सोमवार, 16 जुलाई 2018

--स्थानीय क्षत्रपों को छेड़ने के कारण 1979 में गिरी थी मोरारजी देसाई की सरकार --


   कर्पूरी ठाकुर और राम नरेश यादव मुख्य मंत्री पद से नहीं हटाए जाते तो मोरारजी देसाई की सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सकती थी।राम नरेश यादव उत्तर प्रदेश और कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्य मंत्री थे।ये तीनों राजनीतिक घटनाएं 1979 में छह महीनों के भीतर  हुईं।
  सत्तर के दशक की राजनीतिक घटनाएं बताती हैं कि कर्पूरी ठाकुर और राम नरेश यादव के मुख्य मंत्री बने रहने की स्थिति में चरण सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा धरी की धरी रह जाती।चरण सिंह जून, 1978 से जनवरी, 79 तक के सात महीने केंद्र  सरकार से बाहर थे।फिर भी  मोरारजी सरकार चलती रही।क्योंकि तब तक कर्पूरी ठाकुर और राम नरेश यादव सत्ता में बने हुए थे।
पर जब जनता पार्टी के जनसंघ-संगठन कांग्रेस घटक ने 1979 में बिहार  और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्रियों को हटवा दिया तो  नतीजतन उसी साल कुछ ही महीने के भीतर मोरारजी देसाई की सरकार का भी पतन हो गया।
देसाई सरकार के पतन से अनेक लोगों को झटका लगा था।क्योंकि देसाई सरकार अपेक्षाकृत बेहतर काम कर रही थी।
  मोरारजी देसाई और  चरण सिंह के बीच भारी मतभेद  के कारण सन 1978 में ही चरण सिंह और राजनारायण मंत्रिमंडल से हट गए थे।यूं कहिए कि हट जाने को विवश कर दिए गए थे।
उन दिनों ही चरण सिंह के समर्थक मोरारजी देसाई सरकार को अपदस्थ करने के लिए  भीतर -भीतर सक्रिय थे।पर वे सफल नहीं हो सके।
  हार-थक कर सात महीने के वनवास के बाद चरण सिंह 24 जनवरी, 1979 को  एक बार फिर मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल भी हो गये थे।चरण सिंह गुट के आग्रह के बावजूद 
राज नारायण को तो मोरारजी भाई ने फिर भी दुबारा अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया।
सन 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी थी तो चरण सिंह गृह मंत्री बनाए गए थे।
पर जब दुबारा मंत्री बने तो उन्हें यह महत्वपूर्ण विभाग ंनहीं दिया गया।
याद रहे कि उससे पहले प्रधान मंत्री देसाई और गृह मंत्री चरण सिंह के बीच कटुता बढ़ गयी थी।
चैधरी चरण सिंह ने सार्वजनिक रूप
 से यह मांग कर दी कि प्रधान मंत्री के पुत्र कांति देसाई के खिलाफ गंभीर आरोपों की जांच के लिए आयोग बनाया जाना चाहिए।
 बढ़ते मतभेद और जनता पार्टी में टूट की आशंका के बीच जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने यह सलाह दी कि जय प्रकाश नारायण और जे.बी.कृपलानी को मध्यस्थता  करनी चाहिए।
इस पर प्रधान मंत्री  ने साफ -साफ यह कह दिया कि सरकार के भीतरी मामले पर कोई बाहरी व्यक्ति कैसे दखल दे सकता है।
मोरारजी देसाई ने यह भी कहा था कि चरण सिंह के सरकार से बाहर रहने पर भी हमारी सरकार की स्थिरता पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा।
  यही हुआ।
लगातार सात महीने तक सरकार से बाहर रहने के बावजूद चरण ंिसंह और राज नारायण केंद्र सरकार को हिला नहीं सके थे।
शायद इसलिए चरण सिंह कम महत्वपूर्ण मंत्रालय स्वीकार करते हुए दुबारा जनवरी 1979 में मंत्री बन गए थे ।
  पर इससे उधर संगठन कांग्रेस -जनसंघ घटक के नेताओं का राजनीतिक मनोबल बढ़ गया।जो मोरारजी सरकार के लिए घातक साबित हुआ।
सन 1979 की फरवरी में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पद से राम नरेश यादव को हटवा दिया गया। उनकी जगह बनारसी दास  मुख्य मंत्री बनाए गए।वे संगठन कांग्रेस गुट के नेता थे और चंद्र भानु गुप्त के करीबी थे।
उसी साल अप्रैल में बिहार के मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर पद से हटा दिए गए।उनकी जगह समाजवादी नेता राम सुंदर दास
मुख्य मंत्री बनाए गए।
वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी घटक के थे और बिहार जनता पार्टी के अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण सिंहा के करीबी थे।याद रहे कि 1971 के लोक सभा चुनाव के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी। 
फिर क्या था ,बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के अधिकतर सांसदों ने मोरारजी दसाई के खिलाफ मोरचा खोल दिया।वे विद्रोह पर उतारू हो गए।
अंततः कांग्रेस के बाहरी समर्थन से जुलाई, 1979 में चरण सिंह प्रधान मंत्री बन गए।
  आपातकाल की पृष्ठभूमि में जय प्रकाश नारायण के दबाव पर चार दलों को मिलाकर जनता पार्टी बनी थी।उन दलों में जनसंघ,संगठन कांग्रेस ,सोशलिस्ट पार्टी और भालोद शामिल थे।
 उत्साह के माहौल में केंद्र में तो सन 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बन गयी,पर 1977 के मध्य में जब कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए तो भालोद और जनसंघ घटकों ने मिलकर आपस में छह राज्य बांट लिए।
बिहार,उत्तर प्रदेश और हरियाणा भालोद घटक के हिस्से पड़ा तो मध्य प्रदेश,राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में जनसंघ घटक के मुख्य मंत्री बने थे।
--सुरेंद्र किशोर ।  
@फस्र्टपोस्ट हिन्दी -16 जुलाई 2018 से@   

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