शुक्रवार, 21 मई 2021

 


कानून तोड़कों में भय पैदा करने से महामारी से भी लड़ना  संभव --सुरेंद्र किशोर 

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विश्वव्यापी कोरोना महामारी विकराल और विशाल है।

इसकी व्यापकता अभूतपूर्व है।

उसेे देखते हुए यह कहना कठिन है कि दुनिया के कितने देशों के पास इसपर सफलतापूर्वक काबू पाने के कारगर उपाय मौजूद हैं।

   भारत के सुप्रीम कोर्ट ने तो गत माह यह टिप्पणी की थी कि 

‘‘हम इस बात से सहमत है कि 70 साल से जो चिकित्सीय संरचनाएं हमें विरासत में मिली हैं,उनसे कोरोना का मुकाबला नहीं किया जा सकता है।’’

  इस चिंताजनक पृष्ठभूमि में भारत में एक और विपत्ति मौजूद है।

उस पर भी सरकारों का कम ही अंकुश लग पा रहा है।

 आॅक्सीजन सिलेंडर से लेकर दवाओं तक की कालाबाजारी हो रही है।तरह तरह के नियम तोड़े जा रहे हैं।

मौत के उन सौदागरों को यह लगता है कि ढीली-ढाली आपराधिक न्याय प्रणाली वाले इस देश में हम अंततः बच ही निकलेंगे।

 अभी जितना लूट सको,लूट लो।मरीजों और उनके परिजनों की पीड़ा की परवाह मत करो।

  इस महामारी से निजात पाने के बाद सरकार को चाहिए कि वह न सिर्फ चिकित्सा से जुड़ी संरचनाओं का विस्तार करे,उनकी गुणवत्ता बढ़ाए।साथ ही, आपराधिक न्याय व्यवस्था को भी बेहतर बनाए।

  लाख मना करने पर भी इस देश में जहां -तहां रोज लाखों लोग सड़कों पर निकल कर कोरोना नियम तोड़ रहे हैं।

बीमारी का विस्तार करने में जाने-अनजाने सहायक बन रहे हैं।

यदि इस नियम भंजन के लिए उन्हें सजा 

बिना भेदभाव के मिल जाए,तो इस तरह की अगली किसी विपत्ति में लोगों को अनुशासित करने में शासन को सुविधा होगी।

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विपत्ति में राजनीतिक अवसर की तलाश

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  सुप्रीम कोर्ट भले यह कहे कि विरासत में मिली चिकित्सकीय संरचनाओं की कमी से सरकार जूझ रही है,लेकिन प्रतिपक्षी दल इस संकट में सरकार को बात -बात में बदनाम कर रहे है।

क्योंकि उन्हें इसमें अपने लिए बड़ा राजनीतिक अवसर दिखाई पड़ रहा है।

सन 2024 के लिए वैकल्पिक प्रधान

मंत्री पद के लिए उम्मीदवार भी ढूंढ़ा जा रहा है।

कौन सरकार और कौन प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री, पूर्ण है ? किसके पास जादू की छड़ी है ?

किसी के पास नहीं।

अच्छी से अच्छी सरकार भी गलतियां कर सकती है।

पर समझदार मतदाता यह देखते हैं कि हमारी सरकार ने विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे लिए भरसक बेहतर काम किया या नहीं।

  नोटबंदी, जी.एस.टी. और चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में

हुए चुनावों में भी राजग विरोधी दल अपने लिए बेहतर रिजल्ट की पूरी उम्मीद कर रहे थे।

पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

अगले चुनावों में यह देखा जाएगा कि कोरोना काल में सरकार व प्रतिपक्ष की भूमिकाएं मतदाताओं की नजरों में कैसी रही।    

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   गावों में चिकित्सकों की सुरक्षा जरूरी 

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एलोपैथिक चिकित्सकों को अब गांवों में रहकर वहां अपनी सेवाएं देनी होंगी।

