सीट खाली करवा कर उप चुनाव के जरिए
ममता बनर्जी बन जाएंगी विधान सभा की सदस्य
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--सुरेंद्र किशोर--
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कुछ लोग फेसबुक पर लिख रहे हैं कि चूंकि पश्चिम बंगाल में विधान परिषद है नहीं, इसलिए ममता बनर्जी की गद्दी 6 माह के बाद चली जाएगी।
अरे भई, सामान्य ज्ञान से काम लीजिए।
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सामान्य ज्ञान की कमी के कारण ही सुवेंदु अधिकारी ने यह भी कह दिया कि
‘‘ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब चुनाव हारने के बाद भी कोई सी.एम.बना हो’’।
अधिकारी जी को नहीं मालूम कि 1952 में आम चुनाव हार जाने के बावजूद मोररजी देसाई बुंबई के मुख्य मंत्री बने थे।
राजनीति में पढ़ने-लिखने की परंपरा के निरंतर लोप होते जाने के कारण ऐसी टिप्पणियां आती-रहती हैं।
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ममता जी कोई अनुकूल सीट देख कर अपने दल के किसी विधान सभा सदस्य से आसानी से इस्तीफा दिलवा दंेगी।
उस इस्तीफे के कारण जो सीट खाली होगी,उससे उप चुनाव लड़कर छह महीने के भीतर विधान सभा सदस्य बन जाएंगी।
1977 में कर्पूरी ठाकुर ने यही काम किया था।
जिन देवेंद्र प्रसाद यादव ने उनके लिए फुलपरास से इस्तीफा दिया,उन्हें एम.एल.सी.बनवा दिया गया।
पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को 1969 में समाप्त कर दिया गया।
तब बांग्ला कांगेस के अजय मुखर्जी मुख्य मंत्री थे।
वाम दलों के समर्थन व सहयोग से उनकी सरकार चल रही थी।
वाम दलों के दबाव में परिषद को खत्म किया गया था।
सरकारी खर्च घटाना उद्देश्य था।
वाम दलों में तब तक आदर्शवादिता अधिक थी।
देखा-देखी 1970 में सी.पी.आई. के एक विधायक पूर्वे जी ने बिहार विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव विधान सभा से पास करवा दिया।
पर केंद्र यानी संसद से उस पर सहमति नहीं मिल सकी।
1972 में सी.पी.आई. के उक्त विधायक हार गए।
तब उन्हें बिहार विधान परिषद में ही शरण मिली थी।
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अभी देश में जिन राज्यों में विधान परिषद मौजूद है,उनके नाम हैं--आंध्र प्रदेश, तेलांगना, कर्नाटका, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश।
यह खबर आई थी कि बंगाल में सत्ता संभालने के कुछ समय बाद ममता बनर्जी ने वहां भी विधान परिषद की पुनस्र्थापना की पहल की थी।
पर, यह नहीं पता चल सका कि ममता सफल क्यों नहीं हुई।
अनुमान यही है कि ‘‘वोट बैंक’’ को खुश रखने के लिए केंद्र सरकार से निरंतर झगड़ते रहिएगा तो आपका ऐसा बड़ा काम कैसे होगा ? ़
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8 मई 21
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