जो इतिहास से नहीं सीखता,वह उसे दुहराने
को अभिशप्त होता है।
और, जो इतिहास पढ़े ही नहीं ?!!
हमारे नेता कितना पढ़ते हैं इतिहास ?
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--सुरेंद्र किशोर--
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मुख्य मंत्री ममता बनर्जी को गत चुनाव में पराजित कर चुके भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी का आज के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लेख छपा है।
उनके लेख से पश्चिम बंगाल की राजनीति की ताजा व स्पष्ट तस्वीर सामने आती है।
उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के काॅडर को कृतघ्न करार दिया है।
पश्चिम बंगाल विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता श्री अधिकारी लिखते हैं कि
‘‘जिन कांग्रेस और सी.पी.एम. ने भाजपा को हराने के लिए खुद को शून्य बना लेने की कीमत पर भी तृणमूल कांग्रेस की मदद की, उन दलों के बचे-खुचे दफ्तरों पर भी तृणमूल कार्यकत्र्ताओं ने हमले किए।’’
दरअसल सुवेंदु अधिकारी का समकालीन इतिहास का ज्ञान तो अधूरा है ही,मध्यकालीन इतिहास का भी पूरा ज्ञान नहीं है।
जो इतिहास से नहीं सीखता, वह उसे दुहराने को अभिशप्त होता है।
मध्यकालीन इतिहास क्या कहता है ?
मुहम्मद गोरी ने जयचंद की तटस्थता का लाभ उठाकर तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चैहान को हरा दिया।
तराइन के प्रथम युद्ध में चैहान ने गोरी से हराया था।
पर गोरी ने उस कृतज्ञता का एहसान मानने की जगह बाद में जयचंद पर भी हमला कर दिया।
बचने के लिए जयचंद भागा।
भागने के क्रम में नदी में डूब कर मर गया।
(किसी इतिहासवेता को इस विवरण में कुछ संशोधन करना हो तो उनका स्वागत है)
जिस तरह गोरी एक खास उद्देश्य के लिए लड़ रहा था,उसी तरह हमलावर तृणमूल कार्यकत्र्तागण भी एक बड़े उद्देश्य के लिए बंगाल में ‘युद्धरत’ हैं।
जिन्हें उस उद्देश्य को समझना
हो, वे समय रहते समझ लें, अन्यथा भुगतने को तैयार हो जाएं।
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याद रहे कि सुवेंदु अधिकरी ने हाल में यह कहा था कि ममता बनर्जी पहली नेता हैं जो हार कर भी मुख्य मंत्री बन रही हैं।
जबकि, सच यह है कि इस तरह के पहले नेता मोरारजी देसाई थे जो 1952 के आम चुनाव में अपनी सीट हार गए थे।
फिर भी कांग्रेस ने उन्हें बंबई राज्य का मुख्य मंत्री बना दिया था।
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11 मई 21
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