सोमवार, 2 जुलाई 2018

-- झारखंड आंदोलन के स्तम्भ रहे बागुन सुम्ब्रई ने की थी 57 शादियां--




अनेक विशेषताओं से भरे  प्रमुख आदिवासी नेता बागुन सुम्ब्रई झारखंड आंदोलन के स्तम्भ थे।उन्होंने अविभाजित बिहार की राजनीति को भी अपने ढंग से प्रभावित किया था।
 94 साल की उम्र में गत माह उनका निधन हो गया।      लीजेंड्री हाॅकी प्लेयर व आदिवासी नेता जयपाल सिंह  के 1963 में कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद एन.ई.होरो के साथ मिलकर बागुन ने झारखंड आंदोलन को आगे बढ़ा दिया था।
 वे अलग झारखंड प्रदेश की मांग कर रहे थे।
हालांकि वे आदिवासी नेता होने के बावजूद अन्य लोगों के साथ भी अच्छा व्यवहार करते थे।
 साधु वेशधारी बागुन ने न सिर्फ 57 शादियां की थीं बल्कि वे चार बार विधायक और पांच बार सांसद भी रहे।उससे पहले वे 15 साल मुंडा और 12 साल मुखिया थे।वे और उनकी पत्नी मुक्तिदानी अविभाजित बिहार में  मंत्री भी रहे।
 बागुन की एक पत्नी तुलसी देवगम ने जब एक बच्ची को जन्म दिया था,उस समय बागुन की उम्र 85 साल थी।
बागुन सुम्ब्रई ने कई बार दल बदला,पर उनका जनाधार कम नहीं हुआ।
कहा जाता है कि हर शादी के बाद उनका जनाधार बढ़ जाता था।
 सुकर पूरती ने उनकी जीवनी लिखी है।एक बार जब पूरती से उनसे पूछा कि ‘क्या आपने  52 शादियां की हैं ?’  उस पर उन्होंने न तो हां कहा और न ना।पर बाद में  पटना के पत्रकार नलिन वर्मा को सुम्ब्रई ने बताया था कि मैंने  57 शादियां की हैं।यह बात और है कि उनमें
से अधिकतर लड़कियों की उन्होंने बाद में दूसरी शादी करवा दी।वे जिस ‘हो’ समुदाय से आते थे ,उसमें 
बहु पत्नीवाद उस संस्कृति का हिस्सा है।बागुन ने कहा था  कि इसे बुरा नहीं माना जाता।ं
  अविभाजित बिहार की राजनीति को प्रभावित करने वाले बागुन  सिंहभूम जिले के निवासी थे।उन्होंने  जब 1942 में अपनी पहली शादी की तो उसकी भी  कहानी फिल्मी रही।दिवंगत सुम्ब्रई ने खुद कभी मीडिया को बताया था कि उनकी पहली पत्नी दासमती के पिता से उनके पिता की सोलह साल से खूनी दुश्मनी चल रही थी। दोनों पक्षों की कई जानें जा चुकी थीं।इस खानदानी दुश्मनी को समाप्त करने के लिए युवा बागुन ने चुपके से दासमती से मुलाकात की।उसे बताया कि हमलोग शादी कर लें तो दो परिवारों की दुश्मनी समाप्त हो जाएगी।दासमती राजी हो गई।शादी हो गईं।दुश्मनी समाप्त भी 
हो गई।पर बागुन के पिता इस शादी से खुश नहीं थे।वे अपने पुत्र की कहीं और शादी चाहते थे।
फिर पिता की इच्छा के तहत बागुन ने 1945 में चंद्रावती से दूसरी शादी की।
    बागुन सुम्ब्रई की तीसरी घोषित शादी मुक्तिदानी से हुई।मुक्तिदानी खिलाड़ी थी।और घमंडी भी।
