मंगलवार, 31 जुलाई 2018

  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ठीक ही कहा है कि ‘हरिद्वार
से लेकर उन्नाव तक गंगा नदी का जल पीने और नहाने योग्य नहीं है।’
  पर उसने यह नहीं कहा कि बिहार आते -आते तो गंगा का जल छूने लायक भी नहीं रह जाता।
 जिस गंगा जल को सम्राट् अकबर रोज पीता था और जिसे अंग्रेजों ने भी जाने-अनजाने भरसक स्वच्छ बनाए रखा,उसे आजाद भारत के हुक्मरानों ने धीरे- धीरे गंदे नाले में परिणत कर दिया है।
जबकि, औषधीय गुणों से भरपूर गंगा नदी अधिकतर भारतीयों की भावनाओं से जुड़ी हुई है।
कल्पना कीजिए कि किसी भी दूसरे देश के पास ऐसी नदी होती तो वह इसे कितना संभाल कर रखता !
लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ हमारे देश के ही हुक्मरान कर सकते हैं।
  नरेंद्र मोदी की सरकार कह रही है कि गंगा को स्वच्छ करने के लिए उसने जो उपाय अब तक किए हैं,उसका फल अगले  साल  दिखाई पड़ने लगेगा।लोग आगे इस दावे की पड़ताल भी कर ही लेंगे।
 पर असली सवाल यह है कि गंगा को अविरल बनाए बिना वह निर्मल कैसे हो सकती है ?
अविरल बनाने के लिए मोदी सरकार ने क्या किया है ? 
इस सवाल का जवाब है कि  कुछ भी नहीं।
आजादी के बाद गंगा की राह में सिंचाई और बिजली के लिए जितनी बाधाएं खड़ी की गयी हैं,उन्हें हटाए बिना अविरलता कैसे आएगी ? यदि इन बाधाओं को हटाने में भारी दिक्कतें हैं तो निर्मल बनाने का काम भी अंततः अधूरा ही रहेगा।

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