जांच एजेंसी ने आनंद मार्गियों को फंसा दिया।जिन्हें सजा हुई है ,उन लोगों से हमारे पिता या परिवार की कोई दुश्मनी नहीं थी।
  याद रहे कि 2 जनवरी , 1975  को  तत्कालीन रेल मंत्री को समस्ती पुर रेलवे स्टेशन पर बम मार कर बुरी तरह घायल  कर दिया गया था। अगले दिन दाना पुर रेलवे अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गयी।
यह कांड को लेकर बिहार सरकार और केंद्र सरकार के बीच लगातार खींचतान भी चली थी।विभिन्न अदालतों में भी इस केस को उलझाया गया।
 अंततः करीब चालीस साल के बाद इस केस में जिनको सजा भी हुई, उन्हें मृतक के परिजन निर्दोष मान रहे हैं।
 दरअसल चार दशकों तक इस  मामले को लेकर जैसे -जैसे विवाद गहराते रहे,उसी से स्पष्ट है कि यह एक उलझा हुआ केस है।
  अपने जीवन काल में भी ललित बाबू कई कारणों से अक्सर चर्चाओं में रहते थे।पर, उससे भी अधिक चर्चा उनकी हत्या और उसकी जांच-प्रक्रिया को लेकर हुई ।
  ललित नारायण मिश्र एक दबंग  नेता थे।वे तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और उनके छोटे पुत्र संजय गांधी के करीबी थे।कहा जाता था कि उनके जितने राजनीतिक दोस्त थे,उतने ही दुश्मन।उनकी तरक्की से कुछ बड़े लोग ईष्र्यालु हो गये थे।  
    इस हत्याकांड की जांच का भार  पहले बिहार पुलिस की सी.आई.डी.पर था।पर विजय मिश्र के अनुसार बिहार सरकार की अनुमति के बिना ही 
 इस केस को सी.बी.आई.को सौंप दिया गया।
बिहार पुलिस द्वारा पटना की अदालत में इस केस से संबंधित आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका  था।पर  केस अपने हाथ में लेने के बाद सी.बी.आई.ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की  कि वह इस  केस को बिहार से बाहर सुनवाई के लिए भेजने का आदेश दे।
   सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 1979 को यह आदेश दे दिया।यह केस लंबा खिंचता चला गया। 22 मई 1980 को यह केस दिल्ली में सेशन ट्रायल के लिए भेज दिया गया था।
1977 में मुख्य मंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने प्रसिद्ध न्यायविद् वी.एम.तारकुंडे से कहा था कि वे इस बात की समीक्षा करें कि  सी.बी.आई.इस केस कीं जांच सही दिशा में कर रही है या नहीं।तारकुंडे ने फरवरी, 1979 में प्रस्तुत अपनी रपट में साफ-साफ कह दिया था कि सी.बी.आई.इस केस में आनंद मार्गियों को गलत ढंग से फंसा रही है।इस रपट को बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को भेज दिया था। 
  पहले दिल्ली के पाटियाला हाउस कोर्ट में यह केस गया।फिर इसे तीस हजारी कोर्ट में भेज दिया गया। लंबी सुनवाई के बीच बारी-बारी से करीब दो दर्जन  जज बदल गए।
बचाव पक्ष के कई  वकीलों का सुनवाई के बीच ही देहांत हो चुका है।एक अभियुक्त की भी मृत्यु हो गयी  । इस केस के दस्तावेज 11 हजार पन्नों में हैं।सी.बी.आई.ने आनंद मार्ग से जुड़े 10 प्रमुख लोगों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया। 
    सी.बी.आई. का आरोप था कि  आनंदमार्गियों ने अपने गुरू आनंदमूत्र्ति प्रभात रंजन सरकार  की जेल से रिहाई के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए रेल मंत्री की हत्या कर दी।हालांकि बिहार पुलिस की सी.आई.डी. द्वारा प्रारंभिक जांच के क्रम में जो बातें सामने आई थीं, वे बातें किन्हीं अन्य प्रभावशाली लोगों की तरफ इशारा करती थीं। 
