सोमवार, 16 जुलाई 2018

 महिला आरक्षण विधेयक संसद के अगले सत्र में पास कराने की मोदी सरकार से मांग करके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बढि़या राजनीतिक दांव खेला है।
  अपने हाल के मुस्लिम समर्थक कथित बयान से लोगों का ध्यान हटाने के लिए उनकी यह एक अच्छी पहल है।
संसद व विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण जरूरी है।
इससे न सिर्फ महिलाओं का सशक्तीकरण होगा बल्कि विधायिकाओं में हंगामा भी थोड़ा कम हो सकता है। 33 प्रतिशत महिलाओं की उपस्थिति के कारण संभव है कि कुछ सांसद उदंडता से बचें।
 पर, क्या राहुल गांधी ने इस मामले मंे अपने सहयोगी  सपा और राजद जैसे दलों से बात कर ली है ?
 2010 में राज्य सभा में महिला आरक्षण विधेयक पास होने के बावजूद सत्तारूढ़ कांग्रेस ने उन्हीं दलों को खुश करने के लिए लोक सभा से पास नहीं होने दिया था।उन दलों की मांग है कि आरक्षण के भीतर आरक्षण हो।
 वैसे  नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद राष्ट्रपति प्रणव  मुखर्जी ने भी अपने अभिभाषण में कहा था कि हमारी सरकार महिलाओं के लिए आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।
नरेंद्र मोदी राहुल गांधी की बात मान लें तो उससे कुल मिलाकर सबका भला होगा।हालांकि जिसकी सरकार के कार्यकाल में आरक्षण संभव होगा,उसे तो ज्यादा राजनीतिक फायदा होना ही है।
  ऐसे मुद्दे उपलब्ध हैं तो पता नहीं कांग्रेस क्यों खुद को मुस्लिमपक्षी दिखाने के लिए अतिरिक्त कसरत करती रहती है ?जबकि इसके खिलाफ ए.के.एंटोनी कमेटी की राय आ चुकी है।
जब नरेंद्र मोदी सामने हैं तो अधिकतर मुस्लिम वोट कांग्रेस 
गठबंधन को मिलने ही हंै।इसलिए अधिक प्याज खाने की जरूरत नहीं है।
फिर भी मणि शंकर अययर, दिग्विजय सिंह,सलमान खुर्शीद,शशि थरूर और अब खुद राहुल गांधी क्यों अपने बयानों से अनजाने में खुद कांग्रेस को ही नुकसान क्यों पहुंचाते रहते हैं ?
2006 में तो तत्कालीन प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने भी कह दिया था कि सरकारी संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों खास कर मुसलमानों का है।ऐसी ही एकतरफा धर्म निरपेक्षता के कारण 2014 में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गयी थी।
अब जबकि राजग खुद ही दबाव में है तो कांग्रेस राजनीतिक प्रौढ़ता व दूरदर्शिता क्यों नहीं दिखा रही है ?
  दरअसल गावों में एक कहावत है-
लडि़का मालिक,बूढ़ दीवान,
मामला बिगड़े सांझ-बिहान !  


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