मनुष के दुःख का सबसे बड़ा तो नहीं ,किंतु एक बड़ा कारण मुझे समझ में आता है।
वह यह है कि हम यह जोरदार इच्छा पालते हैं कि हमारे आसपास सिर्फ वही सब हो,जैसा हम चाहते हैं।
पर ऐसा होता नहीं है।फिर हम दुःखी हो जाते हैं।गुस्सा होते हैं।चिड़चिड़ा हो जाते हैं।कभी झगड़ा भी कर लेते हैं।
हालांकि इससे कोई फायदा नहीं होता।क्या कभी किसी की ऐसी इच्छा पूरी हुई है जो हमारी हो जाएगी ?
वह यह है कि हम यह जोरदार इच्छा पालते हैं कि हमारे आसपास सिर्फ वही सब हो,जैसा हम चाहते हैं।
पर ऐसा होता नहीं है।फिर हम दुःखी हो जाते हैं।गुस्सा होते हैं।चिड़चिड़ा हो जाते हैं।कभी झगड़ा भी कर लेते हैं।
हालांकि इससे कोई फायदा नहीं होता।क्या कभी किसी की ऐसी इच्छा पूरी हुई है जो हमारी हो जाएगी ?
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