बिहार सरकार यह निर्णय सराहनीय है।

शासन के इस संकल्प को देखकर लगता है कि यह युगांतरकारी कदम साबित होगा।

  गांवों में बिजली नहीं थी तो चिकित्सकों को गांवों में रहने में दिक्कत थी।

अब वह स्थिति नहीं रही।

सड़कें भी अब बेहतर हैं।

 निर्धारित से अधिक भारी वाहनों को उन पर से गुजरने से यदि कड़ाई से रोका जाए तो राज्य की सड़कें आगे भी अच्छी ही रहेंगी।

 लेकिन इसके साथ ही राज्य शासन को एक और बात पर खास तौर पर ध्यान देना होगा।

  वह यह देखे कि चिकित्सकों के सामने गांवों में उनकी  सुरक्षा की समस्या पैदा न हो।

 जब तक ग्रामीण अस्पतालों में भरपूर चिकित्सकीय साधन उपलब्ध न करा दिए जाएं, तब तक यदाकदा मरीजों के अभिभावकों का गुस्सा डाक्टरों पर फूटता रहेगा।

उस गुस्से से शासन डाक्टरों व उनके सहायकों की रक्षा करे।

साथ ही, राज्य सरकार स्थानीय पुलिस को यह खास निदेश दे कि जरूरत पड़ने पर चिकित्सकों की सुरक्षा में वे तत्परता दिखाएं।

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 राक्षस और देवता साथ-साथ कैसे !

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 आदिकाल में राक्षसों व देवताओं के अलग -अलग वास स्थान होते थे।

इससे लोग उन्हें पहचान लेते थे कि कौन क्या है।

पर आधुनिक युग में तो लगता है कि कुछ अस्पतालों में एक ही साथ दोनों के वास हैं।

  बारी- बारी से भागलपुर और पटना के अस्पतालों में एक महिला तीमारदार को हाल में अत्यंत कटु अनुभव हुए।

उसे एक पीड़ा के ऊपर दूसरी पीड़ा भी मिली।

उस शर्मनाक घटना से यह लगा कि यहां तो दोनों का एक ही जगह वास है।

 गंभीर रूप से कोरोना पीड़ित पति का इलाज करा रही महिला ने अपने साथ अस्पताल में हुए दुव्र्यवहार को लेकर केस दर्ज कराया है।

उन राक्षसों को तो सजा होनी ही चाहिए।

साथ ही ‘धरती के भगवान’ भी यह सुनिश्चिित करें कि उनके बीच से ऐसे राक्षसों को जल्द से जल्द निकाल बाहर किया जाए।

 कोरोना काल में अधिकतर चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान हथेली पर रखकर खुद को एक बार फिर धरती का भगवान साबित किया है।

कई डाक्टर व स्वास्थ्यकर्मी इलाज करते समय कोरोनाग्रस्त होकर दिवंगत हो गए। 

चिकित्सकों व चिकित्साकर्मियों की साख बनी रहे और बढे भी ,यही कामना है।

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और अंत में

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शिवसेना चाहती है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ गैरकांग्रेस प्रतिपक्ष की ओर से कोई मजबूत नेता सन 2024 से पहले उभरे।

 यह काम कांग्रेस की सहमति से हो।

शिवसेना सांसद संजय राऊत के अनुसार 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा को कई राज्य विधान सभा चुनावों में हार मिली थी।

फिर भी लोक सभा चुनाव भाजपा जीत गई।मोदी के नेतृत्व के बल पर।

अब सन 2024 के लोक सभा चुनाव में क्या होगा ?

राऊत के अनुसार होना तो यह चाहिए कि किसी गैर कांग्रेसी दल से मोदी का विकल्प सामने आए।

अब सवाल है कि कांग्रेस पार्टी सन 2024 के चुनाव में प्रधान मंत्री पद की उम्मीदवारी के दौड़ से खुद अलग कर लेगी ?

संजय राऊत जितनी आसानी से यह बात लिख व कह देते है,उतना आसान तो नहीं लगता है।

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--सुरेंद्र किशोर

कानोंकान

प्रभात खबर

पटना, 14 मई 21  


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