कोविड काल ने दिए कुछ अतिरिक्त दर्द
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बुद्ध ने कहा था,
1.-संसार में दुःख है।
2..-दुःख के कारण हैं।
3.-दुःख के निवारण हैं।
4.-निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग है।
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खैर , बुद्ध तो संन्यासी हो गए थे।
पर, जो गृहस्थ जीवन में हैं , वे अपने गम कैसे कम करें ?
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उनके लिए सन 1960 में निर्मित ‘अमृत’ फिल्म का गाना है।
उसे गुनगुना कर वे अपने कष्ट थोड़ा कम करें।
गाना है--
‘‘दुनिया में कितना गम है,
मेरा गम कितना कम है !
ये दुनिया एक मौसम है
मेरा गम कितना कम है !’’
--आदि आदि
इसे सुनने के लिए यू ट्यूब का सहारा लें।
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यह कहा जाता रहा है,
--सब अकेले आते हैं और अकेले ही जाते हैं।
फिर भी इसमें भी यह मानकर चला जाता था कि अस्पताल व श्मशान घाट तक तो साथ में लोग जाते ही जाते रहे हैं।
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कोविड काल में थोड़ा-बहुत यह भी बदल गया।
हालांकि हर मामले में नहीं।
अब भी अनेक परिजन व डाक्टर आदि जान पर खेल कर कोविड मरीजों का साथ दे ही रहे हैं।
पर, कुछ मामलों में परिजन न तो अस्पताल साथ जा रहे हैं और न ही श्मशान।
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--सुरेंद्र किशोर
27 मई 21
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