इस देश के अधिकतर न्यूज चैनलों के एंकर अपने श्रोताओं -दर्शकों के साथ भारी अन्याय करते हैं।
जरूरत पड़ने पर भी वे बकबादी और ‘मुंहजोड’़ अतिथियों की माइक डाउन नहीं करते।नतीजा यह होता है कि कई अतिथि अपनी बारी से पहले अविराम बोलते रहते हैं।एक साथ कई अतिथि बोलते हैं।कई बार इन्हें अतिथि कहना भी इस शब्द कव अपमान लगता है।हालांकि सब अतिथि एक जैसे नहीं होते।
कुछ तो एंकर के बुलावे के बिना एक शब्द नहीं बोलते।
कई बार तो भारी शोरगुल के बीच किसी दर्शक को कुछ समझ में नहीं आता कि कौन क्या बोल रहा है।श्रोताओं का समय खराब होता है।वह चैनल बदल देता है।जब वह किसी दूसरे चैनल पर जाता है, तो देखता है कि वहां भी उसी तरह का ‘बतकुचन’ हो रहा है।
आखिर वह क्या करे ?
किसी और काम में लग जाता है।
गुस्सा एंकर पर आता है।
वे ऐसे बकबादी अतिथियों को क्यों झेलते हैं ?
देश के सामने शालीनता से अपनी बातें रखने वाले और बारी से पहले नहीं बोलने वाले समझदार लोगों की इस देश में इतनी कमी हो गयी है क्या ?
जरूरत पड़ने पर भी वे बकबादी और ‘मुंहजोड’़ अतिथियों की माइक डाउन नहीं करते।नतीजा यह होता है कि कई अतिथि अपनी बारी से पहले अविराम बोलते रहते हैं।एक साथ कई अतिथि बोलते हैं।कई बार इन्हें अतिथि कहना भी इस शब्द कव अपमान लगता है।हालांकि सब अतिथि एक जैसे नहीं होते।
कुछ तो एंकर के बुलावे के बिना एक शब्द नहीं बोलते।
कई बार तो भारी शोरगुल के बीच किसी दर्शक को कुछ समझ में नहीं आता कि कौन क्या बोल रहा है।श्रोताओं का समय खराब होता है।वह चैनल बदल देता है।जब वह किसी दूसरे चैनल पर जाता है, तो देखता है कि वहां भी उसी तरह का ‘बतकुचन’ हो रहा है।
आखिर वह क्या करे ?
किसी और काम में लग जाता है।
गुस्सा एंकर पर आता है।
वे ऐसे बकबादी अतिथियों को क्यों झेलते हैं ?
देश के सामने शालीनता से अपनी बातें रखने वाले और बारी से पहले नहीं बोलने वाले समझदार लोगों की इस देश में इतनी कमी हो गयी है क्या ?
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