    इस केस में  ललित बाबू के भाई  डा.जगन्नाथ मिश्र ने भी गवाही दी। विजय कुमार मिश्र और डा.मिश्र ने अदालत में कहा कि  आनंदमार्गियों से ललित बाबू की कोई दुश्मनी नहीं थी।इससे पहले ललित नारायण मिश्र की विधवा कामेश्वरी देवी ने मई, 1977 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री चरण सिंह को पत्र लिख कर उनसे मांग की थी कि वे मेरे पति की हत्या के मामले की फिर से जांच कराएं।उन्होंने यह भी लिखा था कि जिन आनंदमार्गियों को इस कांड में गिरफ्तार किया गया है,वे निर्दोष हैं।
    आश्चर्यजनक ढंग से यह बात सी.बी.आई.की कहानी से मेल नहीं खाती। इस केस को लेकर आशंकाएं और भी गहरा गयी थी जब इकबालिया गवाह  विक्रम ने भी आरोप लगाया  कि सी.बी.आई.ने उस पर दबाव डाल कर उससे गलत बातें कहलवा ली। 
      उत्तर बिहार के समस्ती पुर रेलवे स्टेशन पर 2 जनवरी 1975 को समस्ती पुर-मुजफ्फर पुर बड़ी लाइन का उद्घाटन समारोह था।समारोह चल ही रहा था कि सभा स्थल पर ग्रेनेड से हमला कर दिया गया।इस हमले में रेल मंत्री बुरी तरह घायल हो गये।अंततः उस कांड में मंत्री सहित चार लोग मरे और 25 घायल हो गए।
   इस हत्याकांड की कहानी सिर्फ इसलिए ही अजूबी नहीं है कि इसकी जांच और सुनवाई में रिकाॅर्ड समय लगा,बल्कि इसलिए भी अजीब है क्योंकि इसमें काफी गुत्थियां हैं । इस केस के अनुसंधान के दौरान कई मोड़ आए।घटना के बाद की शुरूआती जांच के दौरान अरूण कुमार ठाकुर और अरूण मिश्र के सनसनीखेज बयान सामने आए थे।इन लोगों ने समस्ती पुर के एक न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष सी.आर.पी.सी.की धारा -164 के तहत यह बयान दिया था कि किसी  प्रभावशाली व्यक्ति के कहने पर उन लोगों ने ही हत्या की योजना बनाई थी और उस काम को अंजाम दिया था। बिहार पुलिस की सी.आई.डी.ने मिश्र और ठाकुर के बयान दर्ज करवाए थे।
  पर, इसके बावजूद बाद में सी.बी.आई. ने  कह दिया कि मिश्र और ठाकुर निर्दोष हैं।दरअसल  हत्या में आनंदमार्गियों के हाथ है। बयानों से यह बात भी सामने आ रही थी कि इस हत्याकांड में बिहार के एक एम.एल.सी.,मुजफ्फर पुर के एक दबंग  नेता और दिल्ली के एक चर्चित  नेता शमिल थे।
घायल हो जाने के बाद जिस तरह बुरी तरह घायल रेल मंत्री के इलाज में लापारवाही बरती गयी,उससे भी यह शंका पैदा हुई कि कहीं कोई  षड्यंत्र तो नहीं था !

इस मुकदमे के अलावा मिश्र हत्याकांड की जांच के लिए मैथ्यू आयोग भी बना था।मैथ्यू आयोग के समक्ष समस्ती पुर रेल पुलिस के अधीक्षक सरयुग राय और अतिरिक्त कलक्टर आर.वी शुक्ल ने  कहा था कि ललित नारायण मिश्र को घायलावस्था में समस्ती पुर से दाना पुर ले जाने वाली गाड़ी को समस्ती पुर स्टेशन पर  शंटिंग में ही एक घंटा दस मिनट लग गया। दरभंगा के कमिश्नर जे.सी.कुंद्रा ने 16 अप्रैल 1975 को आयोग से  कहा कि मैंने उद्घाटन के अवसर पर दो हजार लोगों को निमंत्रित करने के रेल अधिकारियों के प्रस्ताव पर कभी सहमति नहीं दी थी।
@ फस्र्टपोस्टहिंदी में 3 जनवरी, 2018 को प्रकाशित मेरा लेख@

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