ईडी ने बिहार-झारखंड की तीन बड़ी कंपनियों
पर शिकंजा कस दिया है।
उन कंपनियों पर आरोप है उन्होंने नक्सलियों को लेवी के रूप में भारी रकम दी है।उस रकम से नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियार खरीदे हैं।
ईडी ने वही किया है जो उसे करना चाहिए था।
पर,उसके साथ ही सामान्य शासन-प्रशासन-पुलिस को भी जो कुछ करना चाहिए था।वह काम नहीं हो पा रहा है।
कई साल पहले रांची में एक बड़ी कंपनी के बड़े अफसर से बात हो रही थी।
उस अफसर ने बताया कि हम माओवादियों की छत्रछाया में चैन से अपना काम कर रहे हैं।
पहले हमें हर महीने पैसों से भरे 27 पैकेट बनाने पड़ते थे।
अब एक ही मोटा पैकेट माओवादियों को देते हैं और आराम से अपना उद्योग -धंधा चला रहे हैं।कुल मिलाकर पहले से कम ही पैसे लगते हैं।साथ ही अपमानजनक शब्द भी अब नहीं सुनने पड़ते हैं।धौंसपट्टी भी नहीं।
27 पैकेट पाने वालों में पुलिस, सरकार के इंस्पेक्टर,लोकल बाहुबली और विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग प्रमुख होते थे।
जब उन्हें पता चल गया कि हम माओवादियों के प्रोटेक्सन में हैं,तब से इन 27 ‘जीव-जंतुओ’ं में से कोई भी वसूली के लिए हमारे यहां फटकने की हिम्मत नहीं करता।
इस पृष्ठभूमि में केंद्र और राज्य के शासन को चाहिए कि वे न सिर्फ उन 27 ‘जंतुओं’ से उद्योग-धंधोें को बचाए,बल्कि नक्सलियों से भी उन्हें पक्की सुरक्षा दे।
क्या शासन के लिए कभी यह संभव हो पाएगा ?
लगता तो नहीं है।फिर क्या होगा ?
ईडी अपना काम करता रहेगा और उद्योगपति भी।या फिर उद्योगपति अपने काम -धंधे छोड़कर पलायन कर जाएंगे।
पर शिकंजा कस दिया है।
उन कंपनियों पर आरोप है उन्होंने नक्सलियों को लेवी के रूप में भारी रकम दी है।उस रकम से नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियार खरीदे हैं।
ईडी ने वही किया है जो उसे करना चाहिए था।
पर,उसके साथ ही सामान्य शासन-प्रशासन-पुलिस को भी जो कुछ करना चाहिए था।वह काम नहीं हो पा रहा है।
कई साल पहले रांची में एक बड़ी कंपनी के बड़े अफसर से बात हो रही थी।
उस अफसर ने बताया कि हम माओवादियों की छत्रछाया में चैन से अपना काम कर रहे हैं।
पहले हमें हर महीने पैसों से भरे 27 पैकेट बनाने पड़ते थे।
अब एक ही मोटा पैकेट माओवादियों को देते हैं और आराम से अपना उद्योग -धंधा चला रहे हैं।कुल मिलाकर पहले से कम ही पैसे लगते हैं।साथ ही अपमानजनक शब्द भी अब नहीं सुनने पड़ते हैं।धौंसपट्टी भी नहीं।
27 पैकेट पाने वालों में पुलिस, सरकार के इंस्पेक्टर,लोकल बाहुबली और विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग प्रमुख होते थे।
जब उन्हें पता चल गया कि हम माओवादियों के प्रोटेक्सन में हैं,तब से इन 27 ‘जीव-जंतुओ’ं में से कोई भी वसूली के लिए हमारे यहां फटकने की हिम्मत नहीं करता।
इस पृष्ठभूमि में केंद्र और राज्य के शासन को चाहिए कि वे न सिर्फ उन 27 ‘जंतुओं’ से उद्योग-धंधोें को बचाए,बल्कि नक्सलियों से भी उन्हें पक्की सुरक्षा दे।
क्या शासन के लिए कभी यह संभव हो पाएगा ?
लगता तो नहीं है।फिर क्या होगा ?
ईडी अपना काम करता रहेगा और उद्योगपति भी।या फिर उद्योगपति अपने काम -धंधे छोड़कर पलायन कर जाएंगे।
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