शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

--स्वागत कीजिए एक बार फिर प्रकृति की ओर लौटते लोगों का--



ब्रिटिश शासनकाल मंे यहां नील की खेती होती थी।
पर सिंथेटिक नील के आ जाने के बाद वह खेती बंद हो गयी।
 बाद के वर्षों में जब सिंथेटिक नील से  खतरे का पता चला तो एक बार फिर भारत सहित दुनिया में नील की खेती फिर होने लगी है।
यानी एक बार फिर प्रकृति की ओर हम जा रहे हैं।
इसका स्वागत होना चाहिए।
 विभिन्न स्थानों से मिल रही सूचनाओं के अनुसार भारत में तो नील की खेती करके किसान अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं।
 कृत्रिमता से प्रकृति की ओर लौटने की प्रक्रिया कुछ अन्य क्षेत्रों में भी देखी जा रही है।
  आजादी के बाद की अदूरदर्शी सरकारों ने गांधीवाद को तिलांजलि देकर जब रासायनिक खाद का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल शुरू किया तो उस समय अधिकतर किसान भी खुश ही थे।
क्योंकि इस विधि से अनाज की उपज बहुत बढ़ गयी ।
पर धीरे -धीरे जब इसके कुपरिणाम सामने आने लगे तो हम फिर जैविक खाद की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
  बढ़ते वायु प्रदूषण की पृष्ठभूमि में हम इलेक्ट्रिक कार की ओर भी बढ़ने को मजबूर हो रहे हैं।बिहार के एक बड़े नेता ने तो अपने आवासीय परिसर में मिट्टी का एक छोटा घर बनवाया है।
पर्यावरण विज्ञान की उपेक्षित पढ़ाई पर अब जोर दिया जाने लगा है।
 इस संदर्भ में कुछ अन्य क्षेत्रों में भी काम हो रहे है।अब ‘ग्रीन जाॅब्स’ की एक नयी कल्पना भी सामने आई है।  
कैसे हो वर्षा जल का उपयोग-- 
इस देश की करीब 60 प्रतिशत खेती वर्षा पर निर्भर है।
उधर इंद्र देवता हंै कि रह -रह की रुठ जाते हैं।इस साल भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक रुठे हुए ही हैं।
फिर क्या उपाय है ?
मनुष्य अपना पुरुषार्थ दिखाए।
जल पुरूष राजेंद्र सिंह के नेतृत्व मंे राजस्थान के बड़े इलाके में ऐसा पुरुषार्थ लोगों ने दिखाया भी है।कुछ अन्य स्थानों में भी ऐसे काम हुए हैं।पर हर जगह जल पुरूष तो  हैं नहीं ।
  इसलिए सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
  छोटी- छोटी नदियों में चेक बांध  और स्लुइस गेट बनाकर नदियों में वर्षा के जल को रोका जा सकता है।
 अधिकतर तालाबों को तो अतिक्रमित कर लिया गया है।
अदालत उन अतिक्रमणों को हटाने का काम सरकार से करवा
सकती है। चुनाव लड़ने वाली किसी पार्टी की सरकार के वश में यह काम नहीं है कि वह खुद पहल करके तालाबों पर से अतिक्रमण हटाए।पर वही सरकार अदालत का भय दिखा कर कुछ कमाल कर सकती है।
इस बीच छोटी नदियों पर सरकार पूरा ध्यान दे।उन पर तो अभी कब्जा नहीं है।
  हर साल 65 प्रतिशत वर्षा जल यूं ही समुद्र में चला जाता है।
छोटी -छोटी नदियों को स्टोरेज बना कर उसमें से कुछ पानी को रोका जा सकता है ताकि वह सालों भर काम आए।
    बसपा का फैलाव संभव--
और कुछ हो या नहीं,पर अगले चुनावों मेंं बसपा के विस्तार की संभावना प्रबल है।
 इस साल कुछ राज्य विधान सभाओं व अगले साल लोक सभा का चुनाव होने वाला है।बसपा चाहती है कि कांग्रेस के साथ उसका इन सभी चुनावों के लेकर एक साथ समझौता हो।
 यानी कांग्रेस बसपा के साथ राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीस गढ़ के लिए भी चुनावी समझौता करे।
फिर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-कांगे्रस का चुनावी तालमेल हो।
  यदि कांग्रेस को  उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनाव में सीटें पानी हैं तो 
उसे बसपा की बात माननी पड़ेगी।वैसे भी कांसी राम से लेकर मायावती तक कड़ी राजनीतिक सौदेबाजी के लिए जाने जाते रहे हंै।
 उधर कांग्रेस की सबसे अधिक दिक्कत राजस्थान में है।
वहां भाजपा सुरक्षित नहीं है।कांग्रेस  आशान्वित है।
हर चुनाव में वहां सरकार बदल जाती है।यदि चमत्कार नहीं हुआ तो उस हिसाब से इस बार सत्ता से जाने की बारी भाजपा की है।
ऐसे में राजस्थान कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेता किसी अन्य दल को साझेदार   
