सोमवार, 1 जनवरी 2018

राजनीति में एम.जी.आर.की सफलता को लेकर रजनीकांत की तरह ही जताई गयी थीं आशंकाएं


            
मशहूर फिल्म अभिनेता एम.जी.रामचंद्रन .जब पहली बार 1977 में तमिलनाडु के मुख्य मंत्री बने थे तो भी कुछ राजनीतिक पंडितों ने कहा था कि ‘वह अनर्थकारी साबित होंगे।’
यह भी कहा गया कि आम चुनाव में उनकी जीत एक सामान्य योग्यता वाले व्यक्ति यानी एक मीडियोकर की जीत है।
पर गद्दी पर बैठने के  बाद एम.जी.आर.ने स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए महत्वाकांक्षी व बेहतर मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम सहित   राज्य में कई नए काम किए। बीच में कुछ महीनों को छोड़ कर वे 1977 से 1987 तक मुख्य मंत्री रहे।
कुल मिलाकर वे एक सफल मुख्य मंत्री साबित हुए थे।उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
1917 में जन्मे एम.जी.आर.का 1987 में निधन हो गया।
   अब जबकि तमिलनाडु के एक अन्य बड़े अभिनेता रजनी कांत ने राजनीति में कदम रखा है तो उनके बारे में भी कुछ हलकों में उसी तरह की आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं।
डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो उन्हें अनपढ़़ तक कर दिया है।
 एम जी आर के सत्ता में आने से ठीक पहले तमिलनाडु की जैसी राजनीतिक और प्रशासनिक   स्थिति थी,उससे आज की स्थिति अधिक खराब लग रही है।ऐसे में यदि कोई सत्ता में आकर उस स्थिति में थोड़ा भी सुधार करने की कोशिश करे तो उसे लोग हाथों हाथ लेंगे,ऐसा कहा जा रहा है।देखना होगा कि यह मौका रजनीकांत को मिलता है या नहीं।
  रजनी कांत ने कहा है कि वे पार्टी बनाएंगे और अगले चुनाव में 
सभी विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
उनका यह भी दावा है कि वे तमिलनाडु की राजनीतिक  व्यवस्था को बदल कर रख देंगे।
वे पैसा,पावर और पालिटिक्स के लिए राजनीति में नहीं आ रहे हैं।
रजनीकांत ने यह बात इसीलिए कही है क्योंकि इन दिनों तमिलनाडु की राजनीति में इन्हीं तीन तत्वों का अधिक बोलबाला है। 
 जाहिर है कि रजनीकांत यदि सत्ता में आ जाएं और वे राजनीति व शासन व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ भी लीक से हटकर  काम करने की कोशिश करें  तो वे राजनीति में एम.जी.आर.की तरह ही जम सकते हैं।
  वैसे तो तत्कालीन डी.एम.के. नेता एम.जी.राम चंद्रन .सन् 1962 में ही विधान परिषद के सदस्य बन गए थे।यानी राजनीति से उनका नाता रजनीकांत की अपेक्षा पुराना था। फिर भी वे पहले फिल्मों पर ही अधिक ध्यान दे रहे थे।
  डी.एम.के. सबसे बड़े नेता और मुख्य मंत्री रहे अन्ना दुरै के निधन के बाद करूणानिधि ने 
डी.एम.के. की कमान संभाल ली।एम.जी.आर.ने जब देखा कि करूणानिधि अपने पुत्र एम.के.मुत्थु को आगे बढ़ा रहे हैं,तो एम.जी.आर.ने विद्रोह कर दिया।नतीजतन उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।सन 1972 में एम.जी.आर.ने ए.आई.ए.डी.एम.के.बना लिया।
1977 के विधान सभा चुनाव में उनके दल को बहुमत भी मिल गया।
यह सब फिल्मों के जरिए  जनता पर एम.जी.आर.ने जो  जादू चलाया था,उसके कारण संभव हुआ।इधर रजनीकांत का जादू भी कम नहीं है।मुख्य मंत्री बनने के बाद एम जी आर ने स्कूली बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन के कार्यक्रम को बेहतर बनाया।उसमें पौष्टिक सामग्री की आपूत्र्ति करवाई।
वैसे तमिलनाडु में 1925 से ही मध्याह्न भोजन कार्यक्रम चल रहा था।
 महिलाओं के लिए उन्होंने अलग से विशेष बसें चलवाईं।
राज्य में शराबबंदी की।
राज्य के ऐतिहासिक स्थलों और मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया।
इस तरह के कुछ अन्य काम भी किए।
 वैसे भी उत्तर भारत के राज्यों की अपेक्षा दक्षिण भारत के राज्य विकास और सुशासन के क्षेत्र में आगे रहे हैं।
एक फिल्मी कलाकार एमजीआर के मुख्य मंत्री बन जाने के बाद भी उसमें कोई अंतर नहीं आया,ऐसी खबरें मिलती रहीं।
  हां, अपने पुत्र के प्रति करूणानिधि के झुकाव को देख कर तो एमजीआर ने पार्टी तोड़ दी, पर उन्होंने खुद अपने उतराधिकारी के रूप में जय ललिता को आगे बढ़ाया।  
एम.जी.आर.की तरह ही रजनीकांत भी तमिलनाडु में अत्यंत लोकप्रिय अभिनेता हैं।पर देखना है कि वे राजनीतिक चालें चलने में  कितने माहिर साबित होते हैं।परंपरागत विवेक उनमें कितना है।वैसे तो राह आसान नहीं है, फिर भी यदि उन्हें सत्ता में आने का मौका मिला तो देखना होगा कि वे डा.स्वामी जैसे नेताओं व अन्य राजनीतिक पंडितों की आंशंकाओं को किस हद तक गलत साबित कर पाते हैं।
अनपढ़ के आरोप पर यह कहा जा सकता है कि मद्रास के पूर्व मुख्य मंत्री के .कामराज भी बहुत ही कम पढ़े -लिखे थे। वे अंगे्रजी तक नहीं जानते थे।
पर वे परंपरागत विवेक से लैस थे।कामराज ने कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी सफलता पूर्वक संभाला था।पता नहीं इस मामले में रजनीकांत कहां टिकते हैं।
@ फस्र्टपोस्टहिंदी पर 1 जनवरी 2018 को प्रकाशित मेरा लेख@  

  

  
      

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