गैर -कोविड मौतों के आंकड़ों को कोविड
मौतों के आंकड़ों से अगल करके देखा जाए !
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अन्यथा, लोगों में हतोत्साह बढ़ेगा
हतोत्साह से बीमारी बढ़ेगी
हां,उससे कुछ नेताओं के वोट बढ़ने की स्थिति बन सकती है।
किंतु वोट बढ़ेंगे ही,इसकी कोई गारंटी नहीं ।
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--सुरेंद्र किशोर
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अभी मैं जहां रहता हूं,यानी पटना के पास के गांव में, वहां कुछ लोग संक्रमित हुए थे।
घर-वास से ही वे अब ठीक हो गए।
मेरे पुश्तैनी गांव से भी मैं संपर्क में हूं।
अब तक की जानकारी के अनुसार वहां कोई संक्रमित नहीं हुआ है।
कल का कोई क्या कह सकता है !
अन्य स्थानों की जो स्थिति है,वह मैं सिर्फ अखबारों में पढ़ता हूं और टी.वी.चैनलों पर देखता हूं।
मीडिया अपने -अपने रुझान-झुकाव के अनुसार सूचनाएं दे रही हैं।
नकारात्मक व सकारात्मक दोनों तरह की सूचनाएं हंै।
पर, है तो चिंताजनक ही।
जरूरत इस बात की है कि शासन अपनी ड्यूटी में और भी बेहतरी लाए और लोगबाग अपनी बेपरवाही से बाज आएं।
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आम दिनों में बुढापे या बीमारी से जो मौतें होती हैं,वे
क्या अब कोरोना को देखकर रुक गई हैं ?
बल्कि,अनुमान है कि वैसी मौतें बढ़ गई होंगी।
क्योंकि गैर कोविड मरीजों को अस्पतालों में या डाक्टर के यहां जगह शायद ही अब मिल पा रही है।
पर,कुछ विघ्न संतोषियों के लिए यह अच्छा अवसर है कि दोनों तरह की मौतों को एक साथ जोड़कर दिखाया जाए।
ऐसे में शासन से उम्मीद है कि वह हर तरह की मौतों का आंकड़ा सही -सही लोगों को बताए।
मतदातागण अगली बार स्वास्थ्य सेवा को भी चुनाव का मुद्दा बनाएं।
अभी कितने मतदाता शिक्षा और स्वास्थ्य आदि जरूरी मुद्दे को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं ?
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इस बार मीडिया ने एक अच्छा काम किया है।
पंजाब से लेकर बिहार तक के प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों के खोखलापन को जग जाहिर कर दिया है।
अब खबरखोजी मीडिया की एक जिम्मेदारी है ।
उन्होंने जिन स्वास्थ्य केंद्रों में जानवर व गोबर देखे हैं,वहां कागज पर डाक्टरों व चिकित्साकर्मियों की तैनाती तो लगातार नहीं दिखाई जाती रही है ?
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कई साल पहले की बात है।
बिहार के एक सत्ताधारी विधायक ने एक बात बताई थी।
उन्होंने कहा कि आज मेरे यहां एक सरकारी डाक्टर आए थे।
बोले कि मैं आपके चुनाव क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग कराना चाहता हूं।
किंतु मैं चाहता हूं कि मैं नियमित रूप से वहां नहीं बैठूं।
यदि आप इसकी अनुमति देंगे तो मैं वहां पोस्टिंग करा लूंगा।
विधायक ने जब ऐसी छूट देने से मना कर दिया तो वह चिकित्सक नाराज होकर चला गया।
वह साधिकार जो आया था !
क्योंकि दोनों एक ही जाति के थे।
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इसमें मैं सिर्फ उस चिकित्सक को दोष नहीं देता।
सरकार की ओर से भी कमियां हंै।
क्या प्राथ्मिक स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज करने लायक साधन उपलब्ध हैं ?
भवन की स्थिति फिलहाल कैसी है ?
कानून -व्यवस्था की हालत कैसी है ?
बिजली तो अब गांव-गांव है,किंतु तब नहीं थी।
यदि सरकारी चिकित्सा केंद्रों में रुई व डैटाॅल की भी व्यवस्था नहीं रहेगी तो कोई डाक्टर मरीजों के परिजनों से मार खाने के लिए वहां जाएगा ?!
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अब जबकि कोविद गांवों में भी पैर पसार रहा है ,तब तो देश भर की सरकारों को उत्तर कोविड काल में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की दशा सुधारनी ही पड़ेगी।
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17 मई 21
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