सोमवार, 2 जुलाई 2018

कल ‘डाक्टर दिवस’ के अवसर पर मुझे 
पटना के ही दो डाक्टर अनायास याद आ गए।
दोनों में से किसी से मिला नहीं हूं।
पर दोनों के बारे में सुन रखा है।
एक जन सेवी तो दूसरे पैसे के पीछे पागल।
   डा.अरूण तिवारी ने जब प्रैक्टिस शुरू की थी,तब उनकी फीस मात्र दो  रुपए थी।अब बढ़कर 50 रुपए हो गयी है।
 उनक पुत्र आंशुमान तिवारी के अनुसार 
बिजली बिल व स्टाफ के वेतन के खर्च में बढ़ोत्तरी के कारण फीस बढ़ानी पड़ी। 
उनके मार्ग दर्शक और पटना के बड़े चिकित्सक रहे दिवंगत डा.शिव नारायण सिंह से प्रेरित होकर डा.तिवारी ऐसा करते हैं।यहां तक कि वे गरीब व असहाय लोगों से कोई फीस भी नहीं लेते। बल्कि दवा का भी प्रबंध कर देते हैं।
 पटना के गुलबी घाट के पास प्रैक्टिस कर रहे डा.तिवारी इतने योग्य चिकित्सक हैं कि दूर- दूर के मरीजों की  यह इच्छा रहती है कि वे एक बार अरूण तिवारी से दिखा लेते।
  धरती के एक ऐसे भगवान डा.तिवारी के बीच एक अर्थकामी डाक्टर की भी चर्चा कर ली जाए।
मेरे ड्रायवर को न्यूरो समस्या थी।उसने पटना के एक नामी चिकित्सक से संपर्क किया।उस डाक्टर साहब ने एक साथ दस दवाएं लिख दीं।
मैंने गुगल में देखा --डुप्लीकेशन लगा ।
ड्रायवर की स्थिति बिगड़ती गयी।फिर उसने डा.गोपाल प्रसाद सिंहा से दिखाया।उन्होंने आधी दवाएं लिखीं और वह ठीक हो गया।
 1972 में मैं डा.शिव नारायण सिंह के यहां गया था।उन दिनों में राजेंद्र नगर में रहते थे।गैस समस्या थी।मैंने उनसे आग्रह किया कि आप मेरे खून-पखाना-पेशाब का पैथोलाॅजिकल टेस्ट लिख दीजिए।
उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे पास बहुत पैसे हैं ? मैंने कहा कि नहीं।फिर क्यों पैसे बर्बाद करना चाहते हो  ? उसकी कोई जरूरत नहीं।मैंने जिद की तो लिख दिया।जांच रपट लेकर गया तो उन्होंने कहा कि कहा था न कि इसकी कोई जरूरत नहीं है।तुम्हारा सब कुछ ठीक है।फिर भी उन्होंने आई.डी.पी.एल.में बनी अत्यंत सस्ती दवा लिख दी।शायद कुछ पैसे की आती थी।
कुछ पैसों में ही मेरी समस्या दूर हो गयी।




कोई टिप्पणी नहीं: