बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह ने सर गणेश दत्त
सिंह के बारे में जो कुछ लिखा है, उसे मैं यहां हू ब हू प्रस्तुत कर रहा हूं --
‘ सन 1944 की बात है।सर गणेश दत्त सिंह की प्रशंसा में मैंने बहुत कुछ सुन रखा था, किंतु उनसे मिलने का अवसर नहीं मिला था।
एक दिन राम दयालु बाबू उनसे मिलाने के लिए मुझे पटना विश्वविद्यालय परिसर में कृष्ण कुंज में ले गए।
उसे उन्होंने अपने लिए बनवाया था।
बाद में उनकी इच्छानुसार वह मकान पटना विश्व विद्यालय को दे दिया गया।
उस समय सर गणेश दत्त सिंह व्हील चेयर पर चलते थे।
उनको देखते ही तत्काल मैं स्वाभाविक रूप से प्रभावित हो गया।
उन्होंने मेरा परिचय पाकर मुझे भरपूर आशीर्वाद दिया।
उनके चेहरे पर विचित्र चमक थी।
शालीनता थी।
और साथ ही स्पष्टतः निर्भयता झलकती थी।
उनका निजी जीवन निस्पृह था।उनमें सिद्धांत के प्रति विशेष प्रतिबद्धता थी।मंत्री की हैसियत से जो तनख्वाह उन्हें मिलती थी,उनमें से अपने खर्च के लिए एक अल्पांश रख कर सब कुछ शिक्षा के प्रसार के लिए वे दान कर दिया करते थे।
सर गणेश दत्त लोन स्काॅलरशिप से वित्तीय सहायता पाकर बड़ी संख्या में विद्यार्थी डाक्टर बन कर लाभान्वित हुए।मैं भी कुछ वर्षों तक संबंधित कमेटी का सदस्य था।
इसके माध्यम से विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोन स्काॅलरशिप दी जाती थी।
शत्र्त यह थी कि स्वदेश आने पर अपनी कमाई से किस्तों में लौटा देना होगा।
सर गणेश दत्त सिंह निजी जीवन में त्यागी और तपस्वी थे।
आज अफसोस होता है कि उनके नाम से पटना विश्व विद्यालय में
कोई चेयर की स्थापना अभी तक नहीं की गयी है।
इसके लिए हम सब दोषी हैं। आज ज्यादा आश्चर्य तो इससे होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में जिनका योगदान नहीं था,उनके नाम पर कई विश्व विद्यालयांे का नामकरण कर दिया गया।’
@ करीब एक दशक पूर्व प्रकाशित सत्येंद्र बाबू की आत्म कथा ‘मेरी यादें मेरी भूलें’ से साभार @
@ 13 जनवरी 2018@
सिंह के बारे में जो कुछ लिखा है, उसे मैं यहां हू ब हू प्रस्तुत कर रहा हूं --
‘ सन 1944 की बात है।सर गणेश दत्त सिंह की प्रशंसा में मैंने बहुत कुछ सुन रखा था, किंतु उनसे मिलने का अवसर नहीं मिला था।
एक दिन राम दयालु बाबू उनसे मिलाने के लिए मुझे पटना विश्वविद्यालय परिसर में कृष्ण कुंज में ले गए।
उसे उन्होंने अपने लिए बनवाया था।
बाद में उनकी इच्छानुसार वह मकान पटना विश्व विद्यालय को दे दिया गया।
उस समय सर गणेश दत्त सिंह व्हील चेयर पर चलते थे।
उनको देखते ही तत्काल मैं स्वाभाविक रूप से प्रभावित हो गया।
उन्होंने मेरा परिचय पाकर मुझे भरपूर आशीर्वाद दिया।
उनके चेहरे पर विचित्र चमक थी।
शालीनता थी।
और साथ ही स्पष्टतः निर्भयता झलकती थी।
उनका निजी जीवन निस्पृह था।उनमें सिद्धांत के प्रति विशेष प्रतिबद्धता थी।मंत्री की हैसियत से जो तनख्वाह उन्हें मिलती थी,उनमें से अपने खर्च के लिए एक अल्पांश रख कर सब कुछ शिक्षा के प्रसार के लिए वे दान कर दिया करते थे।
सर गणेश दत्त लोन स्काॅलरशिप से वित्तीय सहायता पाकर बड़ी संख्या में विद्यार्थी डाक्टर बन कर लाभान्वित हुए।मैं भी कुछ वर्षों तक संबंधित कमेटी का सदस्य था।
इसके माध्यम से विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोन स्काॅलरशिप दी जाती थी।
शत्र्त यह थी कि स्वदेश आने पर अपनी कमाई से किस्तों में लौटा देना होगा।
सर गणेश दत्त सिंह निजी जीवन में त्यागी और तपस्वी थे।
आज अफसोस होता है कि उनके नाम से पटना विश्व विद्यालय में
कोई चेयर की स्थापना अभी तक नहीं की गयी है।
इसके लिए हम सब दोषी हैं। आज ज्यादा आश्चर्य तो इससे होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में जिनका योगदान नहीं था,उनके नाम पर कई विश्व विद्यालयांे का नामकरण कर दिया गया।’
@ करीब एक दशक पूर्व प्रकाशित सत्येंद्र बाबू की आत्म कथा ‘मेरी यादें मेरी भूलें’ से साभार @
@ 13 जनवरी 2018@
1 टिप्पणी:
Sir,
The centenary year (2017-2018) of Former CM & a leading light of JP movement Late Satyendra Narayan Singh Ji is underway
I request you to post a blog his contribution or role in Bihar politics
एक टिप्पणी भेजें