बुधवार, 10 जनवरी 2018

 आज के दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में एक ऐसी खबर छपी है जिस पर हर भारतीय गर्व कर सकता है।
खबर है कि अमेरिकी सांसदों के दबाव पर वहां की सरकार ने
‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ की नीति का कार्यान्वयन रोक दिया है।
सासंदों का कहना है कि इसे लागू करने से सात लाख भारतीयों को  अमेरिका छोड़ना पड़ेगा।इससे अमेरिका के आई.टी. क्षेत्र में बड़ा नुकसान हो जाएगा।साथ ही भारत से संबंध बिगड़ेगा जिससे अमेरिका को अलग से आर्थिक नुकसान होगा।
  पर इस खबर के साथ भारत सरकार के निरंतर निकम्मेपन और विफलताओं पर भी उन हर भारतीय को गुस्सा आएगा जो यहां के सार्वजनिक संसाधनों की लूट में शामिल नहीं है।
आखिर उन सात लाख भारतीयों  को भारत में ही काम क्यों नहीं दिया जा सका  ?
उन्हें स्वदेश क्यों छोड़ना पड़ा ? कोई कह सकता है कि हमारे पास उन्हें देने के लिए अधिक पैसे नहीं थे।
पर, घोटालो-महा घोटालों में गंवा देने के लिए तो भारत में बहुत पैसे हैं।लाखों करोड़ रुपए एन.पी.ए. में लुटा देने के लिए पैसे हैं।
 अधिकतर सत्ताधारी नेताओं को सरकारी धन पर उनके सात पुश्तों के लिए अमीर बना देने के लिए भी पैसों की कोई कमी नहीं है।
अधिकतर अफसर व व्यापारी देश को लूट रहे हैं।अनेक पदधारी नेता जनता के पैसों से पांच सितारा जीवन जी रहे हैं।
उन पर कितनी रोक लग सकी है ?
  यह भी कहा जा सकता है कि बाहर गए लोग देशप्रेमी नहीं हैं। वे  विदेशों में अत्यंत आलीशान व सुखमय जीवन चाहते हैं।उनमें से कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं।पर विदेशों में कार्यरत अनेक भारतीयों को स्वदेश की बहुत याद सताती है। उनमें से कुछ तो कुछ कम पैसों पर भी इसी देश में रहना चाहते हैं। 
 पर सिर्फ यही समस्या नहीं है।अनेक  स्तरों पर बहाली में पक्षपात की भी यहां बड़ी समस्या है।
आपको याद होगा कि जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे तो उनके घुटने के आॅपरेशन के लिए न्यूयार्क से डा.चितरंजन राणावत को बुलवाया गया था।मुम्बई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका आपरेशन हुआ था।
सफल आपरेशन के बाद भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण दिया था।
उससे पहले जब डा.राणावत ने इस देश के एक राष्ट्रपति की आंखों का सफल आॅपरेशन किया  था।उस पर  उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था।
  पर डा.राणावत आखिर भारत छोड़कर अमेरिका में क्यों बस गये थे ?
क्योंकि नई दिल्ली के एम्स ने  नौकरी के उनके आवेदन को रिजेक्ट कर दिया था।
 उससे पहले राणावत को इंदौर के क्रिश्चियन मेडिकल काॅलेज में दाखिला तक नहीं मिल सका था। उन दिनों यह खबर भी छपी थी कि वहां  भी भेदभाव के कारण ही ऐसा हुआ था।

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