एक अवसर पर उसने बागुन को गाली दे दी।बागुन ने तय किया कि इसका घमंड तोड़ने के लिए इससे शादी कर लेनी चाहिए।बागुन सुम्ब्रई ने मुक्तिदानी को अपने प्रेमपाश में फंसा ही लिया।1959 में दोनों की शादी हो गई।मुक्तिदानी से शादी बागुन के जीवन में हलचल पैदा करने वाली साबित हुई।यही नहीं कि मुक्तिदानी 1977 और 1980 में विधायक और 1983 में बिहार सरकार में मंत्री बनीं बल्कि उन्होंने बागुन सुम्ब्रई की अगली शादी का जी जान से विरोध भी किया।मुकदमेबाजी हुई और दोनों के बीच मारपीट भी।यह भी आरोप लगा कि मुक्तिदानी ने बागुन को जहर देने की कोशिश की थी।
    मुक्तिदानी ने विश्वनाथ, विमल और मुन्नी को जन्म दिया।विश्वनाथ सुम्ब्रई  भी एक सवर्ण  लड़की से प्रेम विवाह करके कभी चर्चा में आए थे।बाद में विश्वनाथ की 1994 में रांची में एक दुर्घटना में मौत हो गई।पर विश्वनाथ ने अपने पिता के साथ संघर्ष में अपनी मां का साथ दिया।
यह नौबत तब आई जब अस्सी के दशक में बागुन ने चाईबासा की एक नर्स बेबी रोजम्मा से शादी कर ली।मुक्तिदानी ने इसका हिंसक विरोध किया।न सिर्फ रोजम्मा के साथ मारपीट की गई बल्कि 
मुक्तिदानी ने इस शादी के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में केस भी कर दिया।बहुपत्नीवाद में विश्वास रखने वाले इस आदिवासी नेता पर उनकी  किसी पहली पत्नी ने केस किया था तो वह मुक्तिदानी ही थीं।।केस तो रोजम्मा ने भी सन 1988 के अप्रैल में मुक्तिदानी और उनके बेटों पर किया था।आरोप लगाया गया था कि मुक्तिदानी और उनके बेटों ने  गुंडों के साथ नर्सेज होस्टल में जाकर रोजम्मा पर हमला किया।हमलावरों के पास घातक हथियार थे।मुक्तिदानी ने रोजम्मा के बाल पकड़ कर पीटा।वह बेहोश हो गई।
      यह सब तब तक चला जब तक रोजम्मा केरल नहीं लौट गई।बाद में तो मुक्तिदानी ने बागुन की सेवा की जब वे बीमार हो गए थे ।अब मुक्तिदानी नहीं रहीं। अपनी राजनीतिक उपलव्धियों के लिए भी जाने जाते हैं ,पर बहुपत्नीवाद के कारण उनका राजनीतिक योगदान थोड़ा मद्धिम रहता था।
  बाल और दाढ़ी बढ़ाए और सिर्फ धोती लपेटकर पहनने वाले श्री सुम्ब्रई ने कई रिकार्ड बनाए हैं।बागुन सुम्ब्रई के साथ कभी शिबू सोरेन काम करते थे।खुद बागुन ग्रेट आदिवासी नेता जयपाल सिंह के सहकर्मी थे।
 बागुन 1967 में पहली बार बिहार विधान सभा के सदस्य बने थे।साठ -सत्तर के दशकों में अविभाजित बिहार में  जब मिलीजुली सरकारों का दौर चल रहा था तो बार- बार दल बदल कर मंत्री पद पाने वाले कुछ विधायकों में उनका भी नाम था। 1977 में वे 
सिंहभूमि से निर्दलीय सांसद चुने गए।बाद में तो वे कई बार अलग -अलग दलों के टिकट पर सांसद बनें ।
यदि बागुन के जीवन पर कोई फिल्म बने तो वह खूब चलेगी,ऐसा फिल्मों के जानकार लोग बताते हैं। 
@मेरा यह लेख 2 जुलाई 2018 को फस्र्टपोस्ट हिन्दी पर
प्रकाशित@ 

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