मंगलवार, 4 मई 2021

       

   जरूरी सेवा समझकर शासन मीडियाकर्मियों 

     के टीकाकरण पर प्राथमिकता से ध्यान दे

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--सुरेंद्र किशोर--

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सर्दी हो या गरमी, डाकिया जरूर आता है।

यह कहावत अब अखबार पर फिट हो गया है।

इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की तो अनेक लोगों को लत सी लग गई है,भले उनमें से कुछ पर बेकार की बक -बक होती रहे और ‘‘कुत्ता भुकाओ कार्यक्रम’’ चलता रहे।

हालंाकि सारे इलेक्ट्रानिक मीडिया वैसे गैर जिम्मेदार नहीं हैं।

 कुछ ऐसे भी हैं जिनके एंकर व अतिथियों को देख-सुनकर लगता है कि वे संस्कारी परिवारों से हैं और वे सड़कछाप  गुंडे तो कत्तई नहीं हैं।

खैर,उन्हें भी इस कोरोना काल में फिलहाल माफ कर दिया जाना चाहिए।

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पानी पड़े या ओला,अखबार जरूर आता है।

पर, उस अखबार को तैयार करने वाले कितनी 

मेहनत करते हैं,इसका अनुुमान कम ही लोगों को रहा होगा।  

उनमें से कुछ तो रात भर जागते हैं।

कुछ अन्य अपनी जान जोखिम में डालते है।

ऐसा सामान्य दिनों में भी होता ही है।

पर, इस कोरोना विपत्ति में तो सबकी जान जोखिम में है।

कुछ मीडियाकर्मी परदे के पीछे रहकर तो कुछ अन्य पूर्णतः दृष्टिगोचर होकर काम में लगे रहते हैं।

अपना बेस्ट देने की कोशिश करते रहते हैं।

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   कोरोना काल में मीडिया (प्रिंट,इलेक्ट्राॅनिक व आॅनलाइन मीडिया)के संवाददाता जान जोखिम में डाल कर शासन व समाज के लिए खबरें जुटा रहे हैं।

परेशान शासन का संदेश आम लोगों तक पहुंचाने का माध्यम बन रहे हैं।

  इस विपरीत समय में चिकित्सकों ,स्वास्थ्य

कर्मियों व सुरक्षाकर्मियों आदि की तो ऐतिहासिक भूमिका है।

  उनका कोई मुकाबला नहीं।

पर, मीडियाकर्मियों का भी महत्वपूर्ण योगदान हो रहा है।

 बस,उनमें से कुछ को थोड़ा और सकारात्मक होने की जरूरत है ताकि आम लोगों का हौसला न टूटे।

खैर, वे हों या नहीं हों,वे जानें।

पर, उनकी भी जान की रक्षा करना सरकार व समाज का कत्र्तव्य है।

 कई मीडियाकर्मी इन दिनों अपना काम करते -करते अपनी जान भी गंवा रहे हैं।

   जब 18 $ आयु वाले को भी टीके लगाने हैं तो अब मीडियाकर्मियों पर भी शासन ध्यान दे।

मीडिया को भी जरूरी सेवा माने।

  कुछ अखबार तो ‘वर्क फ्राॅम होम’ से काम चला रहे हैं।

  ऐसा करके वे अपने बहुमूल्य कर्मियों की जान जोखिम में पड़ने से बचा रहे हैं।

पर, सारे मीडिया समूह वैसे नहीं हैं।

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 28 अप्रैल 21


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