इस महीने की 24 तारीख को कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई जाएगी।
कई जगह जयंती समारोहों की औपचारिकता पूरी की जाएगी।
पर ऐसे अवसरों पर आज की स्थिति से निराश राजनीतिक कार्यकत्र्तागण कर्पूरी ठाकुर के नाम पर मन ही मन कुछ संकल्प लेना चाहें तो उससे उनकी निराशा देर -सवेर दूर हो सकती है।
दरअसल इन दिनों अनेक राजनीतिक कार्यकत्र्ता इस बात का रोना रोते पाए जाते हैं कि पैसा, खास वंश और जाति बल के बिना राजनीति में आगे बढ़ना आज असंभव हो गया है।
ऐसे में उनके लिए यह जानना जरूरी है कि कर्पूरी ठाकुर के पास इन तीनों में से कुछ भी नहीं था,फिर भी वे बिहार की राजनीति व सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे।
हालांकि कम था, लेकिन कर्पूरी ठाकुर के जमाने में भी उपर्युक्त तीनों तत्व अन्यत्र मौजूद थे।उनसे कर्पूरी जी लड़े और जीते भी।
यह और बात है कि आज पैसा,जाति और वंशवाद का वीभत्स रूप सामने आया हुआ है।
पर कर्पूरी ठाकुर ने खुद में जो कुछ खास गुण विकसित किए थे,उसके लिए आज भी कोई पैसे नहीं लगते।
कर्पूरी ठाकुर ईमानदार, विनम्र, धैर्यवान और मेहनती थे।
कर्पूरी ठाकुर सरजमीन से अपना संपर्क लगातार कायम रखते थे।
कोई राजनीतिक कार्यकत्र्ता ये गुण खुद में विकसित कर ले तो बाकी कमियां की क्षतिपूत्र्ति हो सकती हैं।
अधिक दिन नहीं हुए जब सी.पी.एम.के बासुदेव सिंह और माले के महेंद्र प्रसाद सिंह ऐसे ही गुणों से लैस थे।दोनों अंत तक बिहार में विधायक रहे।ऐसे कुछ नाम और भी हो सकते हैं।
आज वंशवाद का बहुत रोना रोया जाता है।
यदि कहीं किसी कारणवश जातीय वोट बैंक तैयार हो जाएगा तो उस वोट बैंक का मालिक परिवारवाद चलाएगा ही।
कर्पूरी ठाकुर,बासुदेव सिंह और महेंद्र प्रसाद सिंह जैसे जमीनी कार्यकत्र्ता पैदा होने लगंेगेे तो वे कम से कम अपने क्षेत्रों में तो जातीय वोट बैंक का ताला तोड़ देने की उम्मीद कर ही सकते हंै।
अररिया लोक सभा उप चुनाव---
निकट भविष्य में देश के आठ संसदीय क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं।उन क्षेत्रों में बिहार का अररिया भी शामिल है।
राजद के मो.तसलीमुददीन के निधन से यह सीट खाली हुई है।
वैसे तो राजद की यह एक मजबूत सीट मानी जाती है, पर इसके चुनाव नतीजे बिहार की चुनावी राजनीति की अगली दिशा के कुछ-कुछ संकेतक हो सकते हैं।
पिछले लोक सभा चुनाव में तसलीमुददीन को भाजपा और जदयू के मिलेजुले मतों से भी लगभग 80 हजार अधिक वोट मिले थे।
तब राजद, भाजपा और जदयू के उम्मीदवार आमने -सामने थे।
अब बिहार का राजनीतिक समीकरण बदल चुका है।
अगला चुनाव भाजपा और जदयू मिलकर लड़ेंगे।
उधर लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद राजद दावा कर रहा है कि उनके वोट बैंक में इजाफा हुआ है।इस उप चुनाव में इस दावे की भी जांच हो जाएगी।
उधर भाजपा का दावा है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में ऐसे -ऐसे काम किए हैं जो पहले कभी नहीं हुए।
अररिया के मतदाता उस दावे पर भी अपना निर्णय सुनाएंगे ।जब भी आठ लोक सभा क्षेत्रों में उप चुनाव हांेगे, उनके नतीजे 2019 के आम चुनाव के लिए संकेतक साबित हो सकते हैं।
शिशु कन्या भ्रूण हत्या में कमी--
हरियाणा में शिशु कन्या भू्रण हत्या में इधर काफी कमी आयी है।
2011 में जहां हरियाणा में 1000 पुरूष के मुकाबले मात्र 834 स्त्रियां थीं,वही अब यह संख्या 914 पहुंच गयी है।
राष्ट्रीय औसत 919 है।
आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ ?
