सोमवार, 31 मई 2021

 ‘‘वोट की राजनीति’’ के समक्ष कुछ नेताओं के 

दिल ओ दिमाग में देश कहीं नहीं आता !

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  --सुरेंद्र किशोर--

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बांग्ला देशी घुसपैठियों पर वोट के 

लिए हमारे नेताओं के बदलते रुख !

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पश्चिम बंगाल के कुछ खास इलाकों से 

बहुसंख्यक समुदाय के लोग क्यों भगाए जा रहे ?

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ममता बनर्जी ने 2005 में जिन घुसपैठियों को महा 

विपत्ति बताया था,वे आज उनके लिए महा संपत्ति

कैसे बन गए ?

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बाकी देश पश्चिम बंगाल को एक और कश्मीर बनते देखेगा ?

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सन 1992 में तब के सत्ताधारी कांग्रेस,माकपा और जनता दल ने देश के सीमावत्र्ती इलाकों के निवासियों के लिए परिचय पत्र बनाने की जरूरत बताई थी।

आज वे क्यों बदल गए हैें ?

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  बांग्ला देशी घुसपैठियों की समस्या से पीड़ित राज्यों का  सम्मेलन सितंबर, 1992 में दिल्ली में हुआ था।

 पी.वी.नरसिंह राव सरकार के गृह मंत्री एस. बी. चव्हाण की अध्यक्षता में असम, बंगाल, बिहार, त्रिपुरा, अरुणाचल और मिजोरम के  मुख्यमंत्री और मणिपुर, नगालैंड एवं दिल्ली के प्रतिनिधि उस सम्मेलन में शामिल हुए थे।

    याद रहे कि तब असम के मुख्य मंत्री हितेश्वर साइकिया (कांग्रेस),बंगाल के मुख्य मंत्री ज्योति बसु

(सी.पी.एम.) और बिहार के मुख्य मंत्री लालू प्रसाद(जनता दल) थे।

  सम्मेलन में सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया गया।

प्रस्ताव यह हुआ कि 

‘‘देश के सीमावर्ती जिलों के निवासियों को परिचय पत्र दिए जाएं।’’

सम्मेलन की राय थी कि

 ‘‘बांग्ला देश से बड़ी संख्या में अवैध प्रवेश के कारण देश के विभिन्न भागों में जनसांख्यिकीय परिवत्र्तन सहित अनेक गंभीर समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं।

  इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मिलकर एक समन्वित कार्य योजना बनाने पर भी सहमति बनी।’’

 किंतु हुआ कुछ नहीं।

 नतीजतन 1992 और 2021 के बीच समस्या और भी गंभीर हो गई है।

 इसके बावजूद इस अति गंभीर समस्या पर आज विभिन्न गैर राजग दलों की राय देशहित से कितनी अलग है ?

आखिर क्यों ?

क्योंकि इसे ही ‘आधुनिक राजनीति’ कहते हैं जिसमें देश कहीं नहीं आता है ।

  ताजा खबर यह है कि पश्चिम बंगाल के जो जिले बंाग्ला देशी घुसपैठियों के कारण मुस्लिम बहुल हो चुके हैं,वहां हिन्दुओं को पूजा पाठ करने के लिए मस्जिदों से इजाजत लेनी पड़ रही है।

  इस खबर की सच्चाई जानने के लिए कितने संवाददाता बंगाल के उन समस्याग्रस्त जिलों के गांवों का दौरा किया है ?

   उपर्युक्त बात हाल में लोक सभा में भी कही गई।

यह भी कहा गया कि कोई मीडिया संगठन इस समस्या की रिपोर्ट नहीं कर रहा हैं।

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  सन 2005 की ममता बनर्जी

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यह बात तब की है जब पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठियों के अधिकतर वोट वाम मोरचा को मिलते थे

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4 अगस्त, 2005 को ममता बनर्जी ने लोक सभा के स्पीकर के टेबल पर कागज का पुलिंदा फेंका।

उसमें अवैध बांग्ला देशी घुसपैठियों को मतदाता बनाए जाने के सबूत थे।

उनके नाम गैरकानूनी तरीके से मतदाता सूची में शामिल करा दिए गए थे।

ममता ने तब लोक सभा में कहा था कि घुसपैठ की समस्या राज्य में महा विपत्ति बन चुकी है।

इन घुसपैठियों के वोट का लाभ वाम मोर्चा उठा रहा है।

उन्होंने उस पर सदन में चर्चा की मांग की।

चर्चा की अनुमति न मिलने पर ममता ने सदन की सदस्यता

 से इस्तीफा भी दे दिया था।

 चूंकि एक प्रारूप में विधिवत तरीके से इस्तीफा तैयार नहीं था,

इसलिए उसे मंजूर नहीं किया गया।

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  ममता के मुख्य मंत्री बनने के बाद

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जब घुसपैठियों के वोट ममता 

बनर्जी को मिलने लगे

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3 मार्च 2020

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 ममता बनर्जी ने कहा कि 

जो भी बांग्ला देश से यहां आए हैं,बंगाल में रह रहे हैं ,

चुनाव में वोट देते रहे हैं, वे सभी भारतीय नागरिक हैं।

इससे पहले सीएए,एनपीआर और एन आर सी के विरोध में 

  ममता ने कहा था कि इसे लागू करने पर गृह युद्ध हो जाएगा । 

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अधिक समय नहीं हुए जब पश्चिम बंगाल से भाजपा सांसद ने संसद में कहा कि पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में हिंदुओं को त्योहार मनाने के 

लिए अब स्थानीय इमाम से अनुमति लेनी पड़ती है।

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कई साल पहले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक खबर छपी थी।

उसमें एक गांव की कहानी थी।

वह गांव बांग्ला देशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण

 मुस्लिम बहुल बन चुका था।

वहां हिंदू लड़कियां पहले हाॅफ पैंट पहन कर 

हाॅकी खेला करती  थी।

पर, अब मुसलमानों ने उनसे कहा कि फुल पैंट 

पहन कर ही खेल सकती हो।

खेल रुक गया है।

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यह बात तब की है जब बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्य मंत्री थे।

उनका एक बयान ‘जनसत्ता’ में छपा।

उन्होंने कहा था कि घुसपैठियों के कारण सात जिलों में 

सामान्य प्रशासन चलाना मुश्किल हो गया है।

बाद में उन्होंने उस बयान का खुद ही खंडन कर दिया।

पता चला कि पार्टी हाईकमान

के दबाव में उन्होंने कह दिया कि मैंने वैसा कुछ कहा ही नहीं था।

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कई दशक पहले मांगने पर वाम मोरचा सरकार ने केंद्र

 सरकार को सूचित किया था कि 40 लाख अवैध बंाग्ला देशी पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं।

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अनुमान लगाइए कि अब 2021 में वह संख्या

 कितनी बढ़ चुकी होगी !!!! 

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सन 2021 के पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के बाद उस प्रदेश के कुछ जिलों की स्थिति क्या है ?

क्या यह बात सही है कि वहां से करीब हजारों लोगों ने भागकर असम की शरण ली है।

क्या कश्मीर में पंडितों के पलायन वाली कहानी अब पश्चिम बंगाल में दुहराई जा रही है ? 

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क्या यह बात सही है कि पश्चिम बंगाल को बचाने के लिए केंद्र सरकार के पास एक ही उपाय है कि उस राज्य को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए ?

इस आशय की खबर हाल में आई है।

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30 मई 21.


  





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