स्वास्थ्य संरचनाओं में विधायक फंड के इस्तेमाल
का निर्णय सराहनीय --सुरेंद्र किशोर
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कोविड-19 ने ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य संरचनाओं की कमियां उजागर कर दी हैं।
इस मामले में पूरे देश में कमोवेश एक ही स्थिति है।
मरीजों की मदद न कर पाने की जन प्रतिनिधियों की विवशता भी सामने आई है।
अधिकतर मामलों में मरीजों की विशेष देखभाल कौन कहे,सामान्य देखभाल भी नहीं हो सकी।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की खराब स्थिति का खामियाजा जन प्रतिनिधियों को भी भुगतना पड़ रहा है।
अधिकतर पीड़ित लोग
उनसे नाराज हो रहे हैं।
वैसे पता नहीं,यह नाराजगी स्थायी रहेगी या अस्थायी !
यदि आने वाले दिनों में जन प्रतिनिधि गण स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद करेंगे तो शायद नाराजगी स्थायी नहीं रहेगी।
कोविड का स्वरूप तो इतना विकराल-विशाल रहा है कि अमीर देश भी सफल जन सेवा में विफल रहे हैं।
पर कोविड की लहर के गुजर जाने के बाद आम दिनों में इस देश की स्वास्थ्य व्यवस्था अब बेहतर बने ,इस बनाने में सरकार के अलावा जन प्रतिनिधियों का भी कारगर योगदान रहे,यह उम्मीद तो की ही जा सकती है।
इस पृष्ठभूमि में शासन का यह निर्णय सराहनीय है कि जनप्रतिनिधयों के फंड का स्वास्थ्य क्षेत्र में उपयोग किया जाएगा।
अब यह जन प्रतिनिधियों खास कर विधायकों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके फंड का सदुपयोग ही हो।
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कैसे बेहतर बने स्वास्थ्य संरचना
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जरूरत इस बात की है कि जिला और अनुमंडल स्तरों के सरकारी अस्पतालों की बेहतरी पर स्थानीय सांसद ध्यान दें।
उससे नीचे स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के विकास व रख- रखाव पर संबंधित विधायक नजर रखें।
वे अपने-अपने क्षेत्र में इस बात का ध्यान रखें के अस्पतालों की उपेक्षा शासन न करे।चिकित्सक समय पर अस्पतालों में जरूर हाजिर रहें।
स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए गरीब व निम्न आय वाले लोग तो सरकारी संस्थानों पर ही निर्भर रहते हैं।
पप्पू यादव के साथ ताजा विवाद को नजरअंदाज कर दें तो सारण के सांसद राजीव प्रताप सिंह रूडी ने अपने चुनाव क्षेत्र में दर्जनों एम्बुलेंस वर्षों से मुहैया करा कर अनुकरणीय काम किया है।कोरोना काल में बेड,आक्सीजन और एम्बुलेंस के लिए ही अधिकतर मरीज तरसते रहे।
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आरोप-प्रत्यारोपों से प्रतिष्ठा -हानि
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आम तौर से यह माना जाना चाहिए कि इस देश की सभी सरकारें अपने- अपने ढंग से अभूतपूर्व ‘कोविड महा विपत्ति’’ से मुकाबले के काम में लगी हुई हंै।
कोई भी चुनी हुई सरकार जान बूझकर कोताही भला क्यों करेगी ?
हां, जहां -तहां ऐसी विपत्ति से निपटने के कौशल में कमी और प्रशासनिक संरचनाओं की कमजोरीे से समस्याएं कुछ अधिक सामने आ रही हैं।
इस देश के कई नेतागण एक -दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं।
कुछ तो कड़े सवाल पूछ रहे हैं।
ऐसे नेताओं का कोई मान नहीं बढ़ रहा है।
इस देश के एक राज्य में जो दल प्रतिपक्ष में है,वही दल या उसके सहयोगी दल दूसरे राज्य में सत्ता में हंै।
सारे राज्यों में तो हालात कमोवेश एक ही तरह के हंै।
इस स्थिति में आप पहले अपने गिरेबान में झांकिए।
मिलजुल कर समस्या से निपटने का उपाय करिए।
राजनीति तो बाद में भी होती ही रहेगी।
करते रहिएगा।
अभी खुद को जनता के समक्ष हल्का व सत्तालोलुप क्यों साबित कर रहे हैं ?
