मंगलवार, 10 जुलाई 2018

आजादी के बाद किस तरह हमारे देश के अनेक  नेता पहले 
जातिवादी हुुए।फिर वंश वादी हुए।समय के साथ धन वादी 
हुए।
फिर अपराधियों को अपने संग लिया।
जातीय व साम्प्रदायिक वोट बैंक मजबूत किया।उससे मिली राजनीतिक व प्रशासनिक ताकत के बल पर भ्रष्टाचार के जरिए अपार धनोपार्जन किया।@ वोहरा कमेटी की रपट पढ़ें।@
कुछ नेता केस में जेल गए।कुछ को सजा हुई।होशियार लोग बचते रहे।
अब विभिन्न दलों के कई नेता खुलेआम अपना व्यापारिक साम्राज्य खड़ा कर रहे हैं।कई कर चुके हैं।
गत 71 साल में कितना बदल गया है राजनीति का स्वरूप !
इस काया पलट के लिए कोई एक दल या कोई एक नेता जिम्मेदार नहीं है।कमोवेश सबका योगदान है।कुछ का प्रत्यक्ष तो कुछ अन्य का परोक्ष योगदान रहा है।
क्या यह बदलाव सकारात्मक है ? देशहित में है ?व्यापक जनहित में है ? 
 इसके बारे में आम मतदाताओं के पास कितनी सूचनाएं हैं।
सूचनाएं देना पत्रकार का मुख्य काम है।
  उन सूचनाओें पर मन बनाना मतदाताओं की जिम्मेदारी है।क्या  इस काया पलट से अधिकतर मतदाता गण खुश हंै ?
सहमत हैं ?
उन्हें ऐसी ही राजनीति चाहिए ?
यह सब उन पर ही निर्भर है।
यदि ऐसा ही चाहिए तो वैसा होने दें।
लोकतंत्र में वे ही तो मालिक हैं।
नेता अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं या नहीं ?
मतदाता क्या कर रहे हैं ? यह सब वे जानें।
पर जिनकी जिम्मेदारी सूचना देने की हैं,वे तो अपना काम करते रहे।पर बिना किसी भेदभाव के।
सूचना में ताकत होती है।
उस ताकत का प्रकटीकरण शायद देर -सवेर  कभी हो ! 



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