सरकारी प्रयास से हुआ या अन्य कारणों से ? जो भी हो, इससे वे राज्य सीख सकते हैं जहां इस अनुपात में काफी असंतुलन है।
कुछ साल पहले यह खबर आई थी कि हरियाणा के युवकों की शादी केरल तथा कुछ अन्य राज्यों की लड़कियों से हो रही है।इसका अच्छा असर हो रहा है।
हरियाणा में ब्याही केरल की लड़कियां जब मां बनती हैं तो वे कन्या शिशु की भी उसी तरह रक्षा व देखभाल करती हैं जिस तरह वे लड़के की करती हैं।
हाल के वर्षों में हरियाणा सरकार ने लिंग अनुपात के असंतुलन को गंभीरता से लिया और अनेक अल्ट्रा साउंड मशीनों को जब्त किया जो गर्भ शिशुओं की लिंग जांच के लिए लगाई गयी थीं।इसका भी सकारात्मक असर जरूर पड़ा होगा।
पुलिस के समक्ष कबूलनामे का महत्व बढ़ेगा ?---
अभी इस देश की अदालतें पुलिस के समक्ष किए गए कबूलनामे को सबूत का दर्जा नहीं देती।
न्यायिक दंडाधिकारी के सामने दर्ज बयान को वह दर्जा हासिल है।
मौजूदा केंद्र सरकार अब इस स्थिति को बदलना चाहती है।
उसके सामने मलिमथ कमेटी की सिफारिश का आधार मौजूद है।
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में सुधार के लिए सुझाव देने के लिए अटल सरकार ने जस्टिस मलिमथ के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी।उसने 2003 में ही अन्य बातों के अलावा यह भी सिफारिश
की थी कि पुलिस अफसर के समक्ष किए गए कबूलनामे को अदालतें सबूत के रूप में स्वीकार करंे।इसके लिए संबंधित कानून में संशोधन हो।
पर बाद की मन मोहन सरकार ने इसे नहीं माना।जानकार सूत्रों के अनुसार मौजूदा केंद्र सरकार उस सिफारिश को लागू करने के लिए उच्चस्तरीय विचार-विमर्श कर रही है।
दरअसल केंद्र सरकार देश में आपराधिक मामलों में सजाओं की घटती दर से चिंतित है।
साथ ही खबर है कि उस मलिमथ कमेटी की इस सिफारिश पर भी केंद्र सरकार विचार कर रही है कि न्यायाधीशों पर महाभियोग लाने की प्रक्रिया को भी सरल बनाया जाए।
महाभियोग की मौजूदा प्रक्रिया जटिल है।
यदि सरकार ये दोनों काम कर सकी तो उससे भारी सकारात्मक फर्क आ सकता है।
एक भूली बिसरी याद
जीवन भर पत्रकार दूसरों के बारे में लिखते रहते हंै।पर
खुद उनके दिवंगत हो जाने के बाद उन पर कम ही लोग लिखते हैं या याद करते हैं।
कई बार किसी पुराने पत्रकार के निधन की जब छोटी सी खबर छपती है तो मुझे लगता है कि काश ! मैं उनसे हाल में भी मिल लिया होता ।
खैर ऐसे ही एक नामी पत्रकार सुधांशु कुमार घोष उर्फ मंटू दा के बारे में हमारे बीच के सबसे वरीय पत्रकार रवि रंजन सिंहा ने 1999 में इसी अखबार में लिखा था।
रवि रंजन बाबू के शब्दों में एक बार फिर पढ़ना रूचिकर होगा।
‘ वे पी.टी.आई.के पटना कार्यालय के प्रमुख थे।मगर जिस ढंग से लोग उनके प्रति सम्मान प्रकट करते थे ,उसे देख कर उत्सुकता होती थी कि आखिर इस व्यक्ति में ऐसा क्या है जो लोगों को अपनी ओर खींचता है !
उनकी वेश भूषा में कोई विशेषता नहीं होती थी।मैंने उन्हें बराबर सफेद धोती -कुत्र्ता पहने देखा।जिस पर जाड़े में एक बंडी और एक दुशाला होता।
मगर जब वे फ्रेजर रोड पर, जो उस समय पटना का फ्लीट स्ट्रीट हुआ करता था,चलते तो दोनों ओर से नमस्ते , प्रणाम की वर्षा होती।@याद रहे कि उन दिनों वह रोड आज जैसी चैड़ी नहीं थी।@
मंटू दा अभिवादन करने वालों को उसकी आवाज से ऊंची और अपनी टनकदार आवाज में जवाब देते और मुस्कराते हुए आगे बढ़ जाते।’
रवि रंजन बाबू ने ठीक ही लिखा है कि वे समवयस्कों के साथ ही नहीं बल्कि अपने से उम्र में छोटे के साथ भी मित्रवत व्यवहार करते थे।मैंने भी ऐसा करते हुए उन्हें देखा था।खुद भी अनुभव किया था।
पत्रकार के रूप में उन्होंने अपनी बड़ी गहरी छाप छोड़ी थी।‘इंडियन नेशन’ में उनका साप्ताहिक काॅलम बहुत ही रोचक और सूचनाप्रद होता था।
और अंत में
महाराष्ट्र कैबिनेट ने महत्वपूर्ण निर्णय किया है।
वह सरकारी प्रयोजन के लिए किसानों से जो जमीन अधिगृहीत करेगी,उसका बाजार दर से चार गुणा
मुआवजा देगी।
ध्यान रहे कि सरकारी रजिस्ट्री दर नहीं, बल्कि बाजार दर।
इसके लिए संबंधित कानून में महाराष्ट्र सरकार संशोधन करने जा रही है।
उस राज्य सरकार को लगता है कि इतने अधिक मुआवजे के बाद जमीन के अधिग्रहण में दिक्कत नहीं होगी और विकास कार्यों के लिए जमीन आसानी से उपलब्ध होगी।
@19 जनवरी 2018 को प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान-प्रभात खबर -बिहार से@
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