बिहार की विधायिका पर एक
सर्वज्ञान विषयक किताब
के ताजा संस्करण की जरूरत
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--सुरेंद्र किशोर--
1982 में एक बहुत ही उपयोगी किताब प्रकाशित हुई थी।
उसका नाम है--‘‘ओरिजिन एंड डेवलपमेंट आॅफ बिहार लेजिस्लेचर।’’
उसे लिखा था बिहार विधान सभा के अध्यक्ष राधानंदन झा ने।
बाद में बिहार विधान परिषद के सभापति प्रो.जाबिर हुसेन की सलाह पर उसका दूसरा संस्करण 1998 में छपा।
दूसरे संस्करण को तैयार करने में भी राधानंदन झा का योगदान था।
उनकी मदद की थी कि इंडियन नेशन व बाद में टाइम्स आॅफ इंडिया के नामी पत्रकार डी.एन.झा ने।
1912 से 1998 तक की विधायिका पर यह सर्वज्ञान विषयक पुस्तक है।
दूसरे संस्करण के आए करीब 23 साल हो चुके हैं।
यानी, इस बहुमूल्य पुस्तक का ताजा संस्करण अब जरूरी है।
एक उम्मीद तो की ही जा सकती है।
वह यह कि इसका ताजा संस्करण ‘कोरोना काल’ के बाद जरूर छपे।
जिन्हें आज के भौतिक युग में भी पढ़ने -लिखने में रूचि हो,वे इसकी जरूरत मौजूदा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के समक्ष रखें।
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यह पुस्तक गंभीर ढंग से पत्रकारिता या शोध कार्य करने वालों के लिए एक जरूरी दस्तावेज है।
मोटा -मोटी बता दें कि इस पुस्तक में 1912 से 1998 तक के बिहार विधान परिषद,विधान सभा के सदस्यों के नाम हैं।
बिहार से संविधान सभा,लोक सभा व राज्य सभा के सदस्यों के भी नाम हैं।
बड़े साइज में करीब सवा तीन सौ पेज की इस किताब में इसके अलावा भी बहुत सारी जानकारियां हैं।
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10 मई 21
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