मुजफ्फर पुर बालिका गृह यौन हिंसा कांड के बारे में वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलाड़ी ने लिखा है कि सत्ताधारी पार्टी के एक नेता ने मुख्य आरोपी को छोड़ने के लिए बिहार पुलिस पर दबाव बनाया ।
यह कोई नयी बात नहीं है।ऐसी ही दबावों, प्रलोभनों और पैरवियों के कारण बिहार में 10 प्रतिशत फौजदारी मुकदमों में ही अदालतें सजा दे पाती हैं।
जबकि, इसी देश में केरल का प्रतिशत 77 है।
सी.बी.आई.और बिहार पुलिस ने समय -समय पर किस तरह मामलों को खाया-पकाया-चबाया,उसके सिर्फ तीन उदाहरण यहां पेश हैं।ये तो नमूने मात्र हैं।
कई दशक पहले की बात है।बिहार के एक मंत्री ने अपने पुत्र की हत्या करवा दी थी।
मंत्री का अपनी पतोहू से गलत संबंध था।
हत्यारा पकड़ा भी गया।
पर उस मंत्री ने एस.पी.को पत्र लिख कर हत्यारों के छुड़वा दिया।किसी को कुछ नहीं हुआ।किसी मीडियाकर्मी ने भी इस बात की पड़ताल नहीं की कि जब मृतक का बाप मंत्री हो,फिर भी हत्यारे क्यों नहीं पकड़े जा सके । दरअसल मीडिया उन दिनों आज की तरह सजग नहीं था।
एस.पी. के हत्यारों को छोड़ने के लिए मंत्री की चिट्ठी लेकर जो व्यक्ति एस.पी. के पास गया था,उसने ही मुझे बाद में यह बात बतायी थी।
बाॅबी हत्या कांड में अनेक सत्ताधारी विधायकों ने तत्कालीन मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र पर सरकार गिराने का दबाव बना कर मामले को सी.बी.आई.को सौंपवा दिया था।क्योंकि तत्कालीन एस.एस.पी. किशोर कुणाल किसी के दबाव में नहीं आ रहे थे।
उधर बाद में उच्चत्तम स्तर से पड़े दबाव के कारण सी.बी.आई.बाॅबी हत्या कांड मुकदमे को ‘चबा’ गयी।
बाॅबी केस में तो सी.बी.आई.जांच के लिए राज्य सरकार ने लिखित अनुरोध भी किया था।
पर ललित नारायण मिश्र हत्या कांड मंे तो उच्चत्तम स्तर सेे मिले निदेश के कारण सी.बी.आई.निदेशक पहले ही समस्ती पुर पहुंच कर जांच का जिम्मे खुद ही संभाल लिया।लिखित अनुरोध की औपचारिकता बाद में पूरी हुई।
याद रहे कि दो आरोपियों ने पहले ही यह बयान दे दिया था कि उन लोगों ने दिल्ली के एक बड़े सत्ताधारी नेता के कहने पर ललित बाबू की हत्या की थी।
वह नेता हत्याकांड से पहले समस्ती पुर आया भी था।
अदालत में डा.जगन्नाथ मिश्र और विजय कुमार मिश्र कहते रह गए कि आनंद मार्गियों की ललित बाबू से कोई दुश्मनी नहीं थी।फिर भी पकड़े गए असली हत्यारों को छोड़ कर आनंद मार्गियों को निचली अदालत से सजा दिलवा दी गयी।
यह हाल है हमारे देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का।ऐसे में मुजफ्फर पुर की उन अभागिनों को न्याय मिल पाएगा या नहीं, यह एक बहुत बड़ा सवाल है ।
यह कोई नयी बात नहीं है।ऐसी ही दबावों, प्रलोभनों और पैरवियों के कारण बिहार में 10 प्रतिशत फौजदारी मुकदमों में ही अदालतें सजा दे पाती हैं।
जबकि, इसी देश में केरल का प्रतिशत 77 है।
सी.बी.आई.और बिहार पुलिस ने समय -समय पर किस तरह मामलों को खाया-पकाया-चबाया,उसके सिर्फ तीन उदाहरण यहां पेश हैं।ये तो नमूने मात्र हैं।
कई दशक पहले की बात है।बिहार के एक मंत्री ने अपने पुत्र की हत्या करवा दी थी।
मंत्री का अपनी पतोहू से गलत संबंध था।
हत्यारा पकड़ा भी गया।
पर उस मंत्री ने एस.पी.को पत्र लिख कर हत्यारों के छुड़वा दिया।किसी को कुछ नहीं हुआ।किसी मीडियाकर्मी ने भी इस बात की पड़ताल नहीं की कि जब मृतक का बाप मंत्री हो,फिर भी हत्यारे क्यों नहीं पकड़े जा सके । दरअसल मीडिया उन दिनों आज की तरह सजग नहीं था।
एस.पी. के हत्यारों को छोड़ने के लिए मंत्री की चिट्ठी लेकर जो व्यक्ति एस.पी. के पास गया था,उसने ही मुझे बाद में यह बात बतायी थी।
बाॅबी हत्या कांड में अनेक सत्ताधारी विधायकों ने तत्कालीन मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र पर सरकार गिराने का दबाव बना कर मामले को सी.बी.आई.को सौंपवा दिया था।क्योंकि तत्कालीन एस.एस.पी. किशोर कुणाल किसी के दबाव में नहीं आ रहे थे।
उधर बाद में उच्चत्तम स्तर से पड़े दबाव के कारण सी.बी.आई.बाॅबी हत्या कांड मुकदमे को ‘चबा’ गयी।
बाॅबी केस में तो सी.बी.आई.जांच के लिए राज्य सरकार ने लिखित अनुरोध भी किया था।
पर ललित नारायण मिश्र हत्या कांड मंे तो उच्चत्तम स्तर सेे मिले निदेश के कारण सी.बी.आई.निदेशक पहले ही समस्ती पुर पहुंच कर जांच का जिम्मे खुद ही संभाल लिया।लिखित अनुरोध की औपचारिकता बाद में पूरी हुई।
याद रहे कि दो आरोपियों ने पहले ही यह बयान दे दिया था कि उन लोगों ने दिल्ली के एक बड़े सत्ताधारी नेता के कहने पर ललित बाबू की हत्या की थी।
वह नेता हत्याकांड से पहले समस्ती पुर आया भी था।
अदालत में डा.जगन्नाथ मिश्र और विजय कुमार मिश्र कहते रह गए कि आनंद मार्गियों की ललित बाबू से कोई दुश्मनी नहीं थी।फिर भी पकड़े गए असली हत्यारों को छोड़ कर आनंद मार्गियों को निचली अदालत से सजा दिलवा दी गयी।
यह हाल है हमारे देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का।ऐसे में मुजफ्फर पुर की उन अभागिनों को न्याय मिल पाएगा या नहीं, यह एक बहुत बड़ा सवाल है ।
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