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चुनिए बेहतर पंचायत प्रतिनिधि
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बिहार के सरकारी स्कूलों में सन 2006 से 2015 तक बहाल शिक्षकों में से करीब एक लाख 397 शिक्षकों की डिग्रियां अनुपलब्ध हैं।
इसलिए निगरानी जांच ब्यूरो इस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा है कि इनकी बहाली साफ-सुथरे ढंग से हुई या जाली डिग्रियों के आधार पर हुई है।
पंचायत व नगर निकाय संस्थाओं ने इनकी बहाली की थी।
जानकार लोग बताते हैं कि ये फर्जी डिग्रियों के आधार पर बहाल हुए हैं।
यदि यह बात सच है तो उसके लिए सब नहीं तो अनेक जन प्रतिनिधि भी दोषी हैं।
कोराना विपत्ति के गुजर जाने के बाद पंचायतों व नगर निकायों के एक बार फिर चुनाव होंगे।
जिन जन प्रतिनिधि लोगों को समाज नल जल योजना व शिक्षक बहाली में
दोषी मानता है, क्या उन्हें ही जनता अगली बार भी अपना प्रतिनिधि बना देगी ?
यदि ऐसा होगा तो इस तरह के ही घोटाले को आगे भी जनता को झेलना पड़ेगा।
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लोस स्पीकर के विचाराधीन
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यहां मिली जानकारी के अनुसार सी.बी.आई.ने लोक सभा स्पीकर से एक बार फिर यह गुजारिश की है कि वे पांच सांसदों के खिलाफ नारद स्टिंग रिश्वत मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति दें।
वे सांसद हैं-सौगत राय,प्रसून बनर्जी,डा.काकोली घोष दस्तीदार, अपरूपा पोद्दार(सभी तृणमूल कांग्रेस) और सुवेंदु अधिकारी (भाजपा)।
नारद स्टिंग आपरेशन के समय सुवेन्दु अधिकारी भी तृणमूल के सांसद थे।
सी.बी.आई. सूत्रों के अनुसार स्पीकर की अनुमति मिल जाने के बाद इन नेताओं के खिलाफ भी अभियोजन चलाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
एक और नाम छूट रहा है।
पक्की खबर तो नहीं है,किंतु शायद सी.बी.आई.उन्हें इस मुकदमे में मुखबीर यानी एप्रूवर बनाए।
हर महत्वपूर्ण मुकदमों में जांच एजेंसी ऐसे मुखबिर की तलाश में रहती है जिसके पास ठोस जानकारियां हों और वह पलटे नहीं।
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और अंत में
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पश्चिम बंगाल में इन दिनों अभूतपूर्व राजनीतिक और प्रशास-
निक तनाव जारी है।
संवैधनिक संस्थाएं एक दूसरे से टकरा रही हैं।
दोनों पक्षों के लोग लक्ष्मण रेखाएं पार कर रहे हैं।
कानून-व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है।
आरोप है कि गत मंगलवार को कोलकाता राज भवन के उत्तरी गेट से कुछ उपद्रवकारी घुस आए थे।
इस पृष्ठभूमि में कुछ राजग समर्थकों को भी इंदिरा गांधी याद आ रही हैं।
वे एक सवाल उठा रहे हैं।
यदि नरेंद्र मोदी की जगह इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री होतीं तो वह ममता बनर्जी सरकार के साथ कैसा सलूक करतीं ?
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--आज के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।
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