बनाना नहीं चाहते ।
  उधर मध्य प्रदेश व छत्तीस गढ़ में चुनाव के बाद यदि कांग्रेस को कर्नाटका दुहराना पड़ेगा तो कैसा रहेगा ?
हालांकि अभी कोई वैसी भविष्यवाणी नहीं कर रहा है। 
  ब्रिटिश  फ्लैट के लिए कष्टमय जेल यात्रा--
 पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री नवाज शरीफ अपनी पुत्री के साथ जेल में हैं।
उन पर लंदन में अवैध संपत्ति खड़ी करने का आरोप साबित हो चुका है।यानी चार आलीशान फ्लैट के बदले कष्टप्रद जेल यात्रा !
क्या हो गया है दक्षिण एशियाई नेताओं को ?
 भारत में तो ऐसे जेल यात्री नेताओं  की लाइन ही लगी रहती  है।
 जबकि, न तो पाकिस्तान में किसी  कफन में पाॅकेट का प्रावधान है और न ही हिन्दुस्तान में ऐसी कोई सुविधा है। 
  फार्मलिन लेपित मछली से सावधानी --
गोवा सरकार ने अन्य राज्यों से मछली के आयात पर 15 दिनों के लिए प्रतिबंध लगा दिया है।इससे पहले 11 जुलाई को यह खबर आई थी कि असम सरकार ने 10 दिनों के लिए प्रतिबंध लगाया ।
राज्य सरकार ने फार्मलिन लेपित मछली से लोगों को बचाने के लिए ऐसा किया है।  कुछ ही दिन पहले तमिलनाडु से यह खबर आई थी कि वहां फार्मलिन से संरक्षित मछली बिक रही है।
याद रहे कि लाश को सड़ने से बचाने के लिए जहरीला रसायन फार्मलिन उस पर लगाया जाता है।
पर फार्मलिन से संरक्षित मछली खाने से कैंसर हो सकता है।
 उस खबर के बाद तमिलनाडु सरकार के संबंधित अफसरों ने मछली बाजारों का निरीक्षण किया।कुछ अन्य राज्यों में भी सतर्कता बरती गयी।बिहार में भी आंध्र प्रदेश से मछली आती है।क्या यहां आ रही मछली में फार्मलिन पाया जाता है ?इसकी जांच हुई है ?
 एक भूली बिसरी याद--
स्वतंत्रता सेनानी और ‘शब्दों के जादूगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी इस बात पर बहुत खुश थे जब उनके कहने पर उनके पुत्र जितेंद्र कुमार बेनीपुरी ने सेना ज्वाइन की।
  इस बारे में जितेंद्र बेनीपुरी ने लिखा है कि ‘बाबू जी की इच्छा थी कि मैं 
फौज ज्वाइन करूं।सन 1948 में बाबू जी ने मुझसे कहा कि जिस देश की आजादी के लिए मैंने संघर्ष किया,उसकी सेवा में मेरा एक बेटा लगा रहे तो मुझे खुशी होगी।
मैंने तुरंत हामी भर  दी।मेरा चयन प्रिंस आॅफ वेल्स मिलिटरी काॅलेज ,देहरादून में हो गया।
पहले इस काॅलेज में राजे -महाराजों के बेटे ही पढ़ते थे।’
बेनी पुरी जी ने अपने पुत्र के बारे में लिखा था,‘जितिन के सैनिक वेश में अपनापन पाता हूं।मालूम होता है कि मुझमें जो सैनिक भावना है,वही साकार होकर जितिन का वेश धारण कर गयी है।वही कठोरता,वही दृढ़ता,
वही अकड़,वही जिद्द।एक बार ना कर दिया तो हां कहला नहीं सकते।
सैनिक शिक्षा के तीन वर्षों ने उसके रहन- सहन,बात- व्यवहार में भी सैनिकता ला दी।चलने में हमेशा सही कदम उठते हैं।बिना प्रयोजन कोई बात नहीं करेगा।’
  पता नहीं,नयी पीढ़ी उन्हें  कितना जानती है,पर सच तो यह है कि स्वतंत्रता सेनानी रामवृक्ष बेनीपुरी जी कोई मामूली नेता नहीं थे।जेपी के करीबी सहयोगी तो थे ही।वे बिहार विधान सभा के सदस्य भी थे।बड़े- बड़े लोग उनकी इज्जत करते थे।वे अपने पुत्र को कोई भी आरामदायक नौकरी दिलवा सकते थे।पर उन्हें सैनिक बनाया।
  दुनिया के अनेक देशों में अनिवार्य सैनिक सेवा का प्रावधान है।इस देश में  कोई जरा इसकी मांग करके तो देखे ! तुरंत टेलिविजन पर झांव -झांव शुरू हो जाएगा और संसद में कांव- कांव शुरू हो जाएगा।
    और अंत में -- 
हाल में इस देश के एक बड़े नेता ने अपना बड़ा आरेशन करवाया।
स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे कि इस बीच एक दूसरे बड़े नेता मिलकर हालचाल पूछने 
 चले गए।हालचाल पूछा।संभव है कि राजनीति पर भी बातचीत हुई होगी।
दूसरे दिन अखबारों में फोटो छपा।
यह देख कर कई लोगों को आश्चर्य हुआ कि बाहर से आए नेता जी मरीज के कमरे में प्रवेश के पहले अपनी चप्पल उतारना भूल गए थे।
आशंकित इंफेक्सन को लेकर कोई सावधानी नहीं। 
@ 20 जुलाई 2018 को प्रभात खबर -बिहार-में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@


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