सोमवार, 10 मई 2021

   

      ममता से बेहतर लालू !

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      --सुरेंद्र किशोर--

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 मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने कल केंद्रीय चुनाव आयोग में बड़े सुधार की जरूरत बताई है।

  उन्होंने कहा है कि इस संस्था को यदि बचाना है तो बड़े सुधार जरूरी हंै।

  उनके अनुसार चुनाव आयोग निष्पक्ष होता तो भाजपा को पश्चिम बंगान विधान सभा में 30 से अधिक सीटें नहीं मिलतीं।

    अब सवाल है कि ममता जी कैसा सुधार चाहती हैं ?

क्या केंद्रीय स्तर पर भी वैसा ही चुनाव आयोग वह चाहती हंै जैसा राज्य स्तर पर होता है ?

2018 में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में तृणमूल के खिलाफ के करीब 20 हजार उम्मीदवारों को नामंाकन पत्र तक नहीं दाखिल करने दिया गया था।

तब नख-दंत विहीन राज्य चुनाव आयोग मूक दर्शक बना रहा था।

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2019 के लोक सभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा को 42 में से 18 सीटें मिली थीं।

  उस अनुपात में या थोडा़ ही कम विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को सीटें मिलनी चाहिए थीं।

पर उससे काफी कम मिलीं।

क्या 2019 के चुनाव में केंद्रीय चुनाव आयोग के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ने कोई आरोप लगाया था ?

मुझे नहीं मालूम।

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ममता जी के अनुसार जो चुनाव आयोग उन्हें 294 में से 264 सीटें जितवाने का रास्ता साफ कर देता , वही आयोग निष्पक्ष माना जाएगा !!

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  नब्बे के दशक के अदमनीय मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन ने आलमारी में धूल खा रही चुनाव नियमों वाली किताब को बाहर निकाला ।

  उन्होंने एक-एक कर उसके नियम लागू करने की कोशिश की। 

  उस पर देश के कई धांधली प्रिय नेताओं के साथ-साथ बिहार के मुख्य मंत्री लालू प्रसाद भी शेषन से नाराज हो गए। 

लालू प्रसाद को लगा कि अब वे शेषन के रहते चुनाव में धांधली नहीं करा पाएंगे।

  हालांकि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं था कि इतनी बड़ी संख्या में जनता अब उनके साथ है कि धांधली की उन्हें कोई जरूरत ही नहीं है।

   उस चुनाव में लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले जनता दल को बिहार विधान सभा की कुल 324 में से 167 सीटें मिली ।

मंडल आरक्षण विवाद के बाद पिछड़े लालू के साथ गोलबंद हो गए थे।

  अनुकूल रिजल्ट के बाद लालू प्रसाद ने स्वच्छ-निष्पक्ष  चुनाव के लिए टी.एन.शेषण को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद दिया था।

याद रहे कि शेषन के कारण कमजोर वर्ग के लोगों को भी वोट देने का अवसर मिला।उससे लालू खुश हुए।

किंतु ममता बनर्जी 294 में से 213 विधान सभा सीटें मिलने के बावजूद आयोग से खुश नहीं हैं।

यह उनकी खास तरह की प्रवृति का द्योतक है जो प्रवृति आने वाले दिनों में अनेक संकट पैदा कर सकती है।

कम से कम इस मामले में क्या आप लालू प्रसाद को ममता बनर्जी से अधिक लोकतांत्रिक नहींे मानेंगे ?

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9 मई 21


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